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महमद षष्ठ (उस्मानी तुर्कीयाई: محمد السادس मेहमेत-इअ सासिस, وحيد الدين वहीदुद्दीन, तुर्कीयाई: Vahideddin या Altıncı Mehmet छठवें महमद) उस्मानी साम्राज्य के 36वें और आख़िरी शासक थे जो अपने भाई महमद पंचम के बाद 1918 से 1922 तक तख़्त पर नशीन रहे। उन्हें 4 जुलाई 1918 को साम्राज्य के संस्थापक उस्मान प्रथम की तलवार से नवाज़ कर 36वें सुल्तान की ज़िम्मेदारियाँ दी गई थीं।
महमद षष्ठ | |
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इस्लाम के ख़लीफ़ा अमीरुल मुमिनीन उस्मानी साम्राज्य के सुल्तान कैसर-ए रूम ख़ादिम उल हरमैन अश्शरीफ़ैन | |
36वें उस्मानी सुल्तान (बादशाह) | |
Reign | 4 जुलाई 1918 – 1 November 1922 |
राज्याभिषेक | 4 जुलाई 1918 |
पूर्ववर्ती | महमद पंचम |
उत्तरवर्ती | सल्तनत विघटित कमाल अतातुर्क, तुर्किया के राष्ट्रपति के रूप में |
उस्मानी ख़िलाफ़त के 28वें ख़लीफ़ा | |
Reign | 4 जुलाई 1918 – 19 नवम्बर 1922 |
पूर्ववर्ती | महमद पंचम |
उत्तरवर्ती | अब्दुल मजीद द्वितीय |
उस्मानी शाही ख़ानदान (निर्वासित) | |
Reign | 19 नवम्बर 1922 – 16 मई 1926 |
पूर्ववर्ती | महमद पंचम |
उत्तरवर्ती | अब्दुल मजीद द्वितीय |
जन्म | 14 जनवरी 1861 क़ुस्तुंतुनिया, उस्मानिया |
निधन | 16 मई 1926 65 वर्ष) सानरेमो, इटली | (उम्र
समाधि | तक़्क़िया मस्जिद, दमिश्क़ |
शाही ख़ानदान | उस्मानी |
पिता | अब्दुल मजीद द्वितीय |
माता | हुलुश्तु ख़ानुम |
धर्म | सुन्नी इस्लाम |
तुग़रा |
उनका जन्म को दोल्माबाहचा महल, क़ुस्तुंतुनिया में हुआ था।[1][2]
उनके दौर का सबसे अहम और बड़ा वाक़िया पहला विश्व युद्ध था जो साम्राज्य के लिए विनाशकारी साबित हुआ। युद्ध में पराजित होने के नतीजे में बर्तानवी सेनाओं ने बग़दाद और फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा कर लिया और साम्राज्य का अधिकांश हिस्सा मित्रदेश बलों के अधीन आ गया। अप्रैल 1920 की सैनरेमो कॉन्फ़्रैंस के नतीजे में शाम पर फ़्रांस और फ़िलिस्तीन और मेसोपोटामिया पर बर्तानिया का अधिकार स्वीकार कर लिया गया। 10 अगस्त 1920 को सुल्तान के प्रतिनिधियों ने समझौते पर दस्तख़त किए जिसके नतीजे में अनातोलिया और इज़्मिर उस्मानी साम्राज्य के क़ब्ज़े से निकल गए और तुर्की का हल्का असर ज़्यादा सिकुड़ गया जबकि समझौते के नतीजे में उन्हें हिजाज़ में आज़ाद राज्य को भी स्वीकार करना पड़ा।
तुर्क राष्ट्रवादी सुल्तान द्वारा समजौते को स्वीकार करने के फ़ैसले पर सख़्त नाराज़ थे और उन्होंने 23 अप्रैल 1920 को आंकारा में मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क की भव्य तुर्क राष्ट्रीय सभा (तुर्कीयाई: türkiye büyük millet meclisi, तुर्किये बयोक मिल्लत मेजलिसी) का ऐलान किया गया। सुल्तान महमद षष्ठ को तख़्त से उतार दिया गया और आर्ज़ी संविधान प्रख्यापित किया गया। राष्ट्रवादियों ने स्वतंत्रता संग्राम में कामयाब होने के बाद नवंबर 1922 को औपचारिक रूप से उस्मानी साम्राज्य की समाप्ति का ऐलान किया और सुल्तान को नापसंदीदा शख़्सियत क़रार देते हुए मुल्क से निर्वासित कर दिया गया जो 17 नवंबर को बज़रीया बर्तानवी समुद्री जहाज़ माल्टा रवाना हो गए और बाद में उन्होंने अपनी बाक़ी की ज़िंदगी इटली में गुज़ारी। 19 नवंबर 1922 को उनके क़रीबी अब्दुल मजीद आफ़ंदी (अब्दुल मजीद द्वितीय) को नया ख़लीफ़ा चुना गया जो 1924 में ख़िलाफ़त की समाप्ति तक ये ज़िम्मेदारी निभाते रहे।
महमद षष्ठ की मौत 16 मई 1926 को सैनरेमो, इटली में हुई और उन्हें दमिश्क़ की सुल्तान सलीम प्रथम मस्जिद में दफ़नाया गया।[3]
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