इसे भारत के कई क्षेत्रों में लावा भी कहते हैं।तालाब, झील, दलदली क्षेत्र के शांत पानी में उगने वाला मखाना पोषक तत्वों से भरपूर एक जलीय उत्पाद है। मखाने के बीज को भूनकर इसका उपयोग मिठाई, नमकीन, खीर आदि बनाने में होता है। मखाने में 9.7% आसानी से पचनेवाला प्रोटीन, 76% कार्बोहाईड्रेट, 12.8% नमी, 0.1% वसा, 0.5% खनिज लवण, 0.9% फॉस्फोरस एवं प्रति १०० ग्राम 1.4 मिलीग्राम लौह पदार्थ मौजूद होता है। इसमें औषधीय गुण भी होता है।उत्तर-पूर्वी बिहार को मखाने के लिए ही दुनिया भर में जाना जाता है. मखाने की सबसे ज्यादा पैदावार यहीं होती है. बिहार में 80 से 90 प्रतिशत मखाना उत्पादन होता है. मखाना के उत्पादन में 70 प्रतिशत हिस्सा मधुबनी और दरभंगा का है । ये मिथिला क्षेत्र का भाग है । ref> Archived 2006-04-08 at the वेबैक मशीन दरभंगा जिले में मखाना उद्योग पर जानकारी</ref>

सामान्य तथ्य मखाना, वैज्ञानिक वर्गीकरण ...
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Surface-floating leaf of Euryale ferox

उत्पादन

बिहार में मिथिला के दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी, पूर्णिया, कटिहार आदि जिलों में मखाना का सार्वाधिक उत्पादन होता है। मखाना के कुल उत्पादन का ८८% बिहार में होता है।[1]

अनुसंधान

28 फ़रवरी 2002 को दरभंगा के निकट बासुदेवपुर में राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना की गयी। दरभंगा में स्थित यह अनुसंधान केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्य करता है। दलदली क्षेत्र में उगनेवाला यह पोषक भोज्य उत्पाद के विकाश एवं अनुसंधान की प्रबल संभावनाएँ है।

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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