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भारत-चीन सम्बन्ध
चीन जनवादी गणराज्य और भारत गणराज्य के बीच राजनयिक सम्बन्ध / From Wikipedia, the free encyclopedia
भारत - चीन सम्बन्ध (सरलीकृत चीनी: 中印关系; परंपरागत चीनी: 中印關係; पिनयिन: Zhōngyìn guānxì ; देवनागरीकृत : च्रुङ्ग्¹यिन्² क्वाङ्¹शी² ); दो पड़ोसी एवं विश्व की दो उभरती शक्तियाँ हैं। दोनों के बीच लम्बी सीमारेखा है।
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इन दोनों में प्रचीन काल से ही सांस्कृतिक तथा आर्थिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत से बौद्ध धर्म का प्रचार चीन की भूमि पर हुआ है। चीन के लोगों ने प्राचीन काल से ही बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भारत के विश्वविद्यालयों अर्थात् नालन्दा विश्वविद्यालय एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय को चुना था क्योंकि उस समय संसार में अपने तरह के यही दो विश्वविद्यालय शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र थे। उस काल में यूरोप के लोग जंगली अवस्था में थे।
यद्यपि 1946 में चीन के साम्यवादी शासन की स्थापना हुई तदपि दोनों देशों के बीच मैत्री सम्बन्ध बराबर बने रहे। चीन के संघर्ष के प्रति भारत द्वारा विकासशील देश नीति की गई एवं पंचशील पर आस्था भी प्रकट की गई। वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद के अगले वर्ष, भारत ने चीन के साथ राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। इस तरह भारत, चीन लोक गणराज्य को मान्यता देने वाला प्रथम गैर-समाजवादी देश बना।
वर्ष 1954 के जून माह में चीन, भारत व म्यान्मार द्वारा शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धान्त यानी पंचशील प्रवर्तित किये गये। पंचशील चीन व भारत द्वारा दुनिया की शान्ति व सुरक्षा में किया गया एक महत्वपूर्ण योगदान था, और आज तक दोनों देशों की जनता की जबान पर है। देशों के सम्बन्धों को लेकर स्थापित इन सिद्धान्तों की मुख्य विषयवस्तु है- एक-दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान किया जाये, एक-दूसरे पर आक्रमण न किया जाये, एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न किया जाये और समानता व आपसी लाभ के आधार पर शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व बरकारार रखा जाये।
परन्तु चीन नें मैत्री सम्बन्धों को ताख पर रख कर 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया और भारत की बहुत सारी भूमि पर कब्जा करते हुए 21 नवम्बर 1962 को एकपक्षीय युद्धविराम की घोषणा कर दी। उस समय से दोनों देशों के सम्बन्ध आज-तक सामान्य नहीं हो पाए हैं।
जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने चीन से दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया, परन्तु भारत को सफलता नहीं मिली, क्योंकि चीन ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अन्यायपूर्ण ढँग से पाकिस्तान का एकतरफा सर्मथन किया था। 23 सितम्बर 1965 को भारत-पाकिस्तान युद्धविराम का समझौता हो गया। अतः चीन के सारे इरादों पर पानी फिर गया।
पाकिस्तान ने भारत के शत्रु की हैसियत से चीन को काराकोरम क्षेत्र में बसा दिया एवं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का 2,600 वर्ग मील भू–भाग चीन को सौंप दिया। जिससें चीन के साम्यवादी दल के सर्वाधिक शक्तिशाली नेता एवं चीन के राष्ट्रपति जियांग जोमीन ने नवम्बर 1966 में तीन दिन की भारत यात्रा की थी। यह चीन के राष्ट्रपति द्वारा की गई पहली यात्रा थी। इस यात्रा के दौरान एक एतिहासिक समझौता किया गया, जिसके अर्न्तगत वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर एक दूसरे द्वारा आक्रमण नही करने का वचन दिया गया। दोनों देशों ने अपने सैनिक बल का प्रयोग न करने का एवं हिमालय की झगड़े वाली सीमा पर शान्ति व्यवस्था बनायें रखने का समझौता किया। इस यात्रा के समय 11 सूत्रीय समझौता किया गया। अक्टूबर 1967 में भारत और चीन के मध्य तेल एवं गैस को प्राप्ति करने की भागीदारी के लिए एक समझौता किया गया था।
70 के दशक के मध्य तक भारत और चीन के सम्बन्ध शीत काल से निकल कर फिर एक बार घनिष्ठ हुए। जनवरी 1980 से चीन ने कुछ नरमी प्रदर्शित की जिसके फलस्वरूप भारत-चीन सम्बन्धों में सुधार की आशा व्यक्त की गई।
सन् 1998 में दोनों देशों के मध्य पुनः तनाव पैदा हो गया। भारत ने 11 से 13 मई 1998 के मध्य पाँच परमाणु परीक्षण कर अपने आप को शस्त्र धारक देश घोषित किया था। इसी दौरान भारत के रक्षामन्त्री रहें श्री जार्ज फर्नाण्डीस ने चीन को भारत का सबसे बड़ा शत्रु की संज्ञा दे डाली थी जिसने चीन की मानसिकता अचानक परिवर्तित हो गयी। चीन ने अमेरिका एवं अन्य देशों के साथ मिलकर एन०पी०टी० एवं सी०टी०बी०टी० पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत को बाध्य करना प्रारम्भ कर दिया। 5 जून 1998 को चीन के द्वारा दबाव बनाकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा परीक्षण बन्द करने, शस्त्र विकास कार्यक्रम बन्द करने एवं सी०टी०बी०टी० पर तथा एन०पी०टी० पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव पास करा दिया। जुलाई 1998 में एशियान रीजनल फोरम की बैठक में विदेश मन्त्री जसवंत सिंह एवं चीन के विदेश मन्त्री तांग जियाशं के मध्य वार्ता हुई। दोनों ने उच्च सरकारी विचार-विर्मश को जारी रखने का निर्णय लिया। अक्टूबर 1998 में चीन ने अटल बिहारी वाजपेयी को दलाई लामा के साथ मुलाकात की आलोचना की और इसे 'चीन के विरूद्ध तिब्बत-कार्ड का प्रयोग' कहा। फरवरी 1996 को भारत ने सम्बन्धों में मिठास लाने की पहल करते हुए एक मन्त्रालय-स्तरीय प्रतिनिधि मण्डल वार्षिक विचार विर्मश के लिए भेजा। चीन के रूख को भारतीय मन्त्रालय ने अपने हित में नहीं पाया। चीन ने इसे अवश्य सकरात्मक एवं प्रगतिवादी दृष्टिकोण का नाम दिया।
अप्रैल 1996 में साझे कार्यसमूह की बीजिंग में 11वीं बैठक हुई जिसमें दोनों देशों में विकास के नये पहलुओं पर जोरदार चर्चा हुई। एक बार पुनः दोनो देशों के मध्य सम्बन्धों में सुधार के आसार दिखने लगे। जून 1996 में भारतीय विदेश मन्त्री जसवन्त सिहं ने चीन की यात्रा पर वहाँ के नेताओं से उच्चस्तरीय वार्तालाप की दोनो देशों के मध्य परस्पर आर्थिक, सामाजिक एवं सास्कृतिक सहयोग विकसित करने की दिशा में आगे कदम उठाने का निर्णय लिया गया, भारत-चीन के व्यापार को 2 अरब डॉलर से अधिक बढ़ाने व साझे कार्यसमूह की गतिविधियों में वृद्धि के लिए भी निर्णय लिया गया। कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान को दोषी ठहराते हुए फरवरी 2000 में भारत ने चीन की डब्लू टी०ओ० सदस्यता प्राप्त करने के लिए सर्मथन किया था। मार्च 2000 में भारत एवं चीन के मध्य वीजिंग में सुरक्षा वार्तालाप का पहला दौर प्रारम्भ हुआ जो सचिव-स्तरीय था। सुरक्षा वार्तालाप दो दिनों तक चला। इस कार्यक्रम में चीन ने भारत को सी०टी०बी०टी० पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। मई 2000 में भारत के राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने चीन की यात्रा कर दोनों देशों के सभी हितकर मुद्दे पर वार्तालाप की भारत व चीन नें द्विपक्षीय आर्थिक एवं व्यापार सम्बन्धों में वृद्धि करने के लिए प्रयास करने की प्रतिबद्धता प्रकट की, लेकिन सीमा विवाद पर कोई निष्कर्षजन्य बात नहीं हो पायी।
वर्ष 2001 में पूर्व चीनी नेता ली फंग ने भारत की यात्रा की। वर्ष 2002 में पूर्व चीनी प्रधानमंत्री जू रोंग जी ने भारत की यात्रा की। इस के बाद, वर्ष 2003 में भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने चीन की यात्रा की। उन्होंने चीनी प्रधानमन्त्री वन चा पाओ के साथ चीन-भारत सम्बन्धों के सिद्धान्त और चतुर्मुखी सहयोग के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये। इस घोषणापत्र ने जाहिर किया कि चीन व भारत के द्विपक्षीय सम्बन्ध अपेक्षाकृत परिपक्व काल में प्रवेश कर चुके हैं। इस घोषणापत्र ने अनेक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समस्याओं व क्षेत्रीय समस्याओं पर दोनों के समान रुख भी स्पष्ट किये। इसे भावी द्विपक्षीय सम्बन्धों के विकास का निर्देशन करने वाला मील के पत्थर की हैसियत वाला दस्तावेज भी माना गया।
चीन के प्रधानमन्त्री वेन जियाबाओ ने 2005 और 2010 में भारत की यात्रा की। चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ 2006 में भारत आये थे। भारतीय प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने सन 2008 में चीन की यात्रा की। चीन के प्रधानमन्त्री ली ख छ्यांग 2013 में भारत आये। इसके अलावा ब्रिक्स शिखर बैठक से जुड़ी दो बैठकें भी हुईं: डा. मनमोहन सिंह ने 2011 में सान्या, चीन का दौरा किया तथा राष्ट्रपति हू जिन्ताओ ने 2012 में नई दिल्ली का दौरा किया तथा एक यात्रा अक्टूबर, 2008 में असेम शिखर बैठक के सिलसिले में बीजिंग की हुई।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि भारत एवं चीन के मध्य प्राचीन काल से चली आ रही मैत्री आधुनिक काल में कई अस्थिर दौरों से गुजरती रही है। भारत और चीन का सीमा विवाद आज तक बना हुआ है। हालांकि इधर चीन व भारत के सम्बन्धों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के सम्बन्धों में कुछ अनसुलझी समस्याएँ रही हैं। चीन व भारत के बीच सब से बड़ी समस्याएँ सीमा विवाद और तिब्बत की हैं। चीन सरकार हमेशा से तिब्बत की समस्या को बड़ा महत्व देती आई है।