मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज दिगंबर साधु हैं। वे इस युग के दिगंबर संत, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य हैं। उन्होंने दिगंबर धर्म की पारंपरिक जटिलताओं को सहज भाषा में परिभाषित कर इसे जीवन में व्यावहारिक बनाया है। उनके उपदेशों और प्रयासों के माध्यम से समाज में गुणात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। वर्ष 2015 में संथारा की जैन परंपरा, जिसे सल्लेखना के नाम से भी जाना जाता है, को बचाने के लिए एक विश्व व्यापी अभियान में श्वेतांबर जैन संघ के साथ भाग लिया था, जिसमें राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध जैन समुदाय के लाखों सदस्यों ने दुनिया भर के कई शहरों और कस्बों में बड़े पैमाने पर रैलियां निकालीं एवं मौन प्रदर्शन किया . गुणायतन दिगंबर धाम उनकी महत्वपूर्ण धार्मिक पहलों में से एक है जो सच्चे अर्थों में आत्म-विकास का केंद्र बनने जा रहा है। उनके प्रवचन और शंका समाधान कार्यक्रम को जिनवाणी चैनल और पारस टीवी चैनल पर प्रसारित किया जाता है। ये अपने विवादित बयानों के कारण चर्चा मे भी रहते है। स्त्री द्वारा अभिषेक और पंचामृत अभिषेक को लेकर दिए विवादित भाषणों के कारण सोशल मीडिया पर छाए रहते है। कुछ समय पहले बावनगजा मे पंचामृत अभिषेक के स्थान पर जल अभिषेक होने के कारण ये चर्चा में रहे है।[1]

सामान्य तथ्य व्यक्तिगत जानकारी, जन्म नाम ...
Muni Pramansagar
व्यक्तिगत जानकारी
जन्म नाम नवीन कुमार
जन्म 27 जून 1967
झारखण्ड
माता-पिता श्री सुरेंद्र कुमार जी, श्रीमती सोहनी देवी
शुरूआत
सर्जक आचार्य_विद्यासागर
दीक्षा के बाद
जालस्थल www.munipramansagar.net
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जीवन

मुनि प्रमासागरजी का जन्म 27 जून 1967 को हजारीबाग, झारखंड में श्री सुरेंद्र कुमार जी और श्रीमती सोहनी देवी के घर में नवीन कुमार के रूप में हुआ था । 4 मार्च 1984 को उनके वैराग्य-जीवन की शुरुवात हुई. आचार्य विद्यासागर जी ने 31 मार्च 1988 को श्री दिगम्बर सिद्धक्षेत्र सोनागिरी, मध्यप्रदेश में उन्हैं दिगंबर साधु के रूप में दीक्षा प्रदान की ।

सल्लेखना विवाद के मुद्दे पर, उन्होंने कहा: "संथारा आत्महत्या नहीं है। दिगंबर धर्म आत्महत्या को पाप मानता है। प्रत्येक धर्म के अनुयायी अलग-अलग साधनों के माध्यम से तपस्या करते हैं और दिगंबर धर्म में भी आत्म-शुद्धि के लिए सल्लेखना व्रत धारण किया जाता है" मुनि प्रमाणसागरजी एक दिगंबर साधु हैं, जिन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा सल्लेखना पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का विरोध करने के लिए धर्म बचाओ आंदोलन मे भाग लिया था. राजस्थान उच्च न्यायालय का निर्णय बाद में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थगित कर दिया गया था । उन्होंने जयपुर में नवकार मंत्र का १ करोड़ बार जप करने का कार्यक्रम भी आयोजित किया। गुणायतन उनकी अन्य धार्मिक पहलों में से एक है। उनके प्रवचन और शंका समाधन कार्यक्रम जिनवाणी और पारस टीवी चैनल पर प्रसारित होते हैं।

दिगंबर श्रमणों के लिए धार्मिक परम्पराओं के अनुसार, मुनि प्रमाणसागरजी भी वर्षाऋतु के मौसम (चातुर्मास) के 4 महीने को छोड़कर, एक जगह पर नहीं रहते हैं। वे एक जगह से दूसरी जगह निरन्तर पदविहार करते रहतें है. उनका 2016 का चातुर्मास अजमेर, राजस्थान में हुआ था। उन्होंने जून 2016 में कुचामन, राजस्थान को भी विहार किया था।

लेखन

मुनि प्रमासागरजी हिंदी, संस्कृत, प्राकृत और अंग्रेजी भाषाओं के एक प्रसिद्ध विद्वान हैं। उन्होंने दिगंबर धर्म और दिगंबर दर्शन पर कई ग्रंथों की रचना की हैं. उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध साहित्य की सूची इस प्रकार है: - दिगंबर धर्म और दर्शन, दिगंबर तत्व विद्या, दिव्य जीवन का द्वार, ज्योतिर्मय जीवन, जीवन उत्कर्ष का आधार, लक्ष्य जीवन का, अंतस की आंखें, जीवन की संजीवनी, दिगंबर सिद्धान्त शिक्षण, पाठ पढ़े नव जीवन का, अन्दाज जीवन जीने का, घर को कैसे स्वर्ग बनाएं, सुख जीवन की राह, धर्म साधिये जीवन में, मर्म जीवन का, आदि। ध्यान योग , समाधि भावना, मंगल भावना इनकी प्रमुख पुस्तके है।

मुनि प्रमासागरजी ने शरीर को स्वस्थ, मन को शांत और आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए 'यद भावते तद् भवति' के प्राचीन भारतीय सूत्र को आधुनिक रूप में परिभाषित करके भावना योग का विकास किया है। ये वैदिक दर्शन की तरह योग को बहुत महत्व देते है [2]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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