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दिगम्बर जैन आचार्य जो अपने तप और ज्ञान के लिए प्रख्यात है। मूकमाटी महाकाव्य के रचयिता । विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
आचार्य विद्यासागर (कन्नड़:ಆಚಾರ್ಯ ವಿದ್ಯಾಸಾಗರ್) एक दिगम्बर आचार्य थे। आचार्य विद्यासागर जी हिन्दी, अंग्रेजी आदि 8 भाषाओं के ज्ञाता थे।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज | |
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आचार्य विद्यासागर | |
नाम (आधिकारिक) | आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज |
व्यक्तिगत जानकारी | |
जन्म नाम | विद्याधर |
जन्म |
10 अक्टूबर 1946 सदलगा |
निर्वाण | 18 फरवरी 2024 |
माता-पिता | मल्लप्पा और श्री मंती |
शुरूआत | |
सर्जक | आचार्य ज्ञानसागर |
दीक्षा के बाद | |
पूर्ववर्ती | आचार्य ज्ञानसागर |
उनका जन्म १० अक्टूबर १९४६ को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।
विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर के वंश के थे पर गुरु परंपरा से द्रोह कर अलग एकल विचरण करते थे। आचार्य विद्यासागर को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था। उनके भाई सभी घर के लोग संन्यास ले चुके हैं। उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर और मुनि समयसागर कहलाये।उनके बङे भाई भी उनसे दीक्षा लेकर मुनि उत्कृष्ट सागर जी महाराज कहलाए। इनका जीवन दिगंबर समाज के सर्व जन के अनुकरणीय है।
आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। विभिन्न शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है। उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है। विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है। आचार्य विद्यासागर कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर के शिष्य मुनि क्षमासागर ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।
इनका जीवन 13–20 के विवादों बीता, फिर भी ये समतापूर्वक अपनी साधना मे रहते थे।
हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि में एक दर्जन से अधिक मौलिक रचनाएँ प्रकाशित- 'नर्मदा का नरम कंकर', 'डूबा मत लगाओ डुबकी' , 'तोता रोता क्यों ?' , 'मूक माटी' आदि काव्य कृतियां ; गुरुवाणी , प्रवचन परिजात, प्रवचन प्रमेय आदि प्रवचन संग्रह; आचार्य कुंदकुंद के समयासार, नियमसार , प्रवचनसार और जैन गीता आदि ग्रंथों का पद्य अनुवाद |
आचार्य श्री द्वारा 130 मुनिराजो , 172 आर्यिकाओं व 20 ऐलक जी ,14 क्षुल्लकगणों को दीक्षित किया गया है | मुनिश्री समयसागर जी,मुनिश्री योगसागर जी, मुनिश्री चिन्मयसागर (जंगल वाले बाबा जी) ,मुनिश्री अभयसागर जी, मुनि क्षमासागर जी,क्षुल्लक ध्यान सागर जी
जी आदि संत है |[1]
समाधि-
शरीर की अस्वस्थता के चलते आचार्य जी चंद्रगिरी पर ही विराजमान थे, शरीर मे भयंकर व्याधि ने इन्हे घेर लिया था, इनके शरीर पर पीलिया का प्रभाव देखा गया। पर धैर्य से डॉक्टर और वैद्यों की टीम से दिगंबर आगमनुकूल चर्या से इलाज करवाते रहे पर कोई असर ना पड़ा। इस प्रकार छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरी दिगंबर तीर्थ में आचार्य विद्यासागर जी महाराज का 18 फरवरी 2024 को 2:35 AM पर देह त्याग हुआ ।
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