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नास्तिकता अथवा नास्तिकवाद या अनीश्वरवाद, वह सिद्धांत है जो जगत् की सृष्टि करने वाले, इसका संचालन और नियंत्रण करनेवाले किसी भी ईश्वर के अस्तित्व को सर्वमान्य प्रमाण के न होने के आधार पर स्वीकार नहीं करता।[1] (नास्ति = न + अस्ति = नहीं है, अर्थात ईश्वर नहीं है।) नास्तिक लोग ईश्वर (भगवान) के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण न होने कारण झूठ करार देते हैं। अधिकांश नास्तिक किसी भी देवी देवता, परालौकिक शक्ति, धर्म और आत्मा को नहीं मानते। हिन्दू दर्शन में नास्तिक शब्द उनके लिये भी प्रयुक्त होता है जो वेदों को मान्यता नहीं देते क्युकी वेदो को विश्व का सर्व प्रथम धर्म ग्रन्थ माना जाता है इसलिए जब वैदिक युग के दौरान कोई दूसरा प्रभावशाली धर्म नहीं था तब जो वेद मानने से इंकार करता था उसे नास्तिक बोल दिया जाता था। नास्तिक मानने के स्थान पर जानने पर विश्वास करते हैं। वहीं आस्तिक किसी न किसी ईश्वर की धारणा को अपने संप्रदाय, जाति, कुल या मत के अनुसार बिना किसी प्रमाणिकता के स्वीकार करता है। नास्तिकता इसे अंधविश्वास कहती है क्योंकि किसी भी दो धर्मों और मतों के ईश्वर की मान्यता एक नहीं होती है। नास्तिकता रूढ़िवादी धारणाओं के आधार नहीं बल्कि वास्तविकता और प्रमाण के आधार पर ही ईश्वर को स्वीकार करने का दर्शन है। नास्तिकता के लिए ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करने के लिए अभी तक के सभी तर्क और प्रमाण अपर्याप्त है
इस article में दिये उदाहरण एवं इसका परिप्रेक्ष्य मुख्य रूप से भारत का दृष्टिकोण दिखाते हैं और इसकावैश्विक दृष्टिकोण नहीं दिखाते। कृपया इस लेख को बेहतर बनाएँ और वार्ता पृष्ठ पर इसके बारे में चर्चा करें। (मार्च 2022) |
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बौद्ध धर्म मानवी मूल्यों तथा आधुनिक विज्ञान का समर्थक है और बौद्ध अनुयायी काल्पनिक ईश्वर में विश्वास नहीं करते है। इसलिए अल्बर्ट आइंस्टीन, बर्नाट रसेल जैसे कई विज्ञानवादी एवं प्रतिभाशाली लोग बौद्ध धर्म को विज्ञानवादी धर्म मानते है। चीन देश की आबादी में 91% से भी अधिक लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है, इसलिए दुनिया के सबसे अधिक नास्तिक लोग चीन में है। नास्तिक लोग धर्म से जुडे हुए भी हो सकते है।
दर्शन का अनीश्वरवाद के अनुसार जगत स्वयं संचालित और स्वयं शासित है। ईश्वरवादी ईश्वर के अस्तित्व के लिए जो प्रमाण देते हैं, अनीश्वरवादी उन सबकी आलोचना करके उनको काट देते हैं और संसारगत दोषों को बतलाकर निम्नलिखित प्रकार के तर्कों द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं कि ऐसे संसार का रचनेवाला ईश्वर नहीं हो सकता।
ईश्वरवादी कहते है कि मनुष्य के मन में ईश्वरप्रत्यय जन्म से ही है और वह स्वयंसिद्ध एवं अनिवार्य है। यह ईश्वर के अस्तित्व का द्योतक है। इसके उत्तर में अनीश्वरवादी कहते हैं कि ईश्वरभावना सभी मनुष्यों में अनिवार्य रूप से नहीं पाई जाती और यदि पाई भी जाती हो तो केवल मन की भावना से बाहरी वस्तुओं का अस्तित्व सिद्ध नहीं होता। मन की बहुत सी धारणाओं को विज्ञान ने असिद्ध प्रामाणित कर दिया है। जगत में सभी वस्तुओं का कारण होता है। बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता। कारण दो प्रकार के होते हैं-एक उपादान, जिसके द्वारा कोई वस्तु बनती है और दूसरा निमित्त, जो उसको बनाता है। ईश्वरवादी कहते हैं कि घट, पट और घड़ी की भाँति समस्त जगत् भी एक कार्य (कृत घटना) है अतएव इसके भी उपादान और निमित्त कारण होने चाहिए। कुछ लोग ईश्वर को जगत का निमित्त कारण और कुछ लोग निमित्त और उपादान दोनों ही कारण मानते हैं। इस युक्ति के उत्तर में अनीश्वरवादी कहते हैं कि इसका हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है कि घट, पट और घड़ी की भाँति समस्त जगत् भी किसी समय उत्पन्न और आरंभ हुआ था। इसका प्रवाह अनादि है, अत: इसके स्रष्टा और उपादान कारण को ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है। यदि जगत का स्रष्टा कोई ईश्वर मान लिया जाय जो अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा; यथा, उसका सृष्टि करने में क्या प्रयोजन था? भौतिक सृष्टि केवल मानसिक अथवा आध्यात्मिक सत्ता कैसे कर सकती है? यदि इसका उपादान कोई भौतिक पदार्थ मान भी लिया जाय तो वह उसका नियंत्रण कैसे कर सकता है? वह स्वयं भौतिक शरीर अथवा उपकरणों की सहायता से कार्य करता है अथवा बिना उसकी सहायता के? सृष्टि के हुए बिना वे उपकरण और वह भौतिक शरीर कहाँ से आए? ऐसी सृष्टि रचने से ईश्वर का, जिसको उसके भक्त सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और कल्याणकारी मानते हैं, क्या प्रयोजन है, जिसमें जीवन का अंत मरण में, सुख का अंत दु:ख में संयोग का वियोग में और उन्नति का अवनति में हो? इस दु:खमय सृष्टि को बनाकर, जहाँ जीव को खाकर जीव जीता है और जहाँ सब प्राणी एक दूसरे शत्रु हैं और आपस में सब प्राणियों में संघर्ष होता है, भला क्या लाभ हुआ है? इस जगत् की दुर्दशा का वर्णन योगवशिष्ठ के एक श्लोक में भली भाँति मिलता है, जिसका आशय निम्नलिखित है--
सिर्फ इसलिए कि विज्ञान प्रयोग में, समझा नहीं सकता जैसे प्यार जो कविता लिखने के लिए कवि को प्रेरित करता है, इसका अर्थ यह नहीं है कि धर्म कर सकता है। यह कहने के लिए एक सरल और तार्किक भ्रांति हैं' कि, 'यदि विज्ञान कुछ ऐसा नहीं कर सकता है, तो धर्म कर सकता है।-रिचर्ड डॉकिन्स'
ईश्वरवादी एक युक्ति यह दिया करते हैं कि इस भौतिक संसार में सभी वस्तुओं के अंतर्गत और समस्त सृष्टि में, नियम और उद्देश्य सार्थकता पाई जाती है। यह बात इसकी द्योतक है कि इसका संचालन करनेवाला कोई बुद्धिमान ईश्वर है इस युक्ति का अनीश्वरवाद इस प्रकार खंडन करता है कि संसार में बहुत सी घटनाएँ ऐसी भी होती हैं जिनका कोई उद्देश्य, अथवा कल्याणकारी उद्देश्य नहीं जान पड़ता, यथा अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, बाढ़, आग लग जाना, अकालमृत्यु, जरा, व्याधियाँ और बहुत से हिंसक और दुष्ट प्राणी। संसार में जितने नियम और ऐक्य दृष्टिगोचर होते हैं उतनी ही अनियमितता और विरोध भी दिखाई पड़ते हैं। इनका कारण ढूँढ़ना उतना ही आवश्यक है जितना नियमों और ऐक्य का। जैसे, समाज में सभी लोगों को राजा या राज्यप्रबंध एक दूसरे के प्रति व्यवहार में नियंत्रित रखता है, वैसे ही संसार के सभी प्राणियों के ऊपर शासन करनेवाले और उनको पाप और पुण्य के लिए यातना, दंड और पुरस्कार देनेवाले ईश्वर की आवश्यकता है। इसके उत्तर में अनीश्वरवादी यह कहता है कि संसार में प्राकृतिक नियमों के अतिरिक्त और कोई नियम नहीं दिखाई पड़ते। पाप और पुण्य का भेद मिथ्या है जो मनुष्य ने अपने मन से बना लिया है। यहाँ पर सब क्रियाओं की प्रतिक्रियाएँ होती रहती हैं और सब कामों का लेखा बराबर हो जाता है। इसके लिए किसी और नियामक तथा शासक की आवश्यकता नहीं है। यदि पाप और पुण्य के लिए दंड और पुरस्कार का प्रबंध होता तथा उनको रोकने और करानेवाला कोई ईश्वर होता; और पुण्यात्माओं की रक्षा हुआ करती तथा पापात्माओं को दंड मिला करता तो ईसामसीह और गांधी जैसे पुण्यात्माओं की नृशंस हत्या न हो पाती।
भारतीय दर्शन में नास्तिक शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।
(1) जो लोग वेद को परम प्रमाण नहीं मानते वे नास्तिक कहलाते हैं। इस परिभाषा के अनुसार बौद्ध, जैन और लोकायत मतों के अनुयायी नास्तिक कहलाते हैं और ये तीनों दर्शन ईश्वर या वेदों पर विश्वास नहीं करते इसलिए वे नास्तिक दर्शन कहे जाते हैं।
(2) जो लोग परलोक और मृत्युपश्चात् जीवन में विश्वास नहीं करते; इस परिभाषा के अनुसार केवल चार्वाक दर्शन जिसे लोकायत दर्शन भी कहते हैं, भारत में नास्तिक दर्शन कहलाता है और उसके अनुयायी नास्तिक कहलाते हैं।
(3) जो लोग ईश्वर (खुदा, गॉड) के अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। ईश्वर में विश्वास न करनेवाले नास्तिक कई प्रकार के होते हैं। घोर नास्तिक वे हैं जो ईश्वर को किसी रूप में नहीं मानते। चार्वाक मतवाले भारत में और रैंक एथीस्ट लोग पाश्चात्य देशें में ईश्वर का अस्तित्व किसी रूप में स्वीकार नहीं करते; अर्धनास्ति उनका कह सकते हैं जो ईश्वर का सृष्टि, पालन और संहारकर्ता के रूप में नहीं मानते।
1882 और 1888 के बीच, मद्रास सेकुलर सोसाइटी ने मद्रास से द थिचर (तमिल में तट्टूविवेसिनी) नामक पत्रिका प्रकाशित की। पत्रिका ने अज्ञात लेखकों द्वारा लिखे गए लेख और लंदन सेकुलर सोसाइटी के जर्नल से पुनर्प्रकाशित आलेखों को लिखा, जो मद्रास सेक्युलर सोसाइटी को खुद से संबद्ध माना जाता था
पेरियार ई। वी। रामसामी (1879-1973) स्व-सम्मान आंदोलन के एक नास्तिक और बुद्धिवादी नेता और द्रविड़ कज़गम थे। असंबद्धता पर उनके विचार जाति व्यवस्था के उन्मूलन पर आधारित हैं, जाति व्यवस्था के विस्मरण को प्राप्त करने के लिए धर्म को वंचित होना चाहिए।
सत्येंद्र नाथ बोस (18 9 4-1974) एक नास्तिक भौतिक विज्ञानी थे जो गणितीय भौतिकी में विशेषज्ञता रखते थे। बोस-आइंस्टीन के आंकड़ों के लिए नींव और बोस-आइंस्टीन घनीभूतता के सिद्धांत को प्रदान करते हुए, 1 9 20 के दशक में क्वांटम यांत्रिकी पर उनके काम के लिए वे सबसे अच्छी तरह जानते हैं।
मेघनाद साहा (18 9 3 - 1 9 56) एक नास्तिक खगोल-भौतिकवादी थे जो कि साहा समीकरण के विकास के लिए जाना जाता था, जो सितारों में रासायनिक और भौतिक स्थितियों का वर्णन करता था।
जवाहरलाल नेहरू (188 9 -1964), भारत का पहला प्रधान मंत्री अज्ञेय था (नास्तिक नहीं)। [41] उन्होंने अपनी आत्मकथा, टॉवर्ड फ्रीडम (1 9 36), धर्म और अंधविश्वास पर अपने विचारों के बारे में लिखा था। [42]
भगत सिंह (1 9 07-19 31), एक भारतीय क्रांतिकारी और समाजवादी राष्ट्रवादी, जिसे ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल करने के लिए फांसी दी गई थी। उन्होंने अपने विचार निबंध में क्यों मैं एक नास्तिक हूं, जो उसकी मौत से पहले जेल में लिखा था।[2]
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (1 910-199 5), नास्तिक खगोल-भौतिकीविद जो सितारों की संरचना और विकास पर अपने सैद्धांतिक काम के लिए जाना जाता था। उन्हें 1 9 83 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
गोपाराजू रामचंद्र राव (1 9 02-19 75), जो उनके उपनाम "गोरा" के नाम से जाना जाता था, एक सामाजिक सुधारक, जाति-विरोधी कार्यकर्ता और नास्तिक थे। वह और उनकी पत्नी, सरस्वती गोरा (1 912-2007) जो नास्तिक और सामाजिक सुधारक भी थे, ने 1 9 40 में नास्तिक केंद्र की स्थापना की। [44] नास्तिक केंद्र सामाजिक परिवर्तन के लिए काम कर रहे एक संस्थान है। [45] गोरा ने सकारात्मक नश्वरवाद के अपने जीवन का एक मार्ग के रूप में व्याख्या किया। [44] बाद में उन्होंने 1 9 72 की अपनी किताब, सकारात्मक नास्तिक में सकारात्मक नास्तिकता के बारे में अधिक लिखा। [46] गोरा ने 1 9 72 में पहले विश्व नास्तिक सम्मेलन का भी आयोजन किया। इसके बाद, नास्तिक केंद्र ने विजयवाड़ा और अन्य स्थानों में कई विश्व नास्तिक सम्मेलनों का आयोजन किया। [45]
खुशावंत सिंह (1 915-2014), सिख निष्कर्षण के एक प्रमुख और विपुल लेखक, स्पष्ट रूप से गैर-धार्मिक थे।
1 99 7 में भारतीय फेडरेशन ऑफ रेशनलिस्ट एसोसिएशन की स्थापना हुई थी।
अमर्त्य सेन (1933-), एक भारतीय अर्थशास्त्री, दार्शनिक और महान प्रत्याशी, एक नास्तिक है [48] और उनका मानना है कि यह हिंदू धर्म, लोकायत में नास्तिक स्कूलों में से एक के साथ जुड़ा हो सकता है।
2008 में, वेबसाइट निर्निष्ट की स्थापना की गई थी। बाद में भारत में स्वतंत्र विचार और धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद को बढ़ावा देने के लिए एक संगठन बन गया। [52]
200 9 में, इतिहासकार मीरा नंदा ने "द गॉड मार्केट" नामक एक पुस्तक प्रकाशित की यह जांच करता है कि बढ़ते मध्यम वर्ग में हिंदू धार्मिकता की लोकप्रियता कितनी है, क्योंकि भारत अर्थव्यवस्था को उदार बना रहा है और वैश्वीकरण अपना रहा है। [53]
मार्च 200 9 में, केरल में, जनसाधारण को संबोधित करते हुए एक देहाती पत्र को केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल द्वारा जारी किया गया था जिसमें सदस्यों को राजनीतिक पार्टियों के लिए मतदान नहीं करने का आग्रह किया गया था जो नास्तिकता की वकालत करते हैं। जुलाई 2010 में, एक अन्य समान पत्र जारी किया गया था। [56]
10 मार्च 2012 को, सनाल इडामारुकू ने विले पार्ले में एक तथाकथित चमत्कार की जांच की, जहां एक यीशु की मूर्ति रो रही थी और निष्कर्ष निकाली कि समस्या दोषपूर्ण जल निकासी के कारण हुई थी। उस दिन बाद में, कुछ चर्च सदस्यों के साथ एक टीवी चर्चा के दौरान, एडामारुकु ने कैथोलिक चर्च ऑफ मेरेल-मॉन्गेरिंग पर आरोप लगाया। 10 अप्रैल को, महाराष्ट्र ईसाई युवा फोरम के अध्यक्ष एंजेलो फर्नांडीस ने भारतीय दंड संहिता धारा 2 9 5 ए के तहत इडामारुकु के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज की। [57] जुलाई में फिनलैंड के दौरे पर एडमारुकू को एक दोस्त ने सूचित किया था कि उनके घर पर पुलिस का दौरा किया गया था। चूंकि अपराध जमानती नहीं है, इसलिए एडारमुरु फिनलैंड में रहे। [58]
शुक्रवार 7 जुलाई 2013 को, निर्गुरु ने भारत में पहली "हग अ नास्तिक डे" का आयोजन किया था। घटना का उद्देश्य जागरूकता फैलाने और नास्तिक होने के साथ जुड़े कलंक को कम करना है।
20 अगस्त 2013 को नरेंद्र दाभोलकर, एक तर्कसंगत और विरोधी अंधविश्वास प्रचारक, दो अज्ञात हमलावरों द्वारा गोली मार दी गई, जबकि वह सुबह की सैर पर थे।
भारतीय मुसलमानों की बढ़ती संख्या धीरे-धीरे इस्लाम को छोड़ रही है, एक सवाल रखने वाले दिमाग से प्रेरित है और पूर्व मुसलमानों के समूह में शामिल हो रहा है।[3]
नास्तिक अर्थात् अनीश्वरवादी लोग सभी देशों और कालों में पाए जाते हैं। इस वैज्ञानिक और बौद्धिक युग में नास्तिकों की कमी नहीं है। बल्कि यह कहना ठीक होगा कि ऐसे लोग आजकल बहुत कम मिलेंगे जो नास्तिक (अनीश्वरवादी) नहीं है। नास्तिकों का कहना यह है कि ईश्वर में विश्वास करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। सर्जक मानने की आवश्यकता तो तभी होगी जब कि यह प्रमाणित हो जाए कि कभी सृष्टि की उत्पत्ति हुई होगी। यह जगत् सदा से चला आ रहा जान पड़ता है। इसके किसी समय में उत्पन्न होने का कोई प्रमाण ही नहीं है। उत्पन्न भी हुआ तो इसका क्या प्रमाण है कि इसकी विशेष व्यक्ति ने बनाया हो, अपने कारणों से स्वत: ही यह बन गया हो। इसका चालक और पालक मानने की भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि जगत् में इतनी मारकाट, इतना नाश और ध्वंस तथा इतना दु:ख और अन्याय दिखाई पड़ता है कि इसका संचालक और पालक कोई समझदार और सर्वशक्तिमान् और अच्छा भगवान नहीं माना जा सकता, संभवतः वो एक विक्षिप्त शक्तिधारक ही हो सकता है। संसार में सर्जन और संहार दोनों साथ साथ चल रहे हैं। इसलिए यह कहना व्यर्थ है, कि किसी दिन इसका पूरा संहार हो जाएगा और उसके करने के लिए ईश्वर को मानने की आवश्यकता है। नास्तिकों के विचार में आस्तिकों द्वारा दिए गए ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए सभी प्रमाण प्रमाणाभास हैं।
नरेंद्र नायक ने तीन बार हमला किया है और दो बार उनके स्कूटर से क्षतिग्रस्त होने का दावा किया है, एक हमले में उसे सिर की चोटों के साथ छोड़ दिया गया है। इससे उन्हें आत्मरक्षा के सबक लेने और नन्ंचुक ले जाने के लिए मजबूर किया गया। मेघ राज मिटर का घर हिंदू दूध के चमत्कार को खारिज करने के बाद एक भीड़ से घिरा हुआ था, जिससे उसे पुलिस को बुलाया गया।
15 मार्च 2007 को, नास्तिक बांग्लादेशी लेखक तसलीमा नसरीन ने मस्जिद के बारे में अपमानजनक बयान देने के लिए मौलाना तौकीर रजा खान नामक एक मुस्लिम मौलवी द्वारा, भारत में रहने पर, 7 लाख रुपये का ब्योरा घोषित किया। दिसंबर 2013 में, धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने के लिए हसन रजा खान नामक एक कैदी ने बरेली में नासिरिन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। नशीरिन ने ट्विटर पर कथित तौर पर ट्वीट किया था कि "भारत में, अपराधियों जो महिलाओं के खिलाफ फतवे जारी करते हैं उन्हें दंडित नहीं किया जाता है।" रजा खान ने कहा कि अपराधियों के मौलवियों पर आरोप लगाकर, नशीरीन ने धार्मिक भावनाओं को नुकसान पहुंचाया था।
2 जुलाई 2011 को, केरल के यूकेथिवाद्दी सांगम के सचिव यू। कलनाथन का घर, वलिक्कुनु पर हमला किया गया, जब उन्होंने टेलीविजन पर सुझाव दिया कि पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने का उपयोग जन कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। 20 अगस्त 2013 को नरेंद्र दाभोलकर एक तर्कसंगत और विरोधी अंधविश्वास प्रचारक की हत्या कर दी गई।
16 फरवरी 2015 को अज्ञात बंदूकधारियों ने तर्कवादी गोविंद पानसरे और उनकी पत्नी पर हमला किया था। बाद में वह 20 फरवरी को घावों से मर गया। 30 अगस्त 2015 को, एम.एम. कलबुर्गी, एक विद्वान और तर्कसंगत व्यक्ति, को अपने घर में गोली मार दी गई थी। वह अंधविश्वास और मूर्ति पूजा की आलोचना के लिए जाने जाते थे। इसके तुरंत बाद, एक और तर्कसंगत और लेखक, के.एस. भगवान, को एक धमकी पत्र मिला। गीता की आलोचना करके उन्होंने धार्मिक समूहों को नाराज किया था।
मार्च 2017 में, कोयंबतूर में एक भारतीय मुस्लिम युवा, 31 वर्षीय एक फारूक, जो नास्तिक बन गया, एक मुस्लिम कट्टरपंथी समूह के सदस्यों द्वारा मारे गए थे।[4][5]
भारतीय जनगणना स्पष्ट रूप से नास्तिकों की गणना नहीं करती है। 2011 की जनगणना में, धर्म के तहत छह विकल्पों में से चुनने के लिए प्रतिक्रिया प्रपत्र को प्रतिवादी की आवश्यकता थी। "अन्य" विकल्प नाबालिग या आदिवासी धर्मों के साथ-साथ नास्तिक और अज्ञेयवाद के लिए भी था।
अगस्त 2011 में भारत की जनगणना के आंकड़ों को जारी किया गया था। इसमें पता चला है कि 2,870,000 लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया में कोई धर्म नहीं बताया, देश की जनसंख्या का लगभग 0.27%। हालांकि, संख्या में नास्तिक, तर्कसंगतवाद और उन लोगों को शामिल किया गया जो उच्च शक्ति में विश्वास करते थे। द्रविड़ काजगम नेता के वीरमणी ने कहा कि यह पहली बार है जब गैर-धार्मिक लोगों की संख्या जनगणना में दर्ज की गई थी। हालांकि, उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि भारत में नास्तिकों की संख्या वास्तव में ऊंची थी क्योंकि बहुत से लोग अपने नास्तिकता को डर से नहीं दिखाते।
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