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हिन्दी भाषा में प्रदर्शित चलवित्र विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
जिस देश में गंगा बहती है हिन्दी भाषा की एक फ़िल्म है जो १९६० में प्रदर्शित हुई थी। इस फ़िल्म के निर्देशक थे राधू कर्माकर और निर्माता राज कपूर थे। इस फ़िल्म को १९६० के फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के अलावा तीन अन्य श्रेणियों में पुरस्कृत किया गया था।
जिस देश में गंगा बहती है | |
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फ़िल्म का पोस्टर | |
निर्देशक | राधू कर्माकर |
लेखक | अर्जुन देव रश्क |
निर्माता | राज कपूर |
अभिनेता | राज कपूर, ललिता पवार, प्राण |
छायाकार | तारा दत्त |
संपादक | जी. जी. मायेकर |
संगीतकार | शंकर जयकिशन |
निर्माण कंपनी |
आर के स्टूडियोज़ |
वितरक | आर के फ़िल्म्स |
प्रदर्शन तिथि |
1960 |
लम्बाई |
167 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
राजू (राज कपूर) एक भोला भाला अनाथ है जो गाने गाकर अपना पेट भरता है। एक दिन उसे ज़ख़्मी हालत में एक डाकुओं के गिरोह का सरदार मिलता है जिसकी जान राजू बचा लेता है। तभी वहाँ डाकुओं का वह गिरोह आ जाता है और सरदार का दाहिना हाथ राका (प्राण) राजू को पुलिसवाला समझकर सरदार के साथ उसे भी अपने साथ अपने अड्डे ले चलने का हुक़्म देता है। होश आने पर सरदार राका को बताता है कि राजू ने ही उसकी जान बचाई थी। सरदार की लड़की कम्मो (पद्मिनी) से राजू प्यार हो जाता है लेकिन कम्मो पर नज़र राका की भी है। कम्मो राजू को समझाती है कि दरअसल वो लोग अच्छे हैं क्योंकि अमीर लोग ग़रीबों को लूटकर अपनी तिजोरियाँ भरते हैं और वो लोग अमीरों को लूट कर ग़रीबों में पैसा वापस कर देते हैं। भोले राजू को यह बात अच्छी लगती है और वह गिरोह के साथ ही रहने लगता है।
एक दिन वह गिरोह किसी गांव के साहूकार की लड़की की शादी में धावा बोल देता है और लूट पाट के साथ साथ राका नव विवाहित दम्पति को भी मार देता है। यह बात राजू पर गहरा असर करती है और वह पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट (राज मेहरा) के पास जाकर बताता है कि डाकू अब राजगढ़ गांव में डाका डालने वाले हैं। जब पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट उससे कहता है कि वह राका और उसके सारे साथियों को मौत के घाट उतार देगा तो भोला राजू समझता है कि पुलिस भी उतनी ही ज़ालिम है जितने ये डाकू। वह भागकर राजगढ़ जा रहे डाकुओं के गिरोह को बीच में ही रोक लेता है और उनको पुलिस के इन्तज़ाम के बारे में ख़बर करता है। राका उसकी बात पर संदेह कर अपने एक आदमी को राजगढ़ जाकर हालात का जायज़ा लेने का हुक़्म देता है। लेकिन वह पुलिस की गोलियों का शिकार हो जाता है। राका और उसके साथी राजू को साथ लेकर अपने अड्डे वापस आ जाते हैं जहाँ सरदार के सामने राजू की पेशी होती है। राजू सबके सामने यह क़बूल करता है कि उसी ने डाकुओं की राजगढ़ में डाका डालने की योजना के बारे में पुलिस को ख़बर दी थी और राका से पूछता है कि जायज़ा लेने के लिए उसने किसी और को क्यों भेजा ख़ुद क्यों नहीं गया। राका उसे मारता है तो वह डाकुओं के अड्डे को छोड़ने का फ़ैसला कर लेता है लेकिन कम्मो के आग्रह पर नहीं जाता है। राका और सरदार भी वहाँ आ पहुँचते हैं और कम्मो उनसे कहती है कि उसने राजू को शक्ति की सौगन्ध खाकर अपना पति स्वीकार कर लिया है। राका आगबबूला हो जाता है और सरदार से राजू को गोली मारने को कहता है। जब सरदार इस बात से मुँह फेर लेता है तो वह सरदार को ही गोली मार देता है और कम्मो से जबरन शादी करने की कोशिश करता है और शादी के दिन राजू की नरबलि चढ़ाने का मन बना लेता है। कम्मो राका से बच कर भौजी (ललिता पवार), जो कि एक रोबदार डाकू की पत्नी है, के पास जाती है जो उसे और राजू को भाग निकलने में मदद करती है। दोनों भागकर पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट के पास जाते हैं और पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट कम्मो को क़ैद कर डाकुओं का सफ़ाया करने का हुक़्म दे देता है।
राजू वापस डाकुओं के अड्डे पर आकर डाकुओं के बीवी बच्चों से आग्रह करता है कि वे डाकुओं से हथियार डालने की ज़िद करें। डाकू अपने बीवी बच्चों की ख़ातिर हथियार डालने को तैयार हो जाते हैं। अकेला पड़ गया राका भी उनके साथ पुलिस के पास जाने को निकल पड़ता है। डाकू अपना अड्डा छोड़कर पुलिस की ओर रवाना होते हैं और उधर कम्मो पुलिस के दबाव में आकर पुलिस को डाकुओं के ठिकाने की तरफ़ ले चलती है। एक जगह दोनों दलों का टकराव होता है और राका के उकसाने पर डाकू फिर से हथियार उठाकर पुलिस से लोहा लेने का मन बना लेते हैं। तभी राजू डाकुओं के बीवी बच्चों को लेकर दोनों दलों के बीच में आकर खड़ा हो जाता है और फिर से डाकुओं से हथियार डाल देने का आग्रह करता है। राका समेत इस बार सभी डाकू अपने हथियार डालकर अपने और अपने परिवार को पुलिस के सुपुर्द कर देते हैं। राजू पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट से निवेदन करता है कि इनको फाँसी की सज़ा नहीं मिलनी चाहिये। पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट सबको आश्वासन देता है कि डाकुओं को अपने किये की सज़ा तो ज़रूर मिलेगी मगर मौत की सज़ा नहीं।
इस फ़िल्म के संगीतकार हैं शंकर जयकिशन की युगल जोड़ी और गीतकार हैं शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी।
गीत | गायक/गायिका | गीतकार | |
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१ | आ अब लौट चलें | मुकेश, लता मंगेशकर | शैलेन्द्र |
२ | बेगानी शादी में अबदुल्लाह दीवाना | मुकेश, लता मंगेशकर | शैलेन्द्र |
३ | हो मैनें प्यार किया | लता मंगेशकर | हसरत जयपुरी |
४ | हम भी हैं तुम भी हो | मुकेश, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर, लता मंगेशकर, गीता दत्त | शैलेन्द्र |
५ | जिस देश में गंगा बहती है | मुकेश | शैलेन्द्र |
६ | मेरा नाम राजू घराना अनाम | मुकेश | शैलेन्द्र |
७ | ओ बसंती पवन पागल | लता मंगेशकर | शैलेन्द्र |
८ | क्या हुआ ये मुझे क्या हुआ | लता मंगेशकर, आशा भोंसले | शैलेन्द्र |
९ | प्यार कर ले | मुकेश | शैलेन्द्र |
जीते
नामांकित
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