गोवा इंक्विज़िशन
ईसाइयों द्वारा भारतीयों का जबरन धर्मांतरण / From Wikipedia, the free encyclopedia
गोवा इंक्विज़िशन (पुर्तगाली: Inquisição de Goa, अंग्रेज़ी: Goa Inquisition) औपनिवेशिक काल के पुर्तगाली भारत में पुर्तगाली इंक्विज़िशन का ही विस्तार थी। यह पुर्तगाली साम्राज्य के भारतीय क्षेत्रों में रोमन कैथोलिक धर्म में जबरन धर्मपरिवर्तन कराने और कैथोलिक रूढ़िवाद को बनाए रखने के लिए स्थापित की गई थी।[1][2] इस संस्था के तहत औपनिवेशिक युग की पुर्तगाली सरकार और पुर्तगाली भारत में जेसुइट पादरियों ने हिंदुओं, मुस्लिमों, बेने इजरायल, परिवर्तित ईसाइयों और नसरानियों को सताया और उनका दमन किया। इसे 1560 में स्थापित किया गया था, 1774-78 अवधि में इसपर कुछ हद तक अंकुश लगाया गया और अंत में 1820 में समाप्त कर दिया गया।[3][4] इंक्विज़िशन ने उन लोगों को प्रताड़ित किया जो कैथोलिक धर्म में नए-नए परिवर्तित तो हो गए थे, किंतु जेसुइट पादरियों को उनपर संदेह था कि कहीं ये धर्मांतरण के बाद भी चोरी-छिपे अपने पुराने धर्म का पालन तो नहीं कर रहे। मुख्य रूप से, सताए गए लोगों पर छद्म-हिंदू धर्म (छिपकर हिंदू धर्म का पालन करना) का आरोप लगाया गया था। [5][6][7] कुछ दर्जन आरोपित मूल निवासियों को कई वर्षों तक कैद में रखा गया, सार्वजनिक रूप से कोड़े मारे गए, या, आपराधिक आरोप पर आश्रित मौत की सजा सुना दी गई, जो कि अक्सर अपराधी को काठ पर बाँधकर जलाकर दी जाती थी। [8][9] कैथोलिक ईसाई मिशनरियों को गोवा में जो भी किताब संस्कृत, अरबी, मराठी, या कोंकणी में लिखी गई मिलती, उसे वे जला दिया करते थे। साथ ही उन्होंने प्रोटेस्टेंट ईसाई पुस्तकों पर भी डच या अंग्रेजी व्यापारी जहाजों से गोवा में प्रवेश करने पर रोक लगा दी थी।[10]
गोवा में पुर्तगाली इंक्विज़िशन का पवित्र कार्यालय Inquisição de Goa गोवा इंक्विज़िशन | |
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गोवा में पुर्तगाली इंक्विज़िशन की मुहर | |
प्रकार | |
सदन प्रकार | पुर्तगाली इंक्विज़िशन का भाग |
इतिहास | |
स्थापित | 1560 |
भंग | 1820 |
सभा सत्र भवन | |
पुर्तगाली भारत |
गोवा में इंक्विज़िशन की स्थापना का अनुरोध जेसुइट मिशनरी फ्रांसिस जेवियर ने अपने मुख्यालय मलक्का से 16 मई 1546 को पुर्तगाल के राजा जॉन तृतीय को लिखे एक पत्र में किया था । [8][11][12] 1561 में इंक्विज़िशन की शुरुआत और 1774 में इसके अस्थायी उन्मूलन के बीच, कम से कम 16,202 व्यक्तियों को इसके द्वारा ट्रायल के लिए लाया गया था। 1820 में जब इंक्विज़िशन को समाप्त किया गया, तो गोवा इंक्विज़िशन के लगभग सभी रिकॉर्ड पुर्तगालियों द्वारा जला दिए गए।[6] इस कारण ट्रायल पर रखे गए लोगों की सटीक संख्या और उनके द्वारा निर्धारित दंडों को जानना असंभव है। [5] जो कुछ रिकॉर्ड बचे हैं, वे बताते हैं कि कम से कम 57 को उनके धार्मिक अपराध के लिए मार दिया गया था, और अन्य 64 को काठ पर बाँधकर इसलिए जलाया गया था क्योंकि सजा सुनाए जाने से पहले ही जेल में उनकी मृत्यु हो गई थी। [13][14]
फ्रांसीसी चिकित्सक चार्ल्स डेलन, जो स्वयं इंक्विज़िशन के शिकार थे, कई रिकॉर्ड छोड़कर गए। उनके अलावा भी अन्य लोग बताते हैं कि छिपकर हिंदू धर्म का पालन करने के दोषी पाए गए लोगों में से लगभग 70% को मौत की सजा दी गई। कई कैदियों भूखा मार डाला गया, और आम तौर पर इंक्विज़िशन के दौरान भारतीय लोगों के ख़िलाफ़ नस्लीय भेदभाव प्रचलित था।[2][15]