ख़ालिस्तान आंदोलन
अलगाववादी आंदोलन / From Wikipedia, the free encyclopedia
ख़ालिस्तान (अर्थ: "ख़ालसा की भूमि") भारत के पंजाब राज्य के सिख अलगाववादियों द्वारा प्रस्तावित देश को दिया गया नाम है। ख़ालिस्तान के क्षेत्रीय दावे में वर्तमान भारतीय प्रांत पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली तथा राजस्थान के कुछ क्षेत्र भी शामिल हैं। ख़ालिस्तानी अलगाववादियों ने 29 अप्रैल 1986 को भारत से अपनी एकतरफ़ा आज़ादी की घोषणा की थी। 1980 और 1990 के दशक के दौरान, ख़ालिस्तान आंदोलन अपने चरम पर था, लेकिन 1995 तक आंदोलन को भारत सरकार द्वारा दबा दिया गया।
ख़ालिस्तान |
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राष्ट्रवाक्य: ਅਕਾਲ ਸਹਾਇ "अकाल सहाए" |
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राष्ट्रगान: ਦੇਹ ਸਿਵਾ ਬਰ ਮੋਹਿ ਇਹੈ "देह शिवा बर मोहि इहै" |
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नक्शा
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स्थापना | ||||||
- | अलग सिख राष्ट्र के लिए प्रस्ताव | 9 मार्च 1946 | ||||
- | आनंदपुर साहिब प्रस्ताव | 28 अगस्त 1977 | ||||
- | धर्म युद्ध मोर्चा | 4 अगस्त 1982 – 10 जून 1984 |
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- | ऑपरेशन ब्लू स्टार | 1 जून 1984 – 10 जून 1984 |
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- | ऑपरेशन वुडरोज़ | जून–सितंबर 1984 | ||||
- | ऑपरेशन शुद्धिकरण | 1984 | ||||
- | आज़ादी की घोषणा | 29 अप्रैल 1986 | ||||
- | ऑपरेशन ब्लैक थंडर I | 30 अप्रैल 1986 | ||||
- | ऑपरेशन ब्लैक थंडर II | 9 मई 1988 | ||||
- | पंजाब बग़ावत | 1984–1995 |
ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के बाद एक अलग सिख राष्ट्र की मांग शुरू हुई। 1940 मेें ख़ालिस्तान का जिक्र पहली बार "ख़ालिस्तान" नामक एक पुस्तिका में किया गया। 1947 के बाद प्रवासी सिखों के वित्तीय और राजनीतिक समर्थन तथा पाकिस्तान की ISI के समर्थन से ख़ालिस्तान आंंदोलन भारतीय राज्य पंजाब में फला-फूूूूला और 1980 के दशक तक यह आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया। जगजीत सिंह चौहान के अनुसार 1971 के भारत–पाकिस्तान युुद्ध के बाद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टों ने जगजीत सिंह चौहान के साथ अपनी बातचीत के दौरान, ख़ालिस्तान बनाने में मदद का प्रस्ताव रखा था।[1] 1984 के दशक में उग्रवाद की शुरुआत हुई जो 1995 तक चला इस उग्रवाद को कुचलने के लिए भारत सरकार और सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार समेत कई ऑपरेशन चलाए इन कार्यवाहीयों से उग्रवाद तो बहुत हद तक ख़त्म हो गया पर इसमें कई आम नागरिकों की जान गईं तथा भारतीय सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगे।[2] भारी पुलिस एवं सैन्य कार्रवाई तथा एक बड़ी सिख आबादी का इस आंदोलन से मोहभंग होने के कारण 1990 तक यह आंदोलन कमज़ोर पड़ने लगा जिस कारण यह आंदोलन अपने उद्देश्य तक पहुँचने में विफल रहा।[3]