खरगोन
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खरगोन (Khargone) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। यहाँ पर प्रत्येक वर्ष जनवरी - फरवरी माह में नवग्रह मेला लगता है जिसमे आस पास के सभी ग्रामीण क्षेत्र के लोग घूमने आते है। यहाँ पर 2020 के मेले में बॉलीवुड अभिनेता गोविंदा जी भी आये थे। [1][2]
खरगोन Khargone | |
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खरगोन नगरपालिका मुख्यालय | |
निर्देशांक: 21.8200°N 75.6187°E | |
ज़िला | खरगोन ज़िला |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
देश | भारत |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 1,06,454 |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी और निमाड़ी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 451001 |
दूरभाष कोड | 07282 |
वाहन पंजीकरण | MP 10 |
खरगोन नगर, दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश राज्य, मध्य भारत, नर्मदा नदी की सहायक कुंदा नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। खरगोन ज़िला मध्यप्रदेश की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर स्थित है। 21 अंश 22 मिनिट - 22 अंश 35 मिनिट (उत्तर) अक्षांश से 74 अंश 25 मिनिट - 76 अंश 14 मिनिट (पूर्व) देशांश के बीच यह जिला फैला है। इसका क्षेत्रफल लगभग 8030 वर्ग कि॰मी॰ है। इस जिले के उत्तर में धार, इंदौर व देवास, दक्षिण में महाराष्ट्र, पूर्व में खण्डवा, बुरहानपुर तथा पश्चिम में बड़वानी है। नर्मदा घाटी के लगभग मध्य भाग में स्थित इस जिले के उत्तर में विंध्याचल एवं दक्षिण में सतपुड़ा पर्वतश्रेणियां हैं। नर्मदा नदी जिले में लगभग 50 कि॰मी॰ बहती है। कुंदा तथा वेदा अन्य प्रमुख नदियां हैं। देजला-देवड़ा, गढ़ी गलतार, अंबकनाला तथा अपर वेदा प्रमुख सिंचाई परियोजनाएं हैं। महेश्वर पनबिजली तथा सिंचाई योजना नर्मदा पर बनी तीन प्रमुख पनबिजली व सिंचाई योजनाओं में से एक है। खरगोन जिला मुख्यालय के अक्षांश व देशांश क्रमशः 21°49'18" (उत्तर) तथा 75°37'10" (पूर्व) हैं। यह शहर औसत समुद्र सतह से लगभग 283 मीटर (± 9 मीटर) की ऊंचाई पर है।
इतिहासकारों के मतानुसार नर्मदा घाटी की सभ्यता अत्यंत प्राचीन है। रामायण काल, महाभारत काल, सातवाहन, कनिष्क, अभिरोहर्ष, चालुक्य, भोज, होलकर, सिंधिया, मुगल तथा ब्रिटिश आदि से यह क्षेत्र जुड़ा हुआ है। विभिन्न कालों में यहां जैन, यदुवंशी, सिद्धपंथी, नागपंथी ,गुरवपंथी,आदि का प्रभाव रहा है। प्राचीन स्थापत्य कला के अवशेष इस क्षेत्र के ऐतिहासिक गाथाओं को व्यक्त करने में आज भी सक्षम हैं। इस क्षेत्र में प्राप्त पाषाणकालीन शस्त्रों से भी यह सिद्ध होता है।
भारत के उत्तर व दक्षिण प्रदेशों को जोड़ने वाले प्राकृतिक मार्ग पर बसा यह क्षेत्र सदैव ही महत्वपूर्ण रहा है। इतिहास के विभिन्न कालखण्डों मे यह क्षेत्र - महेश्वर के हैहय, मालवा के परमार, असीरगढ़ के अहीर, माण्डू के मुस्लिम शासक, मुगल तथा पेशवा व अन्य मराठा सरदारों - होल्कर, शिंदे, पवार - के साम्राज्य का हिस्सा रहा है। इसे बीजागढ़ की सरकार में एक महल का मुख्यालय बनाए जाने पर इसकी महत्ता बढ़ी। अब यहाँ एक पुराना क़िला और कई मक़बरे व महल हैं। नदी के तट को पत्थर के तटबंध से पक्का कर दिया गया है और घाटों का निर्माण करके सुंदर बनाया गया है। खरगौन स्थित नवग्रह मंदिर प्रसिद्ध है और यहाँ प्रतिवर्ष दिसंबर और जनवरी में मेले का आयोजन होता है। 1 नवम्बर 1956 को मध्य प्रदेश राज्य के गठन के साथ ही यह जिला "पश्चिम निमाड़" के रूप में अस्तित्व में आ गया था। कालांतर में प्रशासनिक आवश्याकताओं के कारण दिनांक 25 मई 1998 को "पश्चिम निमाड़" को दो जिलों - खरगोन जिला एवं बड़वानी जिला में विभाजित किया गया।
ऐसा अनुमान है कि आर्य एवं अनार्य सभ्यताओं की मिश्रित भूमि होने के कारण यह क्षेत्र "निमार्य" नाम से जाना जाने लगा जो कि कालांतर में अपभृंष हो कर "निमार" एवं फिर "निमाड़" में परिवर्तित हो गया। (निमा = आधा)। एक अन्य मतानुसार यह नाम नीम के वृक्षों के कारण पड़ा। इसे प्राचीनकाल मे खरगुशन की नगरी भी कहा जाता था।
खरगोन जिले की जनसंख्यया कुल १८ लाख है जबकि शहर में उसका हिस्सा डेढ़ लाख है। यहाँ अनेक जातियों के लोग बसते है। इनमें प्रमुख कुशवाह ( काछी ), पाटीदार, ब्राह्मण,सिरवी, क्षत्रिय सगरवंशी माली, बोह्ररा और मुस्लिम तथा कई एनी जातियाँ है। पाटीदार यहाँ कॆ 60 गाँवों में निवास करते है।
खरगोन सफेद सोने अर्थात कपास के व्यवसाय के लिये प्रसिध हे। खरगोन में कपास एवं मिर्ची उत्पादन अधिक होता है। खरगोन में कई जिनिंग फेक्टरी है। खरगोन जिले में बेड़िया में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मिर्ची मंडी है। और अब एक ओर मंडी खरगोन के पास ग्राम सैनीपुरा के नजदीक चालू होने वाली है।शासन ने निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया है। खरगोन जिले में मूंगफली का उत्पादन अच्छा होता है। यहाँ पर कपास अनुसंधान केंद्र भी स्थित है।जो खंडवा रोड पर है। कपास अनुसंधान केंद्र,कृषि विज्ञान केंद्र खरगोन के अंतर्गत आता है। नवग्रह मेले में बेलों का व्यापार किया जाता है।
खरगोन अपने ज़िले का एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्य और व्यापार केंद्र है और यहाँ कृषि उत्पाद और इमारती लकड़ी का बाज़ार है। यह कपास और अनाज का सुविकसित बाज़ार है। इस शहर में कपास ओटने और गांठ बनाने, चावल और तिलहन मिल और बीड़ी के कारख़ाने हैं। यह स्थान मोरिंडा टिंकटोरिया से रंजक उत्पादन के लिए भी जाना जाता है।
इस शहर में एक पुस्तकालय और कई सरकारी महाविद्यालय हैं, जो इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। यहाँ एक आधारभूत प्रशिक्षण संस्थान और संस्कृतशाला भी हैं।
खरगोन नगरी में नवग्रह मंदिर सुप्रसिद्ध है, जहाँ प्रत्येक वर्ष जनवरी फरवरी माह में नवग्रह मेला लगता है।
पर्यटन की दृष्टि से ग्राम नागझिरी में एक अति प्राचीन सुप्रसिद्ध श्री तिलकेश्वर महादेव जी का मंदिर भी है। जिनके बारे में वहां के पंडित पंकज किशोर व्यास के अनुसार भगवान महादेव हर महाशिवरात्रि की रात को तिल भर बढ़ते भी हैं। और अपने स्थान से खिसकते है इसीलिए इन महादेव का नाम तिलकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। यहाँ की महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, रामनवमी, और श्रावण मास के पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाए जाते है।
श्रेणी ऐतिहासिक महान पेशवा बाजीराव की समाधी रावेरखेड़ी में स्थित है। उत्तर भारत के लिए एक अभियान के समय उनकी मृत्यु यहीं नर्मदा किनारे हो गई थी। । रावेरखेड़ी के पास बकावां में नर्मदा के पत्थरों को तराश कर शिव-लिंग बनाए जाते हैं।
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