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कार्ब्युरेटर (अंग्रेज़ी:carburetor या carburettor) एक ऐसी यांत्रिक युक्ति है जो आन्तरिक दहन इंजन के लिये हवा और द्रव ईंधन को मिश्रित करती है। इसका आविष्कार कार्ल बेन्ज़ ने सन 1885 के पहले किया था।[1] बाद में 1886 में इसे पेटेंट भी कराया गया।[2] [3] कार्ल बेन्ज़ मर्सिडीज़ बेन्ज़ के संस्थापक हैं। इसका अधिक विकास हंगरी के अभियांत्रिक जैनोर सोएन्स्का और डोनैट बैन्की ने 1893 में किया था।[4]. बर्मिंघम, इंगलैंड के फ्रेड्रिक विलियम लैंकेस्टर ने कार्ब्युरेटर का परीक्षण कारों पर किया और १८९६ में उसने अपने भाई के साथ इंगलैंड की प्रथम पेट्रोल कार बनाई। इस कार में एक ही सिलिंडर ८ हॉर्स पावर (४ किलोवॉट) का अन्तर्दहन इंजन चेन ड्राइव के संग लगा था। अगले ही वर्ष उन्होंने इसे दो क्षैतिज विरोधक सिलिंडरों सहित नये कार्ब्युरेटर डिज़ाइन के साथ निकाला। इस प्रतिरूप ने वर्ष १९०० में १००० मील (१६०० कि.मी.) की दूरी निर्विघ्न तय की।
कार्ब्युरेटर शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच शब्द कार्ब्योर से हुई है, जिसका अर्थ है कार्बाइड।[5] ईंधन रासायनिकी के अनुसार, कार्ब्युरेटर ईंधन में कार्बन की मात्रा को वाष्पशील हाइड्रोकार्बन से क्रिया करने के बाद बढ़ाता है। सामान्यतः यह ईंधन को हवा में मिश्रित करने का काम करता है। १९८० के कुछ वर्षों बाद तक यह युक्ति ईंधन के दहन की प्राथमिक युक्ति हुआ करती थी, किंतु फ्यूअल इंजेक्शन प्रणाली के आने और बढ़ते प्रयोग के कारण कार्ब्युरेटर का प्रयोग काफी कम हुआ है। फिर भी मोटरसाइकिल आदि में इसका प्रयोग आज भी होता है।[2]
कार्ब्युरेटर एक नली का बना होता है, जिसके संतुलन हेतु एक पत्ती (प्लेट) लगी होती है। इस पत्ती को थ्रोटल प्लेट कहा जाता है।[2] यह प्लेट वायु के बहाव का नियंत्रण करके संतुलन बनाती है। इंजन के स्टार्ट होने पर ईंधन में मिश्रित होने वाली वायु के अनुपात को यही थ्रोटल-प्लेट नियंत्रित करती है। कार्ब्युरेटर के संकरे भाग, जिसे वेंच्युरी कहते हैं; में लगे एक जेट से निर्वात के द्वारा ईंधन को खींचा जाता है। इस ईंधन की गति वहाँ उपस्थित वायु के दबाव द्वारा नियंत्रित होती है। यह बर्नॉली के सिद्धांत के अनुसार होता है। इसी सिद्धांत पर कार्ब्युरेटर काम करता है। यही कार्ब्युरेटर यदि वायु और ईंधन के अनुपात में गड़बड़ करने लगे, तो इंजन के स्टार्ट होने में समस्या आ जाती है। यह अनुपात अधिक होने पर इंजन काम नहीं करता है, बंद हो जाता है, या स्टार्ट ही नहीं हो पाता है। यही अनुपात बहुत कम होने पर इंजन खराब होने का खतरा भी होता है।
ठंडे वातावरण में, इंधन मुश्किल से वाष्पीकृत होता है और सिलिंडरों में जाने के बजाय, जल्दी ही पुनर्जलीकृत (कंडेन्स) होकर इंजन की दीवारों पर जम जाता है। इस कारण सिलिंडरों पर पर्याप्त ईंधन मात्रा न पहुंच पाने से इंजन स्टार्ट होने में समस्या आती है। तब वायु-ईंधन का एक सघन मिश्रण (अधिक इंधन अनुपात) इंजन में तब तक भेजा जाता है, जब तक कि इंजन पर्याप्त तापमान पर पहुंच नहीं जाता, जिससे कि ईंधन अपने आप ही वाष्पीकृत होकर जेट से सिलिंडरों तक पहुँच जाये। इस अतिरिक्त ईंधन मात्रा को देने हेतु चोक का प्रयोग किया जाता है। इस युक्ति के द्वारा कार्ब्युरेटर के प्रवेशद्वार पर वेन्च्युरी से पहले वायु का बहाव कम किया जाता है। इस कारण कार्ब्युरेटर बैरल में अतिरिक्त निर्वात उत्पन्न होता है, जो मुख्य धारा से अतिरिक्त ईंधन खींचता है और आगे देता है। इस तरह इंजन कम तापमान में भी स्टार्ट हो पाता है और सही तापमान आने पर चोक बंद कर दिया जाता है।[6]
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