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कसावा (cassava) पृथ्वी के उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक क्षुप है जिसकी मोटी जड़ आलू की तरह मंड (स्टार्च) से युक्त होती है। चावल और मक्के के बाद, मानव-आहार में यह यह विश्व में तीसरा सबसे बड़ा कार्बोहाइड्रेट का स्रोत है। कसावा मूल-रूप से दक्षिण अमेरिका का वनस्पति था लेकिन अब विश्व-भर के गरम क्षेत्रों में मिलता है। जब इसको पीसकर पाउडर या मोती-आकार के कणों में बनाया जाय तो यह टैपियोका (tapioca) भी कहलाता है। कसावा सूखे की परिस्थिति में और कम-ऊपजाऊ धरती पर भी उग सकने वाला पौधा है।[1][2][3]
कसावा Cassava | |
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कसावा के पत्ते | |
चित्र:Manihot esculenta 00001.jpg | |
कसावा की कन्द | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
अश्रेणीत: | सपुष्पक (Angiosperms) |
अश्रेणीत: | युडिकॉट (Eudicots) |
अश्रेणीत: | रोज़िड (Rosids) |
गण: | मालपिग्यालेस (Malpighiales) |
कुल: | युफ़ोर्बीएसी (Euphorbiaceae) |
उपकुल: | क्रोटोनोइडेयाए (Crotonoideae) |
वंश समूह: | मैनिहोटेआए (Manihoteae) |
वंश: | Manihot |
जाति: | M. esculenta |
द्विपद नाम | |
Manihot esculenta क्रान्ट्ज़ | |
कसावा मीठी और कड़वी नसलों में मिलता है। अन्य कन्द-जड़ों की तरह इसमें भी कुछ वषैले पदार्थ उपस्थित होते है, जिनकी मात्रा कड़वी नसलों में मीठी नसलों से कई अधिक होती है।[4] खाने से पहले इसे सही प्रकार से तैयार करना आवश्यक है वरना इससे साइनाइड विष-प्रभाव हो सकता है, जिससे घेंघा रोग, गतिभंग और लकवा होने की सम्भावना है।[5][6] कुछ क्षेत्रों में किसान कड़वी नसलों को उगाना पसंद करते हैं क्योंकि नाशीजीव और पशु उन्हें खाना पसंद नहीं करते और उनके फ़सलों की चोरी भी कम होती है।[7][8]
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