कटक
ओडिशा का दूसरा सबसे बड़ा शहर विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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कटक (କଟକ) भारत के ओड़िशा राज्य के कटक ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। कटक महानदी के किनारे बसा हुआ है। यह १९७२ तक लगभग सहस्र वर्षों तक उत्कल/ओड़िशा की राजधानी थी।[1][2][3] तत् पश्चात यह ओडिशा की न्यायिक, वाणिज्यिक, सांस्कृतिक राजधानी रही है । यह ओडिशा का सर्व वृहत् नगर है ।
कटक କଟକ | |
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कटक के कुछ दृश्य | |
निर्देशांक: 20.481°N 85.870°E | |
ज़िला | कटक ज़िला |
प्रान्त | ओड़िशा |
देश | भारत |
ऊँचाई | 36 मी (118 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 9,21,321 |
भाषा | |
• प्रचलित भाषाएँ | ओड़िया |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 7530xx/754xxx |
दूरभाष कोड | 0671 |
वाहन पंजीकरण | OD-05 |
कटक ओड़िशा का एक प्राचीन नगर है, जो रौप्य/रजत नगर (Silver City) के नाम से भी जाना जाता है। इसका इतिहास एक हज़ार वर्ष से भी ज्यादा पुराना है। करीब नौ शताब्दियों तक कटक ओड़िशा की राजधानी रहा और वर्तमान आज यहाँ की व्यावयायिक राजधानी के रूप में जाना जाता है। केशरी वंश के समय यहाँ बने सैनिक शिविर कटक के नाम पर इस शहर का नाम रखा गया था। यहाँ के किले, मंदिर और संग्रहालय पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। कटक ओड़िशा की मध्ययुगीन राजधानी थी, जिसे पद्मावती भी कहते थे। यह नगर महानदी और उसकी सहायक नदी काठजोड़ी के मिलन स्थल पर बना है।
कटक शहर की स्थापना केशरी राजवंश के सम्राट नृप केशरी ने सन 989 ई. में की थी। सन 1002 ई. में सम्राट मर्कट केशरी ने शहर को बाढ़ से रक्षा करने के लिए पत्थर की दीवार बनाई थी। करीब 1000 वर्षों तक कटक ओड़िशा की राजधानी रही। गंग वंशी तथा सूर्य वंशी साम्राज्य की राजधानी भी कटक रहा है। ओड़िशा के आखिरी हिन्दु राजा मुकुंददेव के उपरांत कटक शहर पहले इस्लामी और बाद में शाहजहाँ के शासन काल में मुग़ल सल्तनत के अधीन रहा, जहाँ इसे एक उच्च स्तरीय प्रांत की मान्यता मिली थी। 1750 तक ओड़िशा मराठाओं के अधीन आने के साथ साथ कटक भी उनके अधीन आ गया। इसके उपरांत सन 1803 ई. में कटक अंग्रेज़ों के अधीन आया। 1826 में यह ओड़िशा प्रांत की राजधानी बनी। देश के स्वाधीन होने के उपरांत सन 1968 में ओड़िशा की राजधानी कटक से भुवनेश्वर में स्थानांतरित कर दिया गया।
यह कटक का सबसे प्रमुख पर्यटक स्थल है। महानदी के किनारे बना यह किला खूबसूरती से तराशे गए दरवाज़ा और नौ मंज़िला महल के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण गंग वंश ने 14वीं शताब्दी में करवाया था। युद्ध के समय नदी के दो किनारों पर बने किले इस किले की रक्षा करते थे। वर्तमान में इस किले के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम है, जिसको बारबाटी स्टेडियम कहा जाता है। पाँच एकड़ में फैले इस स्टेडियम में 30000 से भी ज्यादा लोग बैठ सकते हैं। यहां खेल प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए आयोजन होता रहता है।
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर कटक के बाहरी हिस्से में स्थित है। यहां एक बहुत बड़ा छिद्र है जहां से स्वयं पानी निकलता है। यह विशाल छिद्र इस मंदिर की मुख्य विशेषता है। इसे अनंत गर्भ कहा जाता है।
महानदी के एक टापू में स्थित धवलेश्वर मंदिर भगवान शिव की आराधना के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर एक पर्यटक आकर्षण है।
महानदी के किनारे ओड़िशा की प्राचीन नौवाणिज्य विरासत को दिखाता नौवाणिज्य संग्रहालय कटक का एक प्रमुख पर्यटन केन्द्र है। बालियात्रा मैदान के निकट बने इस संग्रहालय को देखने लोगों की काफी भीड़ जमा होती है। यहाँ श्रीलंका, इंड़ोनेशिया आदि देशों के साथ ओड़िशा (कलिंग) की प्राचीन सामुद्रिक संबंधों का सुन्दर व्यौरा देखने को मिलता है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मस्थान में उनके इतिहास और उनकी विरासत को दिखाता हुआ एक सुन्दर संग्रहालय बना है, जो सुभाष के नेताजी बनने तक के सफ़र को दर्शाता है।
ओड़िशा के वीरपुत्र बीजू पट्टनायक के जन्मस्थान आनन्द भवन अब एक संग्रहालय में बदल दिया गया है। बारबाटी दूर्ग के किनारे में स्थित यह संग्रहालय बीजू पट्टनायक के गौरवमय व्यक्तित्व की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
यहां भारत की सबसे अलग मस्जिद है। मुसलमानों की धार्मिक आस्था को ध्यान में रखकर करवाया था। हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही इस स्थान का आदर करते हैं। मुख्य परिसर के अंदर तीन खूबसूरत मस्जिदें हैं। इनके गुंबद और कमरे बहुत ही आकर्षक हैं। यहां नवाबत खाना नाम का एक कमरा भी है जिसका निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। एक गुबद के पर पैगंबर मोहम्मद के पद चिह्न एक गोल पत्थर पर अंकित किए गए हैं।
11वीं शताब्दी में राजा मराकत केशरी ने नदी पर पत्थर की दीवार बनवाई थी। इस दीवार के कारण यह शहर बाढ़ों के कहर से बचा रह सका। इसी वजह से इस शहर को राजधानी बनाया गया था। यह तत्कालीन इंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना है। यह दिखाती है कि उस समय तकनीक कितनी उन्नत थी।
काठजोड़ी के किनारे बना यह महल कटक के गौरवमय इतिहास का साक्षी रहा है। बारबाटी दुर्ग के बाद यह शासन का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। 17वीं सदी में बना यह महल कई प्रमुख राजाओं का निवासस्थान रहा है। 1942 से 1960 तक यह ओड़िशा के राज्यपाल का निवास भी रहा है।
ब्रांच संग्रहालय की स्थापना 1979 में की गई थी। इस संग्रहालय में मूर्तियों, शस्त्रों, टैराकोटा का प्रदर्शन किया गया है। इनके अलावा यहां वाद्य यंत्र और कागज तथा ताड़ पत्र पर लिखी पांडुलिपियां भी देखी जा सकती हैं। समय: सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, सोमवार और सार्वजनिक अवकाश के दिन बंद रहता है।
रेवेंशा विश्वविद्यालय ओड़िशा का सबसे पुराना शिक्षानुष्ठान है। सन 1868 में बनाए गये इस कालेज को सन 2006 ई. में विश्वविद्यालय की मान्यता मिली।
इन सबके अलावा चुडंगगड़ दूर्ग, मधुसूदन संग्रहालय, स्वराज आश्रम, कनिका राजवाटी आदि इसके महत्वपूर्ण पर्यटन स्थान हैं।
बालियात्रा कटक का प्रसिद्ध महोत्सव है। प्राचीन नौवाणिज्य परंपरा को दर्शाता यह समारोह 8 दिनों तक चलता है, जिसमें रोज लाखों की भीड़ जमा रहती है। यह कटक का सबसे परिचित उत्सव है। इसके अलावा दूर्गापूजा, दीपावली, होली, रमज़ान, ईद आदि विविध उत्सव मनाया जाता है। कटक के त्योहारों एक खुबी इसकी सांस्कृतिक एकता है। धर्म के बंधन से दूर सभी एक साथ त्योहार में रम जाते हैं।
यहाँ पर भारतीय चावल अनुसंधान केन्द्र है।
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