संस्कृत भाषा के नियमित करे वाला नियम सभ From Wikipedia, the free encyclopedia
संस्कृत भाषा के व्याकरण जटिल आ समृद्ध परंपरा से निकलल व्याकरण हवे जेह में एह भाषा के संरचना आ शब्दबोध, उच्चारण आ वाक्य बिन्यास वगैरह के परिभाषा-बिधान-नियम बतावल गइल हवें। संस्कृत व्याकरण के प्रमुख बिसय सभ में संधि, समास, शब्दरूप, धातुरूप, लिंग-वचन आ वाच्य वगैरह बाड़ें।
संस्कृत परंपरा में व्याकरण के बेदांग सभ में गिनल जाला; मतलब कि अइसन शास्त्र जे बेद सभ के पढ़े-गुने में सहायक हवें। एह परंपरा के लोग व्याकरण के खाली भाषा संबंधी नियम-बिधान ना माने ला बलुक एकरा के सत्य-असत्य के बिभाजन करे वाला शास्त्र माने ला।[नोट 1] व्याकरण के नजदीकी संबंध निरुक्त, दर्शन आ काव्यशास्त्र से भी बाटे।
संस्कृत के वैयाकरण महर्षि पाणिनि के अष्टाध्यायी सभसे पुरान व्याकरण के ग्रंथ बाटे जे अब तक ले प्राप्त भइल बा। हालाँकि, पाणिनि खुद एह ग्रंथ में कई वैयाकरण लोग के बिचार दिहले बाने जे लोग उनुका से पहिले रहल। पाणिनि द्वारा शाकटायन, शाकल्य, अभिशाली, गार्ग्य, गालव, भारद्वाज, कश्यप, शौनक, स्फोटायन आ चाक्रवर्मण नियर ऋषि लोग के हवाला दिहल गइल बा।[1] पाणिनि के बाद उनके सूत्र सभ के अर्थ बूझे खाती कात्यायन ओह सूत्र सभ के वृत्ति (सूत्र के कुछ बिस्तार से अर्थ) लिखलें आ उनके ग्रंथ वार्तिक ग्रंथ कहाला। इनका बाद पतंजलि एह सूत्र आ वार्तिक सभ पर अउरी बिस्तार से आपन महाभाष्य लिखलें। एह तीनों ग्रंथ सभ के पाणिनीय व्याकरण के नाँव से जानल जाला। बाद के भी कई वैयाकरण लोग बिबिध बिसय पर आपन बिचार-बिमर्ष अपना ग्रंथ सभ में कइले बा। जटिल नियम सभ के आसानी से समझावे खाती भट्टोजदीक्षित सिद्धान्तकौमुदी आ उनका बाद, लड़िकन के व्याकरण पढ़ावे खाती, वरदराज लघुसिद्धान्तकौमुदी नियर आसान ग्रंथ लिखल लोग।
संज्ञा शब्द के अरथ होला नाँव। संस्कृत व्याकरण में बिबिध प्रकार के चीजन के नाँव दिहल गइल बा जिनहन के संज्ञा कहल जाला। ई नाँव ए खातिर दिहल गइल हवें कि पूरा बिबरन देवे के बजाय चीजन के छोट नाँव भर से उल्लेख कइल जा सके। एकरे अलावा ई बिसेस परिस्थिति में कौनों शब्द, पद भा शब्दखंड के का कहल जाय एहू खातिर दिहल नाँव हवें जवना से कि इनहन के ओही नाँव भा संज्ञा से आगे के प्रकरण में उल्लेख कइल जा सके।
संस्कृत व्याकरण के "संज्ञा" के अंग्रेजी नाउन (noun) भा हिंदी व्याकरण वाला संज्ञा से अलग बूझे के चाहीं। हिंदी में ई अंग्रेजी व्याकरण के नकल से आइल हवे जहाँ संज्ञा के नाउन के अरथ में इस्तेमाल होला आ एकर कई किसिम के भेद बतावल जालें जे अंग्रेजी व्याकरण में बतावल प्रकार सभ के अनुवाद हवे।
संस्कृत व्याकरण में संज्ञा के अर्थ बा नाँव। बिबिध प्रकार के व्याकरण के चीज सभ के नाँव दिहल गइल बा उनहने के संज्ञा कहल जाला। उदाहरण खातिर पाणिनि के व्याकरण ग्रंथ अष्टाध्यायी के पहिला सूत्र संज्ञा सूत्र हवे "वृद्धिरादैच्" (अष्टा. 1 ।1 ।1) जे ई बतावे ला कि एच् प्रत्याहार के अक्षर सभ (आ अउरी ऐ, औ) के वृद्धि संज्ञा होला। मने की एह अक्षर समूह के नाँव "वृद्धि" हवे। जहाँ कहीं "वृद्धि" कहल जाय तब एकरा से एह अक्षर सभ के बोध होखे। एही तरे दुसरा सूत्र "गुण" संज्ञा बतावे ला - "अदेङ् गुणः" (अष्टा. 1 ।1 ।2) मने के अ अउरी ए, ओ के गुण नाँव से बोलावल जाय।
संस्कृत व्याकरण संधि शब्द के उत्पत्ती सम् + धि से बतावल जाले। दू गो वर्ण सभ बहुत पास पास उच्चारण कइल जाय, मने कि उनहन के बीच में आधी मात्रा से बेसी के व्यवधान ना होखे तब एकरा के संहिता कहल जाला।[2] एह किसिम के उच्चारण में मूल वर्ण सभ के अलग-अलग वाला उच्चारण से कुछ दुसरे किसिम के उच्चारण होला। दू गो वर्ण सभ के पास-पास उचारण होखे पर पहिले वाला उच्चारण से जवन अंतर आ जाला होही के संधि कहल जाला।
संस्कृत में पाँच किसिम के संधि बतावल गइल बा: अच् संधि, प्रकृतिभाव, हल् संधि, विसर्ग संधि अउरी स्वादिसंधि।
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