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भारत में पंचायती राज वर्तमान समय में भारत में लोकल स्तर प गाँव सभ में खुद-शासन के एगो रूप हवे; जबकि अइसने सिस्टम शहरी इलाका में नगर पंचायत के रूप में लागू बाटे। एकरे तहत मुख्य रूप से गाँवन में ग्राम पंचायत के गठन होला। ई सिस्टम परंपरागत रूप से भारतीय उपमहादीप में चलल आ रहल पंचायती राज के बेवस्था पर आधारित हवे।
वर्तमान बेवस्था के इतिहास देखल जाय त लक्ष्मीमल्ल सिंघवी कमेटी (1986) के सुझाव स्वीकार कइल गइल आ 1992 में नरसिम्हाराव के सरकार के समय संबिधान में 73वां संसोधन क के एकरा के लागू कइल गइल।
एह सिस्टम में तीन लेवल के ब्यवस्था होले। गाँव के लेवल पर ग्राम पंचायत, मंडल चाहे ब्लाक के स्तर पर मंडल परिषद चाहे ब्लाक समीति, आ जिला स्तर पर जिला पंचायत या जिला परिषद के गठन कइल जाला।
वर्तमान में ई बेवस्था पूरा भारत के हर राज्य में लागू बा सिवाय नागालैंड, मेघालय, आ मिजोरम के; हर केंद्र-शासित प्रदेश में लागू बा सिवाय दिल्ली के।
महात्मा गाँधी पंचायत राज के वकालत करें आ एकरा के भारतीय राजनीतिक बेवस्था के आधार मानें। उनका बिचार में ई एक किसिम के बिकेंद्रित तरीका के सरकार होखे वाली रहल जेह में हर गाँव के अपना मामिला सभ खातिर खुदे जिम्मेदार होखे के रहल।[1][2] एह तरीका के बिचार खातिर ग्राम स्वराज के नाँव दिहल गइल रहे। एकरा बिपरीत भारत में बहुते केंद्रित सरकार के गठन भइल।[3] हालाँकि, बाद में जाके लोकल लेवल पर ग्राम पंचायत सभ के कई सारा काम आ अधिकार दिहल गइल आ भारत के केंद्रित शासन के कुछ हद तक बिकेंद्रित कइल गइल।[4] गाँधी के सोच अनुसार होखे वाली बेवस्था में आ वर्तमान में लागू ग्राम पंचायत सिस्टम जे 1992 में संबिधान संसोधन से आइल, कई तरह के अंतर बा।[5]
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