हरी खाद
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
कृषि में हरी खाद (green manure) उस सहायक फसल को कहते हैं जिसकी खेती मुख्यत: भूमि में पोषक तत्त्वों को बढ़ाने तथा उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के उद्देश्य से की जाती है। प्राय: इस तरह की फसल को इसके हरी स्थिति में ही हल चलाकर मिट्टी में मिला दिया जाता है। हरी खाद से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है और भूमि की रक्षा होती है।
मृदा के लगातार दोहन से उसमें उपस्थित पौधे की बढ़वार के लिये आवश्यक तत्त्व नष्ट होते जा रहे हैं। इनकी क्षतिपूर्ति हेतु व मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखने के लिये हरी खाद एक उत्तम विकल्प है। बिना गले-सड़े हरे पौधे (दलहनी एवं अन्य फसलों अथवा उनके भाग) को जब मृदा की नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिये खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं।
हरी खाद के उपयोग से न सिर्फ नत्रजन भूमि में उपलब्ध होता है बल्कि मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा में भी सुधार होता है। वातावरण तथा भूमि प्रदूषण की समस्या को समाप्त किया जा सकता है लागत घटने से किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, भूमि में सूक्ष्म तत्वों की आपूर्ति होती है साथ ही मृदा की उर्वरा शक्ति भी बेहतर हो जाती है।
1. हरी खाद केवल नत्राजन व कार्बनिक पदार्थों का ही साध्न नहीं है बल्कि इससे मिट्टी में कई अन्य आवश्यक पोषक तत्त्व भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं।
2. हरी खाद के प्रयोग में मृदा भुरभुरी, वायु संचार में अच्छी, जलधरण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता/क्षारीयता में सुधार एवं मृदा क्षरण में भी कमी होती है।
3. हरी खाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है तथा मृदा की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है।
4. हरी खाद में मृदाजनित रोगों में भी कमी आती है।
5. इसके प्रयोग से रसायनिक उर्वरकों में कमी करके भी टिकाऊ खेती कर सकते हैं।
हरी खाद के लिए दलहनी फसलों में सनैइ (सनहेम्प), ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार आदि फसलों का उपयोग किया जा सकता है। इन फसलों की वृद्धि शीघ्र, कम समय में हो जाती है, पत्तियाँ बड़ी वजनदार एवं बहुत संख्या में रहती है, एवं इनकी उर्वरक तथा जल की आवश्यकता कम होती है, जिससे कम लागत में अधिक कार्बनिक पदार्थ प्राप्त हो जाता है। दलहनी फसलों में जड़ों में नाइट्रोजन को वातावरण से मृदा में स्थिर करने वाले जीवाणु पाये जाते हैं।
अधिक वर्षा वाले स्थानों में जहाँ जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सनई का उपयोग करें, ढैंचा को सूखे की दशा वाले स्थानों में तथा समस्याग्रस्त भूमि में जैसे क्षारीय दशा में उपयोग करें। ग्वार को कम वर्षा वाले स्थानों में रेतीली, कम उपजाऊ भूमि में लगायें। लोबिया को अच्छे जल निकास वाली क्षारीय मृदा में तथा मूंग, उड़द को खरीफ या ग्रीष्म काल में ऐसे भूमि में ले जहाँ जल भराव न होता हो। इससे इनकी फलियों की अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है तथा शेष पौधा हरी खाद के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
हरी खाद के मुख्य चार गुण हैं-
कम उपजाऊ समस्याग्रस्त मृदा में इन फसलों को कम समय में अच्छी बढ़वार के लिए दलहनी फसलों में 20 से 25 किग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टेयर तथा गैर-दलहनी फसलों में 40 से 50 किग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई के समय डालने से काफी लाभ होता है। इन फसलों को परती अवस्था में उचित नमी के समय बीज को छिड़कर बो दिया जाता है एवं एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके पाटा चला दिया जाता है। मृदा में थोड़ी मात्रा में 40 से 50 किग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर तथा 20-25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर पोटाश की मात्रा डालने से सड़ने गलने की क्रिया शीघ्रता से पूर्ण होने में सहायता मिलती है।
हरी खाद की फसल को बुआई के दिन से 40 से 60 दिन की अवस्था में पाटा लगाकर मिट्टी पलटने वाले हल से 15 से 20 सेमी की गहराई पर पलट देना चाहिए। समय से पहले पलट देने से पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ प्राप्त नहीं होते तथा देर से पलटने से रेशा अधिक होने के कारण सड़ने-गलने में अधिक समय लगता है। अतः अचित समय पर पलटना लाभदायक होता है। अधिक वर्षा तथा अधिक तापक्रम की दशा में सड़ने-गलने की प्रक्रिया शीघ्र-प्रारंभ हो जाती है। ढैंचा या सनई की फसल को हरी खाद के रूप में पलटने के बाद पानी भरकर धान की रोपाई की जा सकती है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.