सूर्य देवता
कश्यप ऋषि और अदिति का पुत्र, नवग्रहों में एक प्रमुख ग्रह / From Wikipedia, the free encyclopedia
सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है।[1] समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता-धर्ता मानते थे।[2]
सूर्य देव | |
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प्रकाश, स्वास्थ्य, वंश, ग्रह, तपस्या, तप, पवित्रता, विजय, कर्म, जाप, साधना, यज्ञ, वेद, युद्ध, अस्त्र-शास्त्र, आत्मा, समय, काल, दिग्पाल, दिशा, सुख, ज्ञान, ज्योति, आराधना, सुबह, शाम, शांति, रंग, पुण्य, शक्ति, ऊर्जा, धर्म, गति, दीर्घायु, ऋतुएँ, मुक्ति के अधिष्ठात्र देवता, साक्षात सूर्य स्वरूप,परब्रह्म, परमात्मा, परमेश्वर, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वदिशात्मक, निरंजन निरकार परमात्मा | |
Member of नवग्रहः | |
भगवान सूर्य | |
अन्य नाम | सूर्य, वीर, नारायण, तपेंद्र, भास्कर, दिवाकर, हिरण्यगर्भ, खगेश, मित्र, ओमकार, सूरज, दिनेश, आदित्य, दिनकर, रवि, भानु, प्रभाकर, दिनेश आदि |
संबंध | नारायण, पर ब्रह्म,शिव, देव, आदि देव |
निवासस्थान | सूर्यलोक |
मंत्र |
गायत्री मंत्र ॐ सूर्यनारायणाय: नमः |
अस्त्र | सूर्याअस्त्र, सुदर्शन चक्र, गदा, कमल, शंख और त्रिशूल |
दिवस | रविवार |
जीवनसाथी | संज्ञा देवी, छाया देवी |
माता-पिता |
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भाई-बहन | इन्द्र (बड़े भाई) , धाता (छोटे भाई) , पूषा (छोटे भाई) , अर्यमा (छोटे भाई) , त्वष्ट्र (छोटे भाई) , भग (छोटे भाई) , अंशुमान (छोटे भाई) , मित्र (छोटे भाई) , वरुण (छोटे भाई) , पर्जन्य (छोटे भाई) और वामन (छोटे भाई) |
संतान | वैवस्वत मनु, यमराज, यमुना, अश्विनी कुमार, रेवंत, शनि, तपती, सवर्णि मनु, सुग्रीव, कर्ण और भद्रा |
सवारी | सप्त अश्वों द्वारा खींचा जाने वाला रथ, सारथी: अरुण |
त्यौहार | छठ महापर्व |
सूर्य का शाब्दिक अर्थ है 'सर्व प्रेरक' । यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं।
अतः कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र-तत्र सूर्य मन्दिरों का निर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा और विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है कि ऋषि दुर्वासा के श्राप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।