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सुदूर-पश्चिमांचल विकास क्षेत्र नेपाल का एक प्रान्त है जो नेपाल के पाँच विकास क्षेत्रों में से एक विकास क्षेत्र है। यह नेपाल के सबसे पश्चिम में स्थित है। इस के पूर्व में नेपाल का मध्य-पश्चिमांचल विकास क्षेत्र तथा पश्चिम में भारत का राज्य उत्तराखण्ड तथा उत्तर में चीन का तिब्बत तथा दक्षिण में भारत का उत्तर प्रदेश स्थित है। सुदूर-पश्चिमांचल विकास क्षेत्र का मुख्यालय दिपायल में स्थित है। इस प्रान्त में २ अंचल तथा ९ जिलें हैं।
सुदूर पश्चिमांचल विकास क्षेत्र का क्षेत्रफल १९,५३९ किमी२ है जिसमें २ अंचल सेती अंचल और महाकाली अंचल हैं। इस क्षेत्र में ९ जिलें हैं जिसका क्षेत्रीय मुख्यालय दिपायल, डोटी जिले में है। सुदूर-पश्चिमांचल राजधानी से सुदूर है और विकास के लिए एक चुनौती है। इस क्षेत्र में करीब ४४% लोग पहाड़ों पर और ४९% लोग हिमालयी परिवेश में रहते हैं जो गरीबी रेखा से नीचे की जिंदगी गुजर-बसर करते हैं। इस क्षेत्र में आधारभूत सेवाएँ सीमित हैं और कठिन भौगोलिक परिवेश के कारण आधारभूत सेवाओं को इस क्षेत्र में लोगों तक पहुँचाना एक चुनौती है। इस क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक संरचनाएं बड़ी ही कठिन है और यहाँ लैंगिक और जातिय भेद-भाव चारो तरफ विद्यमान है। पारम्परिक प्रणाली धर्म के साथ जुड़े हुए हैं, संस्कृति और रिती-रिवाज का भी विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव है।
नेपाल का यह सुदूर क्षेत्र कभी डोटी कहलाता था, कुछ लोगों का मानना है कि डोटी शब्द 'दो वती' से आया है जिसका अर्थ बताते हैं: दो नदियों के बिच का भू-भाग। कुछ लोग ये भी मानते हैं कि ये नाम हिन्दू भगवान देव और आतवी से आया है जिसका मतलब है: पुनः उत्पत्ति। १३ वीं शताब्दी में जब कत्युरी राज-शासन का पतन हो गया तब निरंजन मल्ल देव ने डोटी राज्य की स्थापना की। डोटीयाली और कुमाऊनी इस क्षेत्र में बोली जाती है। देउडा, झोडा, छपेली, छालिया, भाडा आदि यहाँ के पारंपरिक नृत्य हैं और गौरा या गमारा यहाँ का सब से बड़ा त्यौहार है।
इस प्रान्त में २ अंचल और ९ जिलें हैं।:
नेपाल का यह डोटी क्षेत्र प्राचीन काल में उत्तराखंड का एक राज्य था। १३ वीं शताब्दी में जब कत्युरी शासन का पतन हो गया तब यह डोटी क्षेत्र और उत्तराखंड के छेत्र टूट कर अलग हो गए। कत्युरी राज्य के टूटने के बाद छोटे छोटे आठ अन्य राज्य बन गए, जिनमे से आठवां था डोटी। अन्य सात थें: १. बैजनाथ-कत्युरी, २. द्वारहाट, ३. बारामंडल, ४. अस्कोट, ५. सिरा, ६. सोरा, ७. सुइ (काली कुमाऊ)। खस राजाओं के आक्रमण के कारण ही कत्युरी राज्य का अंत हुआ था। ११९१ से १२२३ के बिच नेपाल के कर्णाली अंचल (दुल्लू) के अशोक चल्ला और क्रंचल्ला ने एकीकरण चालू किया और क्रमशः चलता रहा '। बाद में, पश्चिम उत्तराखंड के रामगंगा से लेकर पूर्व में नेपाल के कर्णाली अंचल तक के सभी भू-भाग कत्युरी जो राइका के वंशज थें के हाथ से डोटी में राइका के अधीन आ गया। नेपाल के महाकाली अंचल में कंचनपुर जिले के "ब्रह्मदेव मंडी" को कत्युरी राजा ब्रह्मदेव ने बसाया था।
कत्युरी शासन के पतन के बाद १३ वीं शताब्दी में राजा निरंजन मल्ल देव ने डोटी शासन की नींव रखी। वह अंतिम संयुक्त कत्युरी शासन के शासक कत्युरी के ही पुत्र थें। डोटी के राजा राइका नाम से जाने जाने लगे वह रैनका महाराज नाम से भी जाने जाते थें। बाद में कर्णाली अंचल के खस मल्ल को हराकर एक मजबूत राजतन्त्र स्थापित करने में सफल हुए, जो कुमाऊ से लेकर नेपाल के सुदूर पश्चिमांचल तक फैला हुआ था जो डोटी राज्य कहलाता था। इसके बाद राइका शासन के निम्नलिखित ऐतिहासिक प्रमाण खोजे गए हैं;
निरंजन मल्ल देव (डोटी शासन के संस्थापक), नागी मल्ल (१२३८), रिपा मल्ल (१२७९), निराई मल्ल (१३५३ शायद अस्कोट के राजा थें और उनका १३५४ का ऐतिहासिक प्रमाण की खोज अल्मोड़ा में हुई है।), नाग मल्ल (१३८४), धीर मल्ल (१४००), रिपु मल्ल (१४१०), आनंद मल्ल (१४३०), बलिनारायण मल्ल (अज्ञात), संसार मल्ल (१४४२), कल्याण मल्ल (१४४३), सुरातन मल्ल (१४७८), कृति मल्ल (१४८२), पृथ्वी मल्ल (१४८८), मेदिनी जय मल्ल (१५१२), अशोक मल्ल (१५१७), राज मल्ल (१५३९), अर्जुन मल्ल/साही ('मालूम नहीं पर वह सिरा में मल्ल और डोटी में साही कहलाते थें), भूपति मल्ल/शाही (१५५८), संग्राम शाही (१५६७), हरी मल्ल/शाही (१५८१ सिरा और नेपाल से लगे क्षेत्र के अंतिम राइका राजा ), रूद्र शाही (१६३०), विक्रम शाही (१६४२), मंधाता शाही (१६७१), रघुनाथ शाही (१६९०), हरी शाही (१७२०), कृष्ण शाही (१७६०), दीप शाही (१७८५), पृथ्वी पति शाही (१७९०, 'वह १८१४ में अंग्रेजों के साथ नेपाल (गोरखा शासक) के विरुद्ध युद्ध लड़े थें')।
१६ वीं शताब्दी में अकबर के समय मुग़लों ने डोटी के राइका पर आक्रमण किया था। उन्होंने राइका की राजधानी अजेमरू को अपने अधीन कर लिया। अजेमरू वर्तमान में नेपाल के सुदूर पश्चिमांचल क्षेत्र का डडेलधुरा जिला है। अकबर का एक सेना प्रमुख हुसैन खान जो लखनऊ में रहता था ने आक्रमण का नेतृत्व किया। अब्दुल कादीर बदायूँ (१५४० - १६१५), जो मुग़ल साम्राज्य के दौरान हिन्द-पारसी इतिहासकार थें के अनुसार, लखनऊ के मुग़ल सेना के आर्मी प्रमुख हुसैन खान राइका राज्य के धन और खजाने के लालच में आ गए, इसलिए वह राज्य में लुट मचाना चाहता था यही मकसद था आक्रमण के पीछे; पर वें अपने मकसद में सफल नहीं हो सके।
धनगढ़ी नगरपालिका सेती अंचल के कैलाली जिले में स्थित है जो इस सुदूर पश्चिमांचल क्षेत्र का मुख्यालय है।
महेन्द्रनगर जो महाकाली अंचल के कंचनपुर जिले का मुख्यालय है, महाकाली नदी के समीप स्थित है, जो भारतीय सीमा से ६ किमी उत्तर में स्थित है। कंचनपुर में विभिन्न समुदायों के लोग रहते हैं, जिनमे एक स्थानीय समुदाय थारू भी हैं।
दिपायल-सिलगढ़ी नगरपालिका डोटी जिले का और सुदूर पश्चिमांचल विकास क्षेत्र का मुख्यालय है। यह खप्तड़ राष्ट्रिय उद्यान के ट्रेकिंग क्षेत्र के साथ ही है। दिपायल सेती नदी के सुन्दर घाटी का भी नाम है।
अमरगढ़ी डडेलधुरा जिले का मुख्यालय है।
खप्तड राष्ट्रिय निकुंज पश्चिम नेपाल के सेती अंचल के ४ पहाडी जिलों बझाङ, बाजुरा डोटी और अछाम जिलों के संगम स्थल पर स्थित है। इस का क्षेत्रफल २२५ बर्ग कि॰मी॰ है। ये इ.सं. १९८४ में स्थापित किया गया था। यह निकुंज संसार के सुन्दर स्थलों में से एक माना जाता है। समुद्र सतह से २४०० से ३७०० मिटर ऊंचाई पर फैले इस क्षेत्र के बीच में खड़ा है १२ हजार फीट ऊँचा झील। यह क्षेत्र ५० वर्ष पहले खप्तड बाबा का तपस्या स्थल था इसलिए इसे पवित्र स्थल भी माना जाता है। त्रिवेणी में एक त्रिवेणी मन्दिर भी स्थित है। खप्तड बाबा का कुटी, त्रिवेणी नदी, खापर दह शिव मन्दिर, सहस्रिलंग गणेश मन्दिर, नागढुंगा तथा केदारढुंगा जैसे धार्मिक स्थल विख्यात हैं। सदियों से खप्तड में विविध सांस्कृतिक मेला लगते हैं। गंगा दशहरे में हजारों तीर्थयात्री यहाँ इकट्ठे होते हैं।
शुक्लाफाँट वन्यजन्तु आरक्षण नेपाल के पश्चिम तराई के कंचनपुर जिले में स्थित है। शुक्लाफाँट वन्यजन्तु आरक्षण को सबसे पहले बि.सं. २०२६ (सन् १९६९) में शिकार आरक्षण के रूप में व्यवस्थापन करना शुरू किया गया पर इस ने बि.सं. २०३३ (सन् १९७६) में वन्यजन्तु आरक्षण के रूप में मान्यता प्राप्त किया।
बर्दिया राष्ट्रिय निकुंज करिब ९६८ वर्ग किलोमिटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह निकुंज नेपाल के पश्चिम में कर्णाली नदी के पूर्व तरफ तराइ प्रदेश में अवस्थित है। सन् १९६८ में शाही शिकार आरक्षण के रूप में स्थापित किया गया था। सन् १९६७ में करिब ३६८ वर्ग किलोमिटर क्षेत्रफल का उक्त आरक्षण को शाही कर्णाली वन्यजन्तु आरक्ष के रूप में घोषित किया गया। बाद में सन् १९८२ में इसे शाही बर्दिया वन्यजन्तु आरक्षण नामाकरण किया गया और सन् १९८४ में पुनः बबई नदी के आसपास के क्षेत्र को इसमें समेटा गया। सन् १९८८ में आकर बर्दिया राष्ट्रिय निकुंज के रूप में इस क्षेत्र की घोषणा की गई। पूर्ण रूप में तराइ क्षेत्र में स्थित इस राष्ट्रिय निकुंज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बाघ तथा इस के शिकार का संरक्षण था। गैंडा, घडियाल गोही, डोल्फिन जैसे अत्यन्त लोपोन्मुख वन्यजन्तुएं भी इस में संरक्षित हैं।
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