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शिलाहार राजवंश, राष्ट्रकूट काल के दौरान उत्तरी और दक्षिणी कोंकण (वर्तमान मुंबई और दक्षिणी महाराष्ट्र) में स्थापित एक शाही राजवंश था। यह राजवंश तीन शाखाओं में विभाजित था - एक शाखा ने उत्तरी कोंकण पर शासन किया, दूसरी शाखा ने दक्षिणी कोंकण पर शासन किया, और तीसरी शाखा ने 940 और 1215 के बीच कोल्हापुर, सतारा और बेलगाम के आधुनिक जिले पर शासन किया। इसके बाद इनपर चालुक्य वंश ने अधिकार कर लिया।[1]
अपरादित्य प्रथम या अपरार्क 1170 - 1197 ई तक उत्तरी कोंकण शाखा का एक शिलाहार शासक था। वह याज्ञवल्क्य स्मृति के प्रसिद्ध टीकाकारों में से एक था। अपरार्कपारा याज्ञवल्क्य स्मृति पर एक व्यापक भाष्य है।
यह राजवंश दक्खिन के पठार पर राज्य करते राष्ट्रकूट राजवंश के अधीन जागीरदार और सामंत हुआ करते थे। यह ८वीं -१०वीं शताब्दी की बात है। गोविंद द्वितीय, राष्ट्रकूट शासक ने उत्तरी कोंकण का राज्य (वर्तमान ठाणे, मुंबई और रायगढ़) कपर्दिन प्रथम, सिल्हारा वंश के संस्थापक को ८०० ई. में दिया। तबसे उत्तरी कोंकण को कपर्दी द्वीप या कवदिद्वीप कहा जाने लगा। इस राज्य की राजधानी पुरी हुई, जो वर्तमान राजापुर या रायगढ़ है। इस वंश को टगर-पुराधीश्वर की उपाधि मिली, जिसका अर्थ था टगर (वर्तमान टेर, ओस्मानाबाद जिला) का स्वामी। १३४३ के लगभग, साल्सेट द्वीप और पूरा द्वीपसमूह मुज़फ्फर वंश को चला गया।
सिल्हारा वंश, दक्श्निण महाराष्ट्र जो कोल्हापुर में थे, इन तीनों में से एक थे। इस वंश की स्थापना राष्ट्रकूट वंश के पतन के बाद हुयी थी।
मुंबई के अनेक दर्शनीय स्थल, इस वंश की ही देन हैं:
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