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भारतीय आदिवासी समूह विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
संथाल भारत का मुंडा जातीय समूह की एक प्रमुख जनजाति है। वे मुख्य रूप से भारतीय राज्यों झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार और असम में रहते हैं, यह अल्पसंख्या में नेपाल और बांग्लादेश में भी पाये जाते हैं। ये मूल रूप से संथाली भाषा बोलते हैं।
संथाली भाषा बोलने वाले वक्ता मुंडा जातीय समूह की खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, जो अपने को "होड़" (मनुष्य) अथवा "होड़ होपोन" (मनुष्य की सन्तान) भी कहते हैं। इस समुदाय में मुंडा, भूमिज, हो आदि जनजातियां भी आती है। मुंडा, भूमिज और हो जनजाति एक ही नस्ल के हैं, जबकि संथाल थोड़ी भिन्न है। मुंडारी, भूमिज, हो और संथाली भाषा में थोड़ी समानताएं थीं देखी जा सकती है। संथाल लोग भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक है, किन्तु वर्तमान में इन्हे झारखंडी (जाहेर खोंडी) के रूप में जाना जाता है। झारखंडी का अर्थ झारखंड में निवास करने वाले से नहीं है बल्कि "जाहेर" (सारना स्थल) के "खोंड" (वेदी) में पूजा करने वाले लोग से है, जो प्रकृति को विधाता मानता है। अर्थात् प्रकृति के पुजारी - जल, जंगल और जमीन से जुड़े हुए लोग। ये "मारांग बुरु" और "जाहेर आयो" (माता प्रकृति) की उपासना करतें है।
वस्तुत: संथाली भाषा भाषी के लोग मूल रूप से खेरवाड़ समुदाय से आते हैं, किन्तु मानवशास्त्रियों ने इन्हें प्रोटो आस्ट्रेलायड से संबन्ध रखने वाला समूह माना है। अपितु इसका कोई प्रमाण अबतक प्रस्तुत नहीं किया गया है। अत: खेरवाड़ समुदाय (संथाली, हो, मुंडा, भूमिज, बिरहोड़, खड़िया, असुर, लोहरा, सावरा, महली रेमो, बेधिया आदि) में भारत सरकार को पुनः शोध करना चाहिए।
संथाल लोग भारत में अधिकांश झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम राज्यों तथा विदेशों में अल्पसंख्या में चीन, थाईलैंड, नेपाल, भूटान, बंगलादेश, जवा, सुमात्रा आदि देशों में रहते हैं।
संथाल समाज अद्वितीय विरासत की परंपरा और आश्चर्यजनक परिष्कृत जीवन शैली है। सबसे उल्लेखनीय हैं उनके लोकसंगीत, गीत, संगीत, नृत्य और भाषा हैं। दान करने की संरचना प्रचुर मात्रा में है। उनकी स्वयं की मान्यता प्राप्त लिपि 'ओल-चिकी' है, जो खेरवाड़ समुदाय के लिए अद्वितीय है। इनकी सांस्कृतिक शोध दैनिक कार्य में परिलक्षित होते है- जैसे डिजाइन, निर्माण, रंग संयोजन और अपने घर की सफाई व्यवस्था में है। दीवारों पर आरेखण, चित्र और अपने आंगन की स्वच्छता कई आधुनिक शहरी घर के लिए शर्म की बात होगी। अन्य विषेशता इनके सुन्दर ढंग के मकान हैं जिनमें खिड़कियां नहीं होती हैं। इनके सहज परिष्कार भी स्पष्ट रूप से उनके परिवार के माता पिता, पति पत्नी, भाई बहन के साथ मजबूत संबंधों को दर्शाता है। सामाजिक कार्य सामूहिक होता है। अत: पूजा, त्योहार, उत्सव, विवाह, जन्म, मृत्यु आदि में पूरा समाज शामिल होता है। हालांकि, संताल समाज पुरुष प्रधान होता है किन्तु सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है। स्त्री-पुरुष में लिंग भेद नहीं है, इसलिए इनके घर लड़का और लड़की का जन्म आनंद का अवसर हैं। इनके समाज में स्त्री पुरुष दोनों को विशेष अधिकार प्रदान किया गया है। वे शिक्षा ग्रहण कर सकते है; वे नाच गा सकते है; वे हाट बाजार घूम सकते है; वे इच्छित खान पान का सेवन कर सकते है; वे इच्छित परिधान पहन सकते हैं; वे इच्छित रूप से अपने को सज संवर सकते हैं; वे नौकरी, मेहनत, मजदूरी कर सकते हैं; वे प्रेम विवाह कर सकते हैं। इनके समाज में पर्दा प्रथा, सती प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा नहीं है बल्कि विधवा विवाह; अनाथ बच्चों; नजायज बच्चों को नाम, गोत्र देना और पंचायतों द्वारा उनके पालन का जिम्मेदारी उठाने जैसे श्रेष्ठ परम्परा है। संताल समाज मृत्यु के शोक अन्त्येष्टि संस्कार को अति गंभीरता से मनाया जाता है।
इनके चौदह मूल गोत्र हैं- हासंदा, मुर्मू, किस्कु, सोरेन, टुडू, मार्डी, हेंब्रोम, बास्के, बेसरा, चोणे, बेधिया, गेंडवार, डोंडका और पौरिया। इनके विवाह को 'बापला' कहा जाता है। संताड़ी समाज में कुल 23 प्रकार की विवाह प्रथायें है, जो निम्न प्रकार है -
इनके धार्मिक विश्वासों और अभ्यास किसी भी अन्य समुदाय या धर्म से मेल नहीं खाता है। इनमें प्रमुख देवता हैं- 'सिञ बोंगा', 'मारांग बुरु' (लिटा गोसांय), 'जाहेर एरा, गोसांय एरा, मोणे को, तुरूय को, माझी पाट, आतु पाट, बुरू पाट, सेंदरा बोंगा, आबगे बोंगा, ओड़ा बोंगा, जोमसिम बोंगा, परगना बोंगा, सीमा बोंगा (सीमा साड़े), हापड़ाम बोंगा आदि। पूजा अनुष्ठान में बलिदानों का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि, संताल समाज में सामाजिक कार्य सामूहिक होता है। अत: इस कार्य का निर्वहन के लिए समाज में मुख्य लोग "माझी, जोग माझी, परनिक, जोग परनिक, गोडेत, नायके और परगना" होते हैं, जो सामाजिक व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, जैसे - त्योहार, उत्सव, समारोह, झगड़े, विवाद, शादी, जन्म, मृत्यु, शिकार आदि का निर्वहन में अलग - अलग भूमिका निभाते है। संताल समाज मुख्यतः बाहा, सोहराय, माग, ऐरोक, माक मोंड़े, जानताड़, हरियाड़ सीम, पाता, सेंदरा, सकरात, राजा साला: त्योहार और पूजा मनाते हैं।
लुगुबुरु पहाड़ी स्थित 'लुगुबुरु घंटाबाड़ी' संथाल समाज की एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जहां हजारों की संख्या में देश-विदेश से संथाल समाज के लोग पूजा करने पहुंचते हैं।
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