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श्रीगुप्त (शासनकाल 240 – 280 ई)[1] गुप्त साम्राज्य का संस्थापक राजा थे। श्रीगुप्त के बाद उनके पुत्र घटोत्कच शासक बने। इस वंश का प्रथम प्रतापी राजा चंद्रगुप्त प्रथम था जिसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। चंद्रगुप्त ने लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया जिससे इसे वैशाली दहेज में प्राप्त हुआ। गुप्तवंश में सबसे पहले रजत सिक्के चंद्रगुप्त के द्वारा चलाये गए थे।
श्रीगुप्त को प्रभावती (गुप्त राजवंश) के पूना ताम्रफलक में आदिराज और उसके प्रपौत्र समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में महाराज कहा गया है। विद्वानों ने उसका समय प्राय: 275 और 300 ई. के बीच निश्चित किया है। 7वीं सदी के अंतिम चरण में भारत आए चीनी यात्री इत्सिंग ने चि-लि-कि-तो (श्रीगुप्त) नामक एक शासक की चर्चा की है जो 500 वर्ष पहले नालन्दा से लगभग 40 योजन पूर्व दिशा में शासन करता था।
श्रीगुप्त ने चीनी तीर्थयात्रियों के लिये मृग शिखा वन में एक बौद्ध मंदिर का निर्माण कराकर उसके व्यय हेतु 24 गाँव दान मे दिये थे।[2] श्रीगुप्त का कोई अभिलेख या मुद्रा प्राप्त नहीं होती, बस 2 मुहरें प्राप्त होती हैं। इनमें से एक मुद्रा पर 'गुप्तस्य' एवं दूसरी पर जो मिटटी से बनी है 'श्री-र-गुप्तस्य' अंकित है।
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