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व्यतिकरण (Interference) से किसी भी प्रकार की तरंगों की एक दूसरे पर पारस्परिक प्रक्रिया की अभिव्यक्ति होती है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ विशेष स्थितियों में कंपनों और उनके प्रभावों में वृद्धि, कमी या उदासीनता आ जाती है। व्यतिकरण का विस्तृत अध्ययन विशाल विभेदन शक्ति वाले सभी यंत्रों के मूल में काम करता है।
भौतिक प्रकाशिकी में इस धारण का समावेश टॉमस यंग (Thomas Young) ने किया। उनके बाद व्यतिकरण का व्यवहार किसी भी तरह की तरंगों या कंपनों के समवेत या तज्जन्य प्रभावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता रहा है। संक्षेप में किसी भी तरह की (जल, प्रकाश, ध्वनि, ताप या विद्युत् से उद्भूत) तरंगगति के कारण लहरों के टकराव से उत्पन्न स्थिति को व्यतिकरण की संज्ञा दी जाती है। जब कभी जल या अन्य किसी द्रव की सतह पर दो भिन्न तरंगसमूह एक साथ मिलें तो व्यतिकरण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जहाँ एक तरंगसमूह से संबंद्ध लहरों के तरंगश्रृंगों का दूसरी शृंखला से संबद्धलहरों के तंरगश्रृंगों से सम्मिलिन होता है, वहाँ द्रव की सतह का उन्नयन उस स्थान पर लहरों के स्वतंत्र और एकांत अस्तित्व के संभव उन्नयनों के योग के बराबर होता है। जब तरंगों में से एक के तरंगश्रृंग का दूसरे के तरंगगर्त पर समापातन होता है, तब द्रव की सतह पर तरंगों का उद्वेलन कम हो जाता है और प्रतिफलित उन्नयन (या अवनयन) एक तरंग अवयव (component) के उन्नयन और दूसरे के अवनयन के अंतर के बराबर होता है। ध्वनि में उत्पन्न विस्पंद (beats) इसी व्यतिकरण का एक साधारण रूप है, जहाँ दो या दो से अधिक तरंगसमूह, जिनके तरंगदैर्घ्य में मामूली सा अंतर होता है, करीब एक ही दिशा में अग्रसर होते हुए मिलते हैं।
प्रकाश की गति तरंगीय होती है। किसी एकल प्रकाशस्रोत से नि:सृत ऊर्जा माध्यम के पार्श्व में सान रूप से बिखर जाती है। यदि प्रकाश के दो स्वतंत्र स्रोत, जिनसे समान परिमाण और अभिन्न कला की तरंगें सतत नि:सृत हों, एक दूसरे के सन्निकट रखे जाएँ, तो माध्यम के आसपास ऊर्जा का वितरण समांग नहीं होता, जहाँ एक प्रकाशतरंग का शृंग दूसरे प्रकाशतरंग के शृंग (crest) पर, या एक का तरंगगर्त (trough) दूसरे के तरंगगर्त पर गिरता है, वहाँ आयाम (amplitude) बढ़ जाता है और आयाम स्वरूप ऊर्जा या प्रकाश की तीव्रता भी बढ़ जाती है। साथ ही, यदि एक का तरंगश्रृंग दूसरे के तरंगगर्त पर गिरे, तो परिणामी आयाम (resultant amplitude) शून्य होता है और प्रकाश की तीव्रता घट जाती है। पहली स्थिति का संपोषी (constructive) व्यतिकरण और दूसरी स्थिति को विनाशी (destructive) व्यतिकरण कहते हैं।
पारदर्शी ठोस के पतले पट्टों (plates) और साबुन के बुलबुलों पर प्रकाश की किरणों के पड़ने पर व्यतिकरण का स्पष्ट परिचय मिल सकता है। जब प्रकाश की किरणें साबुन के बुलबुलों, या सीसे की पतले पट्टों पर पड़ती हैं, तो उनकी बाहरी और भीतरी दोनों सतहों से किरणें परावर्तित होकर प्रेक्षक की आँखों की ओर लौटती हैं और प्रकाश के तरंगसमूहों में, जो दोनों स्रोतों (सतहों) से आँखों तक पहुँचती हैं, कलाओं (phases) में सूक्ष्म अंतर होने के कारण (जो बुलबुले या पट्ट के प्रत्येक बिंदु पर भिन्न होता है) व्यतिकरण होता है, जिससे उत्पन्न प्रभाव काफी मोहक ओर चित्ताकर्षक होते हैं। साबुन का कोई बुलबुला एकवर्णी (monochromatic) प्रकाश में प्राय: कुछ काली रेखाओं से आवृत दिखाई पड़ता है। कारण यह है कि काले दिखाई पड़नेवाले बिंदुओं पर प्रकाश के दो तरंगसमूह, जो क्रमश: बुलबुले की भीतरी और बाहरी सतहों से आते हैं, करीब करीब या पूर्णत: एक दूसरे के प्रभाव को नष्ट कर देते हैं। यदि बुलबुला श्वेत प्रकाश में देखा जाए, तो हमें सामान्यतया काली रेखाएँ नहीं दिखाई पड़तीं। उनके स्थान पर रंगों की पट्टियाँ (bands) होती हैं। ऐसा इसलिए होता है कि विभिन्न रंग, जिनके योग से श्वेत प्रकाश की उत्पत्ति होती है भिन्न भिन्न तरंगों के होते हैं, जिससे बुलबुले के किसी बिंदु पर व्यतिकरण से रंग के केवल एक अंश मात्र का विनाश होता है और उजले प्रकाश के शेष अवयव बच रहते हैं, जो आँखों पर अपना पूर्ण वर्णीय प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
व्यतिकरण के लिए कुछ मौलिक शर्ते हैं जिनकी पूर्ति आवश्यक है। इनमें से कुछ तो प्रकाश की प्रकृति में ही अंतर्निहित है और दूसरी, यदि परिणाम का प्रेक्षण प्रयोग द्वारा करना हुआ तो, आवश्यक हो उठती है। सरलता के लिए हम दो विद्युत् चुंबकीय लहरों पर विचार कर सकते हैं, जो किसी दिक्बिंदु पर, जहाँ से दोनों लहरें गुजरती हैं, विनाशी व्यतिकरण उत्पन्न करें।
यदि व्यतिकरण का प्रतिरूप स्थिर (steady) रहा, अर्थात् यदि प्रकाश की तीव्रता (intensity) का परिणामी तथाकथित बिंदु पर समय के प्रत्येक मान के लिए शून्य हो, तो निम्नलिखित शर्तों की पूर्ति आवश्यक है :
प्रकाश द्वारा उत्पन्न प्रतिरूपों के सफल प्रेक्षण के लिए दो अन्य शर्तें, जिनकी पूर्ति होनी चाहिए, निम्नलिखित हैं,
यदि दो अतिसन्निकट प्रकाशस्रोत के समान परिमाण और कालांतर (period) की तरगें किसी कलांतर विशेष पर कुछ दूर स्थित पर्दे के एक बिंदु पर मिलें, तो पर्दे पर कुछ बिल्कुल की रेखाएँ जिनके अंतराल में अधिकतम तीव्रता की रेखाएँ रहती हैं, देखी जाती हैं। वे न्यूनतम और अधिकतम तीव्रता की रेखाएँ व्यतिकरण फ्रिंजें कहलाती हैं।
जब कभी व्यतिकरण फ्रिंजें (fringes) पतली फिल्मों के चलते बनती हैं, तब उनका कारण व्यतिकरण में भाग लेनेवाली किरणों के कलांतर का परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन फिल्म (film) की मोटाई के परिवर्तन, या आयतन कोण के परिवर्तन, के कारण होता है। यदि मोटाई समांग नहीं हुई, तो प्राय: दोनों तथ्य एक ही साथ क्रियाशील हो उठते हैं; लेकिन एक बात स्पष्ट है कि जब कोई फिल्म आँख द्वारा देखी जा रही है, तो उसे आँख से करीब 25 सेंमी. की दूरी पर रखा जाना चाहिए।
यदि फिल्म का परास (range) बहुत बड़ा न हो, तो हमारी आँखों तक फिल्म के विभिन्न बिंदुओं से आती हुई किरणों के झुकाव की भिन्नता कोई अधिक नहीं होती और प्रत्येक किरण का आयतन कोण करीब करीब समान होता है। अत: फ्रिंजें मुख्यत: फिल्म की मोटाई की भिन्नता के कारण बनती है। यह भी नितांत स्पष्ट है कि फिल्म के उन सभी बिंदुओं पर, जहाँ मोटाई समान है, वहाँ प्रकाश की दीप्ति भी समान होगी। यदि ऐसा कोई भी बिंदु काला या उज्वल हुआ, तो शेष भी तदनुरूप काले या उज्वल होंगे। इसलिए काली या उज्वल पट्टियाँ समान मोटाई के फिल्म के विभिन्न बिंदुओं के बिंदुपथ (loci) मात्र होती है। इस तरह की फ्रिंजें न्यूटनी वलय (Newtons rings) कहलाती हैं, क्योंकि न्यूटन ने सर्वप्रथम इनका अध्ययन किया था।
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