Loading AI tools
विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
गुणों के आधार पर सभी जीवों को विभिन्न श्रेणियों में श्रेणीकृत कर सकते हैं। गुण जैसे प्रकार, रचना, कोशिका रचना, विकासीय प्रक्रम तथा जीव की पारिस्थितिक सूचनाएँ आधुनिक श्रेणीकरण अध्ययन के आधार है। इसलिए विशेषीकरण, अभिज्ञान, वर्गीकरण तथा नाम पद्धति आदि ऐसे प्रक्रम हैं जो श्रेणीकी (श्रेणीकरण विज्ञान) के आधार है।
वर्गिकी का कार्य आकारिकी, आकृति-विज्ञान, शारीरिकी, पारिस्थितिकी और आनुवंशिकी पर आधारित है। अन्य वैज्ञानिक अनुशासनों की तरह यह भी अनेक प्रकार के ज्ञान, मत और प्रणालियों का संश्लेषण है, जिसका प्रयोग श्रेणीकरण के क्षेत्र में होता है। जीवविज्ञान सम्बन्धित किसी प्रकार के विश्लेषण का प्रथम सोपान है सुव्यवस्थित ढंग से उसका वर्गीकरण; अत: पादप, या जंतु के अध्ययन का पहला कदम है उसका नामकरण, वर्गीकरण और तब वर्णन।
मानव सदैव विभिन्न प्रकार के जीवों के विषय में अधिकाधिक जानने का प्रयत्न करता रहा है, विशेष रूप से उनके विषय में जो उनके लिए अधिक उपयोगी थे। आदिमानव को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे- भोजन, वस्त्र तथा आश्रय के लिए नूतन स्रोत खोजने पड़ते थे। इसलिए विभिन्न जीवों के श्रेणीकरण का आधार 'उपयोग' पर आधारित था।
काफी समय से मानव विभिन्न प्रकार के जीव के विषय में जानने और उनकी वैविध्य सहित उनके सम्बन्ध में रुचि लेता रहा है। अध्ययन की इस शाखा को श्रेणीकरण पद्धति कहते हैं। लिनेयस ने अपने प्रकाशन का शीर्षक "सिस्तेमा नतुरै' चुना। श्रेणीकरण पद्धति में पहचान नाम पद्धति तथा वर्गीकरण को शामिल करके इसके क्षेत्र को बढ़ा दिया गया है। श्रेणीकरण पद्धति जीवों के विकासीय सम्बन्ध का भी ध्यान रखा गया है।
ग्रीस(ग्रीस) के अनेक प्राचीन विद्वान, विशेषत: हिपॉक्रेटीज (Hippocrates, 46-377 ई. पू.) ने और डिमॉक्रिटस (Democritus, 465-370 ई. पू.), ने अपने अध्ययन में जंतुओं को स्थान दिया है। स्पष्ट रूप से अरस्तू (Aristotle, 384-322 ई. पू.) ने अपने समय के ज्ञान का उपयुक्त संकलन किया है। ऐरिस्टॉटल के उल्लेख में वर्गीकरण का प्रारंभ दिखाई पड़ता है। इनका मत है कि जंतु अपने रहन सहन के ढंग, स्वभाव और शारीरिक आकार के आधार पर पृथक् किए जा सकते हैं। इन्होंने पक्षी, मछली, ह्वेल, कीट आदि जंतुसमूहों का उल्लेख किया है और छोटे समूहों के लिए कोलियॉप्टेरा (Coleoptera) और डिप्टेरा (Diptera) आदि शब्दों का भी प्रयोग किया है। इस समय के वनस्पतिविद् अरस्तू की विचारधारा से आगे थे। उन्होंने स्थानीय पौधों का सफल वर्गीकरण कर रखा था। ब्रनफेल्स (Brunfels, 1530 ई.) और बौहिन (Bauhim, 1623 ई.) पादप वर्गीकरण को सफल रास्ते पर लानेवाले वैज्ञानिक थे, परंतु जंतुओं का वर्गीकरण करनेवाले इस समय के विशेषज्ञ अब भी अरस्तू की विचारधारा के अंतर्गत कार्य कर रहे थे।
जन्विज्ञान विशेषज्ञों में जॉन रे (John Ray, 1627-1705 ई.) प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने जाति (species) और वंश (genus) में अंतर स्पष्ट किया और प्राचीन वैज्ञानिकों में ये प्रथम थे, जिन्होंने उच्चतर प्राकृतिक वर्गीकरण किया। इनका प्रभाव स्वीडन के रहनेवाले महान प्रकृतिवादी कार्ल लीनियस (1707-1778) पर पड़ा। लिनीअस ने इस दिशा में अद्वितीय कार्य किया। इसलिए इन्हें वर्गीकरण विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है।
अठारहवीं शताब्दी में विकासवाद के विचारों का प्रभाव वर्गीकरण विज्ञान पर पड़ा। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में यह प्रभाव अपने शिखर पर पहुंच गया। इसी समय दूरवर्ती स्थानों के जन्तुओं में श्रेणीकरण विशेषज्ञों की गंभीर रुचि हो गई थी। वे दूर देशों के पशुओं के विषय में जानकारी करना चाहते थे और परिचित पशुओं से उनका सम्बन्ध करना चाहते थे। इसलिए इस समय लम्बी जलयात्राएँ हुई। दूरस्थ पशुओं का अध्ययन किया गया और उनके वंश तथा कुटुम्ब आदि का अध्ययन किया गया। एक ऐसी यात्रा बीगल नामक जहाज पर हुई थी जिसमें चार्ल्स डार्विन नामक प्रकृतिवादी भी सम्मिलित था। इस काल में श्रेणीकरण विज्ञान में बड़ी प्रगति की गई और वर्गीकरण में अनेक नई जातियाँ, वंश और कुटुम्ब जोड़े गए।
विंश शताब्दी में किया गया वर्गीकरण विज्ञान की विशेषता है। हक्सलि (Huxely, 1940 ई.) के विचारानुसार आधुनिक वर्गीकरण विज्ञान भूगोल, पारिस्थितिकी, कोशिकी और आनुवंशिकी आदि का संश्लेषण है। पहले समय में वर्गीकरण विज्ञान का आधार था "प्रकार", जिसको आकृतिक लक्षणों की सहायता से उपस्थित करते थे। आधुनिक वर्गीकरण विज्ञान में जातियों का वर्णन पूर्णतया आकृतिक लक्षणों पर आधारित नहीं है, जैविक है, जिसकी वजह से भौगोलिक, पारिस्थितिक, जननीय तथा कुछ अन्य लक्षणों पर भी ध्यान दिया जाता है। प्ररूप संकल्पना श्रेणियों की स्थैर्य को विस्तृत रूप देती है, एक दूसरे के बीच अंतर को बढ़ाती है और परिवर्तनशीलता को कम करती है। इसके विपरीत है जनसंख्या संकल्पना, जिसके अनुसार जाति परिवर्तनशील जनसंख्या से बनी है और स्थिर नहीं है।
उत्क्रम से विशेष समूहों अथवा श्रेणियों की परिभाषा करना वर्गीकरण का निश्चित ढंग है। लिनेयस ने ऐसी पाँच श्रेणियाँ बनाई थीं :
प्रत्येक श्रेणी में एक अथवा एक से अधिक नीचे स्तर के समूह सम्मिलित होते हैं और वे निम्न श्रेणी बनाते हैं। इसी तरह प्रत्येक क्रमिक श्रेणी एक अथवा एक से अधिक ऊँची श्रेणी से सम्बन्धित होती है। ये श्रेणियाँ प्राकृतिक प्रभेद कम करके एक व्यापक प्रणाली बना देती हैं।
ज्ञान के विकास के साथ साथ इन श्रेणियों की संख्या बढ़ती गई। जगत् और वर्ग के बीच संघ और गण तथा वंश के बीच में कुटुंब नामक श्रेणियाँ जोड़ी गई। लिनेयस के विचारानुसार प्रजाति एक वैकल्पिक श्रेणी है, जिसके अन्तर्गत भौगोलिक अथवा व्यक्तिगत विभिन्नता आती है। इस तरह अब निम्न सात श्रेणियाँ हो गई हैं :
श्रेणीकरण की और अधिक परिशुद्ध व्याख्या के लिए इन श्रेणियों को भी विभाजित कर अन्य श्रेणियाँ बनाई गई हैं। अधिकतर मूल नाम के पहले अधि अथवा उप उपसर्गों को जोड़कर इन श्रेणियों का नामकरण किया गया है। उदाहरणार्थ, अधिगण और उपगण आदि। उच्च श्रेणियों के लिए कई नाम प्रस्तावित किए गए, परन्तु सामान्य प्रयोग में वे नहीं आते। केवल आदिम जाति का कुटुम्ब और वंश के बीच प्रयोग किया जाता है। कुछ लेखकों ने, जैसे सिम्प्सन, (Sympson, 1945 ई.) ने गण और वर्ग के बीच सहगण नाम का प्रयोग किया है।
इस तरह साधारणतः काम लाई जानेवाली श्रेणियों की संख्या इस समय निम्नलिखित है :
श्रेणीकरण एकल सोपान प्रक्रम नहीं है; बल्कि इसमें पदानुक्रम सोपान होते हैं जिसमें प्रत्येक सोपान पद अथवा श्रेणी को प्रदर्शित करता है। चूँकि श्रेणी समस्त श्रेणीकी व्यवस्था है इसलिए इसे श्रेणी कहते हैं और तभी सारे संवर्ग मिलकर श्रेणीकी पदानुक्रम बनाते हैं। प्रत्येक श्रेणी जो श्रेणीकरण की एक इकाई को प्रदर्शित करता है, वास्तव में, एक पद को दिखाता है।
श्रेणी तथा पदानुक्रम का वर्णन एक उदाहरण द्वारा कर सकते हैं। कीट जीवों के एक वर्ग को दिखाता है जिसमें एक समान गुण जैसे तीन जोड़ी सन्धिपाद होती हैं। इसका अर्थ है कि कीट स्वीकारणीय सुस्पष्ट जीव है जिसका श्रेणीकरण किया जा सकता है, इसलिए इसे एक पद अथवा श्रेणी का दर्जा दिया गया है। प्रत्येक पद अथवा श्रेणी वास्तव में, श्रेणीकरण की एक इकाई को बताता है। ये श्रेणी सुस्पष्ट जैविक है ना कि केवल आकारिकीय समूहन ।
सभी ज्ञात जीवों के श्रेणीकीय अध्ययन से सामान्य श्रेणी जैसे जगत्, संघ अथवा भाग (पौधों हेतु), वर्ग, गण, कुटुम्ब, वंश तथा जाति का विकास हुआ। पौधों तथा प्राणियों दोनों में जाति निम्नतम श्रेणी में आती हैं। किसी जीव को विभिन्न श्रेणियों में रखने हेतु मूलभूत आवश्यकता व्यष्टि अथवा उसके वर्ग के गुणों का ज्ञान होना है। यह समान प्रकार के जीवों तथा अन्य प्रकार के जीवों में समानता तथा विभिन्नता को पहचानने में सहायता करता है।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.