जापान की राष्ट्रीय डायट (国会 कोक्काई?)[1][2]वहाँ की द्विसदनीय विधानपालिका है। इसकी निचली सदन को जापान की प्रतिनिधि सभा और ऊपरी सदन को पार्षद सभा कहते हैं। दोनों सदनों का चुनाव समांतर मतदान के होता है। कानून बनाने के साथ-साथ, प्रधानमंत्री का चुनाव करना भी संसद की ज़िम्मेदारी है। संसद को सबसे पहले १८८९ में मेइजी संविधान के तहत शाही संसद के रूप में बुलाया गया था। संसद को वर्तमान रूप १९४७ में युद्धोत्तर संविधान के अपनाने के बाद दिया गया। संविधान के अनुसार संसद देश की शक्ति का सर्वोच्च अंग है। राष्ट्रीय संसद भवन नागाता-चो, चियोदा, टोक्यो में स्थित है।

सामान्य तथ्य राष्ट्रीय संसद 国会 कोक्काई, प्रकार ...
राष्ट्रीय संसद
国会
कोक्काई
१९३वाँ सामान्य सत्र
Thumb
प्रकार
सदन प्रकार द्विसदनीय
सदन
नेतृत्व
प्रतिनिधि अध्यक्ष तादामोरी ओशिमा, एलडीपी
21 अप्रैल 2015 से
पार्षद अध्यक्ष अकीको सांतो, एलडीपी
1 अगस्त 2019 से
संरचना
सीटें 710
Thumb
पार्षद सभा राजनीतिक समूह

सरकार (141)

  •   एलडीपी (113)
  •   कोमिटो (28)

विपक्ष (104)

  •   सीडीपी・डीपीएफपी・ एसडीपी(61)
  •   इशिन (16)
  •   जेसीपी (13)
  •   रीवा (2)
  •   एन-कोकू (2)
  •   निर्दलीय (10)
Thumb
प्रतिनिधि सभा राजनीतिक समूह

सरकार (314)

विपक्ष (151)

  •   सीडीपी・डीपीएफपी・एसडीपी (120)
  •   इशिन (11)
  •   जेसीपी (12)
  •   किबो (2)
  •   निर्दलीय (6)
चुनाव
पार्षद सभा पिछला चुनाव 21 जुलाई 2019 (25वाँ)
प्रतिनिधि सभा पिछला चुनाव 22 अक्टूबर 2017 (48वाँ)
सभा सत्र भवन
Thumb
राष्ट्रीय संसद भवन, नागाताचो, चियोदा-कु, टोक्यो
वेबसाइट
बंद करें

रचना

दोनों सदनों का चुनाव समांतर मतदान से होता है। अर्थात किसी चुनाव के सीटों को दो हिस्सों में बाँटा जाता है और दोनों के लिए अलग मतदान होता है। मतदाताओं को दो वोट डाल्ने के लिए कहा जाता है - एक चुनाव क्षेत्र के उम्मीदवार के लिए और एक पार्टी सूची के लिए। जापान का कोई भी नागरिक जो 18 वर्ष या उससे बड़ा हो इनमें मतदान कर सकता है।☃☃ 2016 में इसे 20 से घटाकर 18 वर्ष किया गया था।[3] जापान का संविधान संसद के सदनों के सीटों की संख्या, मतदान प्रणाली या उम्मीदवारों की योग्यता को निर्देशित नहीं करता, जिससे इन्हें कानून के ज़रिए निर्धारित किया गया है। लेकिन यह सर्वजनीन वयस्क मताधिकार और गुप्त मतदान का अधिकार देता है। साथ ही वह निर्धारित करता है कि चुनाव कानून "नस्ल, जाति, लिंग, सामाजिक स्थिति, पारिवारिक मूल, शिक्षा, जायदाद या आय" से भेदभाव नहीं कर सकता।

आम तौर पर, संसद के सदस्यों का चुनाव संसद में पारित किए गए संविधियों के तहत होता है। यह अक्सर विवाद का कारण रहा है क्योंकि जनसंख्या वितरण के बदलाव से प्रांतों के सीटों की संख्या बदली जाती है। उदाहरण के लिए, उदारतावादी लोकतांत्रिक पार्टी द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक समय तक सत्ता में रही है, और उसका अधिकतर समर्थन गामीण क्षेत्रों से आता है। युद्ध के बाद, लोग आर्थिक विकास के मक़सद से शहरों में बसने लगे; प्रांतों के सीटों में समायोजन के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों का नगरीय क्षेत्रों से अधिक प्रतिनिधित्व रहा है।  [4]  १९७६ के कुरोकावा फ़ैसले के बाद जापान के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक पुनरावलोकन के द्वारा विभाजन क़ानून की समीक्षा की है। १९७६ में न्यायालय ले एक चुनाव को अवैध घोषित कर दिया जिसमें ह्योगो प्रांत के एक ज़िले को ओसाका प्रांत के एक ज़िले से पाँच गुणा प्रतिनिधित्व मिला था। उसके बाद यह नियम बनाया गया है कि चुनावी असंतुलन ३:१ से अधिक  नहीं हो सकता, उससे अधिक असंतुलन संविधान के अनुच्छेद १४ का उल्लंघन है।  हाल के चुनावों में विभाजन अनुपात पार्षद सभा में ४.८  (२००५ में ओसाका/तोत्तोरी[5] ; २००७ में कानागावा/तोत्तोरी[6]) और प्रतिनिधि सभा में २.३ है (२००९ में चिबा ४/कोची ३)।[7]

निचले सदन के उम्मीदवार की न्यूनतम आयु २५ वर्ष है और ऊपरी सदन में ३० वर्ष है। उम्मीदवारों का जापानी नागरिक होना आवश्यक है। संविधान के अनुच्छेद ४९ के तहत, सांसदों को प्रति माह १३ लाख येन का वेतन मिलता है। सांसदों को करदाता निधि से तीन सचिव नियुक्त करने का अधिकार है, और इसके साथ मुफ़्त शिनकानसेन टिकट और चार राउंड ट्रिप विमान टिकटों की सुविधा मिलती है।[8]

शक्तियाँ

जापान जापानी संविधान के अनुच्छेद ४१ के अनुसार राष्ट्रीय संसद "राजकीय शक्ति का सर्वोच्च अंग" और "राज्य का एकमात्र व्यवस्थापक अंग" है। मेइजी संविधान के तुलना में यह विवरण सशक्त है जिसमें सम्राट संसद के सहमति से वैधानिक शक्ति का उपयोग करता है। संसद के ज़िम्मेदारियों में क़नून बनाने के अलावा सरकारी बजट को मंज़ूरी देना और संधियों का पुष्टिकरण है। यह संवैधानिक संशोधनों का भी प्रारूप तैयार कर सकता है, जिसके मंज़ूर होने पर, लोगों को जनमत संग्रह द्वारा पेश किया जाना आवश्यक है। प्रधानमंत्री की नियुक्ति संसद में प्रस्ताव से होती है, जिससे कार्यकारी सरकारी अभिकरणों पर वैधानिक प्रभुत्व की स्थापना होती है (अनुच्छेद ६७)। संसद सरकार भंग कर सकती है यदि प्रतिनिधि सभा के ५० सदस्यों द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है। सरकारी अधिकारियों का संसदीय जाँच समितियों के सामने पेश होना आवश्यक है, जिनमें प्रधानमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्री भी शामिल है। संसद दोषी पाए गए न्यायाधीशों पर महाभियोग भी चला सकता है। 

अधिकांश परिस्थितियों में, किसी प्रस्ताव के क़ानून बनने के लिए, उसे दोनों सदनों में पारित होना पड़ता है फिर उसे सम्राट द्वारा घोषित किया जाता है। यह भूमिका अन्य देशों के शाही स्विकृति के जैसे है; लेकिन सम्राट किसी क़ानून को घोषित करने से इनकार नहीं कर सकता, इसलिए उसकी वैधानिक भूमिका केवल एक औपचारिकता है।[9]

प्रतिनिधि सभा संसद का अधिक शक्तिशाली सदन है। [10]हालाँकि प्रतिनिधि सभा किसी प्रस्ताव पर पार्षद सभा को ख़ारिज नहीं कर सकता, पार्षद सभा प्रतिनिधि सभा में पारित किसी बजट या संधि के अपनाए जाने को बस विलंबित कर सकता है, और वह प्रतिनिधि सभा को किसी को भी प्रधानमंत्री नियुक्त करने से नहीं रोक सकता। साथ ही, नियुक्त होने के बाद, प्रधानमंत्री को केवल प्रतिनिधि सभा का विश्वास ही क़ायम रखने की आवश्यकता है। इन निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रतिनिधि सभा ऊपरी सदन को ख़ारिज कर सकता है:[11]

  • यदि प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव अपनाया जाता है, फिर ६० दिनों के अंदर पार्षद सभा द्वारा रद्द किया, संशोधित किया अथवा नहीं अपनाया जाता है, वह प्रस्ताव क़ानून बन जाता है यदि प्रतिनिधि सभा में फिर बहुमत से अपनाया जाता है और दो-तिहाई सदस्य उपस्थित हों।  [12]
  • यदि दोनों सदन किसी बजट या संधि पर सहमत नहीं हो पाते, संसद के संयुक्त समिति के नियुक्ति के बावजूद भी, अथवा यदि किसी बजट या संधि के प्रतिनिधि सभा में अप्नाए जाने के ३० दिनों के अंदर उस पर कार्यवाही नहीं करती, तब निचले सदन के निर्णय को संसद का निर्णय समझा जाता है।
  • यदि दोनों सदन प्रधानमंत्री के उम्मीदवार पर सहमत नहीं हो पाते, संसद के संयुक्त समिति के नियुक्ति के बावजूद भी, अथवा यदि पार्षद सभा प्रतिनिधि सभा के निर्णय के १० दिनों के अंदर अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं करती, तब निचले सदन के नामांकित उम्मीदवार को संसद का नामांकन समझा जाता है।

कार्यकलाप

संविधान के तहत, वर्ष में संसद का कम से कम एक सत बुलाया जाना आवश्यक है। तकनीकी रूप से, केवल प्रतिनिधि सभा को भी चुनाव से पहले भंग किया जाता है, पर इस दौरान पार्षद सभा आम तौर पर "बंद" रहती है। सम्राट ही संसद का समाह्वान और प्रतिनिधि सभा का विघटन करता है, पर वह ऐसा केवल मंत्रीमंडल के सलाह पर कर सकता है। आपातकाल में मंत्रीमंडल संसद का असामान्य सत्र बुला सकता है और एक असामान्य सत्र का आवेदन किसी भी सदन के एक-चौथाई सदस्य कर सकते हैं।  [13]  सत्र के प्रारंभ में, सम्राट पार्षद सभा में अपने सिंहासन से एक विशेष भाषण देता है। [14]

किसी भी सदन के एक-तिहाई सदस्यों की उपस्थिति से कोरम का गठन होता है और विचार-विमर्श सार्वजनिक होते हैं, जब तक मौजूद सदस्यों में से दो-तिहाई इसे असार्वजनिक करने पर सहमत हों। हर सदन का अपना अध्यक्ष होता है जो ड्रॉ होने पर निर्णायक वोट देता है। जब संसदीय सत्र चल रहा हो तब सदन के सदस्यों को गिरफ़्तारी से प्रतिरक्षा मिलती है और संसद में बयानों और मतों को संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त है। संसद के दोनो सदनों के अपने स्थायी आदेश हैं और अपने सदस्यों का अनुशासन उनकी ज़िम्मेदारी है। दो-तिहाई सहमति से किसी सदस्य को निष्कासित किया जा सकता है। मंत्रीमंडल के सदस्यों को अधिकार है कि वे किसी भी सदन में प्रस्ताव पर बयान दे सकते हैं और दोनों सदनों को अधिकार है कि वे मंत्रियों को तलब करें।

इतिहास

जापान की पहली आधुनिक विधानपालिका शाही संसद (帝国議会 तेइकोकु-गिकाई?) थी जिसे मेइजी संविधान के अनुसार स्थापित किया गया था। मेइजी संविधान को ११ फरवरी, १८८९ में अपनाया गया था और शाही संसद को २९ नवंबर, १८९० को सबसे पहले बुलाया गया। तब संसद में प्रतिनिधि सभा और कुलीन सभा (貴族院 किज़ोकु-इन) थी। प्रतिनिधि सभा का प्रत्यक्ष चुनाव होता था, लेकिन सीमित मताधिकार पर, सर्वजनीन पुरुष मताधिकार को १९२५ में अपनाया गया। ब्रितानी उच्च सदन (हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स) के समान कुलीन सभा में उच्च स्तरीय रईस होते थे।[15]

क़ानून बनने के लिए, संवैधानिक संशोधन को संसद और सम्राट की स्विकृति की आवश्यकता थी। इसका मतलब था, भले ही सम्राट हुक्मनामों के ज़रिए क़ानून नहीं बना सकता था, पर उसके पास संसद पर वीटो का अधिकार था। सम्राट प्रधानमंत और मंत्रीमंडल की नियुक्ति भी करता था, अर्थात् प्रधानमंत्री का चयन संसद से नहीं होता था।  शाही संसद के पास बजट नियंत्रित करने की भी सीमिन क्षमता थी। संसद बजट को वीटो कर सकता था, पर किसी बजट के मंज़ूर न होने पर पिछ्ले वर्ष का बजट ही लागू रहता था। यह सब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नए संविधान के अंतर्गत बदल दिया गया।

१९८२ में पेश किया गया प्रतिनिधि सभा के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली युद्धोत्तर संविधान के अंतर्गत पहला बड़ा सुधार था। उम्मीदवारों के लिए मतदान के बजाय, मतदाता पार्टियों के लिए वोट देते हैं। पार्षदों की सूची चुनाव से पहले औपचारिक रूप से जारी किया जाता है, और कुल राष्ट्रीय वोटों के अनुसार उनका चयन होता है। [16] इस प्रणाली का लक्ष्य था उम्मीदवारों द्वारा प्रचार में खर्च किए पैसे को घटाना। हालाँकि आलोचक मानते हैं कि इस बदलाव से सबसे ज़्यादा फ़ायदा उदारतावादी लोकतांत्रिक पार्टी और जापानी साम्यवादी पार्टी को हुआ, जो संसद की दो सबसे बड़ी पार्टियाँ हैं। [17]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

Wikiwand in your browser!

Seamless Wikipedia browsing. On steroids.

Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.

Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.