मैमथ
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मैमथ (अंग्रेजी:Mammoth), एक विशालकाय हाथी सदृश जीव था जो अब विलुप्त हो चुका है। इसका वैज्ञानिक नाम 'मैमुथस प्राइमिजीनियस'(Mammuthus primigenius) है। यह साइबेरिया के टुंड्रा प्रदेश में बर्फ में दबे एक हाथी का नाम है, जो अब विलुप्त हो चुका है, परन्तु बर्फ के कारण जिसका संपूर्ण मृत शरीर आज भी सुरक्षित मिला है। अनुमान लगाया जाता है कि फ्रांस में यह जंतु हिम युग के अंत तक और साइबीरिया में संभवत: और आगे तक जीवित रहा होगा। मैमथ शब्द की उत्पत्ति साइबीरियाई भाषा के 'मैमथ' शब्द से मानी जाती है, जिसका अभिप्राय 'भूमि के नीचे रहनेवाले जंतु' से होता है। चूँकि इस हाथी का शरीर सदैव जमे हुए बर्फीले कीचड़ के नीचे ही पाया गया है, अत: उस देश के किसान मैमथ को एक प्रकार का वृहत छछूँदर ही समझते थे।
मैमथ सामयिक शृंखला: Early Pliocene to Middle Holocene | |
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लॉस एंजिल्स के संग्रहालय में रखा कोलम्बियन मैमथ | |
वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | जंतु |
संघ: | रज्जुकी |
वर्ग: | स्तनधारी |
गण: | प्रोबोसिडी |
कुल: | एलिफैंटिडी |
वंश: | †मैमुथस ब्रूक्स, 1828 |
प्रजाति | |
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फ्रांस की गुफाओं में पूर्व प्रस्तरयुगीन (Palaeolithic) शिकारी मानव के उपर्युक्त हाथी के बहुत से चित्र बनाकर छोड़े हैं, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि यह जंतु पहले यूरोप (और संभवत: भारत और उत्तरी अमरीका, जहाँ उससे मिलते जुलते हाथियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं) में रहा करता था और हिम युग के समाप्त होने और बर्फ के खिसकने पर भोजन की खोज में उत्तर की ओर बढ़ा और वहाँ की दलदली भूमि में अपने भारी शरीर के कारण धँस गया तथा दलदल के साथ जम गया।
आकार में मैमथ वर्तमान हाथियों के ही बराबर होते थे, परंतु कई गुणों में उनसे भिन्न थे। उदाहरणार्थ वर्तमान हाथियों के प्रतिकूल मैमथ का शरीर भूरे और काले तथा कई स्थानों पर जमीन तक लंबे बालों से ढँका था, खोपड़ी छोटी और ऊँची, कान छोटे तथा मैमथ दंत (tusk) अत्यधिक (14 फुट तक) लंबे (यद्यपि कमजोर) थे। मैमथ दंत की एक विशेषता यह भी थी कि वे सर्पिल (spiral) थे। मैमथ दंत इतनी अच्छी दशा में सुरक्षित हैं कि आज भी उद्योग में उनका उपयोग है और मध्कालीन समय में तो साइबेरिया से लेकर चीन के मध्य उनका अच्छा व्यापार भी होता था। सच तो यह है कि बर्फ में दबे रहने के कारण मैमथों, का सारा शरीर ही इतनी अच्छी दशा में सुरक्षित मिला है कि न केवल इनका मांस खाने योग्य पाया गया वरन उनके मुँह और आमाशय में पड़ा उस समय का भोजन भी अभी तक सुरक्षित मिला है।