मानवता (सद्गुण)
सद्गुण बुनियादी नैतिकता से जुड़ा हुआ है / From Wikipedia, the free encyclopedia
सद्गुण को virtue भी कहा जाता है। यह शब्द ग्रीक अथवा यूनानी भाषा के 'ऐरेट' शब्द से बना है, जिसका अर्थ है- श्रेष्ठता।
वह मनोवृत्ति जिसे अभ्यास और प्रयत्न के द्वारा दृढ और मजबूत बनाया जा सकता है, सद्गुण कहलाता है।
>सद्गुण जन्मजात नही होता। >सद्गुण एक प्रकार के श्रेष्ठ आचरण अथवा व्यवहार के अर्थ मे भी प्रयुक्त होता है। >पाश्चात्य दर्शन मे सुकरात,प्लेटो,तथा अरस्तु का सद्गुण संबंधी सिद्धांत प्रसिद्ध माना गया है।
मानवता ही सद्गुण का आधार है सद्गुण को समझना है तो मानवता को जानना ही होगा*मानवता लाओ देश बचाओ* जैसे सब की एक जाति है जाति अर्थात प्रकार । पशु भी एक प्रकार है की चार पैर में चलते है।उसमें पशु एक शाकाहारी है तो एक मांसाहारी तो कुछ सर्वाहारी ।इसमें भी पशु के एक प्रकार का चिंतन किया गया है। इस ही कई पाकर पशुओं में है। और कई प्रकार मानव में है ।ये सब स्थिति परिस्थिति और समय से निर्मित होते है। मानव की प्रकृति मन विचार ,बुद्धि विवेक से निर्मित होती है मानव की मूल प्रकृति प्रेम , दया ,करुणा,सेवा शांति से निर्मित होती है ।पर मानव अपनी स्वार्थ,लोभ ,अहंकार घृणा के कारण अपनी मूल प्रकृति से भटक कर दुख विषाद की स्थिति निर्मित कर रहा है।और अमानवीय जीवन की ओर पतन में अग्रसर हों रहा है।इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है ।महापुरुषों ने अज्ञानता को दुख का कारण कहा है।अब यह विचार का विषय है को अज्ञानता किस बात की तो मैं कहूंगा मूल प्रकृति की ।
यह संसार आदिकाल से मानव द्वारा संचालित है की धरती में मानव को किस तरह एक सुव्यवस्थित जीवन जीना है। पर वह प्राकृतिक फूलो की गुलाब की खुशबू ले या फिर आर्टिफिशियल फूल को निर्मित कर उसमे खुशबू ढूंढे हम जानते है उसमे गुलाब की सुगंध न मिलेगी। हम प्रकृति से बहुत दूर आ गए है।उन आदिपुरुसो अपने पूर्वजों के सिद्धांत को दरकिनार कर अमानवीय हो गए है।मानवता का पतन कर आने वाली पीढ़ी को शोक हिंसा दुख में धकेलने के लिए हम जिम्मेदार है।यह बात स्वीकार करनी होगी और मानवता लाकर समूचे विश्व को बचने को जिम्मेदारी लेनी होगी ।अपने स्वार्थ लोभ और पशुत्व से उठकर मानव कल्याण के लिए काम करने की जरूरत है। वरना आने वाली पीढ़ी हमे कभी माफ न करेगी।फिर संस्कार के लिए,वातावरण की दुषिता के लिए हो या अमानवीयता के लिए।
सबसे पहले तो यह समझना अतिआवश्यक है को सम्पूर्ण विश्व में मानव चाहे देश विदेश में हो,काला गोरा हो , ऊंचा नीचा हो ,किसी भी धर्म जाति का हो सबसे पहले मानव है।और हमारा कर्तव्य मानव कल्याण हो।मानव अपने जाति(विचार आधारित) ,धर्म,स्थान के आधार पर बता हुआ है।सब एक दूसरे को नीचा दिखाना,नष्ट करना,अपमानित करना, जैसे अमानवीय विचारधारा से ग्रसित है।इससे उठकर एक दूसरे के कल्याण की भावना से ही विश्व का निर्माण संभव है। द्वारा *प्रभूदास प्रभात*