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मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा
अधिकार सिद्धान्त / From Wikipedia, the free encyclopedia
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में यह कथन था कि संयुक्त राष्ट्र के लोग यह विश्वास करते हैं कि कुछ ऐसे मानवाधिकार हैं जो कभी छीने नहीं जा सकते; मानव की गरिमा है और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार हैं। इस घोषणा के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा अंगीकार की।
![]() संयुक्त राष्ट्र संघ का ध्वज | |
मुख्यालय | मैनहैटन टापू, न्यूयॉर्क नगर, न्यूयॉर्क राज्य, संयुक्त राज्य |
सदस्य वर्ग | 193 सदस्य देश |
अधिकारी भाषाएं | अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ़्रांसीसी, रूसी, स्पेनी |
अध्यक्ष | महासचिव अँटोनीओ गुटेरस |
जालस्थल | http://www.un.org |
![](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/2/24/Eleanor_Roosevelt_UDHR.jpg/640px-Eleanor_Roosevelt_UDHR.jpg)
इस घोषणा से राष्ट्रों को प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और वे इन अधिकारों को अपने संविधान या अधिनियमों के द्वारा मान्यता देने और क्रियान्वित करने के लिए अग्रसर हुए। राज्यों ने उन्हें अपनी विधि में प्रवर्तनीय अधिकार का दर्जा दिया।
10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ की समान्य सभा ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा को स्वीकृत और घोषित किया। इसका पूर्ण पाठ आगे के पृष्ठों में दिया गया है। इस ऐतिहासिक कार्य के बाद ही सभा ने सभी सदस्य देशों से पुनरावेदन किया कि वे इस घोषणा का प्रचार करें और देशों अथवा प्रदेशों की राजनैतिक स्थिति पर आधारित भेदभाव का विचार किये बिना, विशेषतः विद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थाओं में, इसके प्रचार, प्रदर्शन, पठन और व्याख्या का प्रबन्ध करें।
इसी घोषणा का सरकारी पाठ संयुक्त राष्ट्रों की इन पाँच भाषाओं में प्राप्य है: अंग्रेजी, चीनी, फ़्रांसीसी, रूसी और स्पेनी। अनुवाद का जो पाठ यहाँ दिया गया है, वह भारत सरकार द्वारा स्वीकृत है।