राजा राजा भगवन्त दास) (1537 – 10 दिसम्बर 1589) आमेर के कछवाहा शासक थे। जयसिंह द्वितीय उनके ही वंशज थे जिन्होने जयपुर की स्थापना की।

सामान्य तथ्य भगवानदास, शासनावधि ...
भगवानदास
आमेर के राजा
शासनावधि27 जनवरी 1574 10 दिसम्बर 1589[1]
जन्म१५३७
निधन१० दिसम्बर १५८९
जीवनसंगीरानी सा भगवती बाई जी साहिबा
संतानमानसिंह प्रथम (1550–1614)
माधो सिंह (1561–1601)
मनभावती बाई (1572–1605)
बज्रेश सिंह (1579–1601)
अनुपूर्वा बाई (1581–1648)
जीजाई बाई (1589–1622)
पिताभारमल
मातारानी सा मैनावती साहिबा
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आमेर का आमेर दुर्ग राजा भगवन्त दास की राजधानी था।

भगवन्तदास ने भारमल केे बाद आमेर का सिंहासन संभाला। अकबर के दरबार की शान बढ़ाने वाला राजा मानसिंह भगवन्तदास का ही पुत्र था। मुगल दरबार में भगवन्तदास को ऊँचा मनसब प्राप्त था। इसके अलावा वह एक उत्कृष्ट योद्धा था, जिसने आमेर से बाहर जाकर पश्चिमी और उत्तरी भारत में कई बड़े युद्ध लड़े और उनमें विजय प्राप्त की।

राजा भारमल की मौत के बाद भगवन्तदास सन् 1573 ई. में आमेर का राजा बना। अपने पिता के समान ही भगवन्तदास को भी मुगल दरबार में काफी ऊँचा पद प्राप्त हुआ था। वह पांच हजारी मनसब तक पहुँचा था। अकबर बिना युद्ध के महाराणा प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें से भगवन्तदास भी एक थे।

भगवन्तदास को लाहौर का संयुक्त गवर्नर बनाया गया था, जबकि उसका पुत्र मानसिंह क़ाबुल में नियुक्त हुआ। जब मिर्ज़ा हाकिम ने लाहौर पर आक्रमण किया, तब उसे पराजित करने में भगवन्तदास का बहुत बड़ा हाथ था।

1585 में भगवन्तदास को कश्मीर के सुल्तान यूसुफ़ ख़ान के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए भेजा गया, जहां उससे डरकर सुल्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस उपलब्धि पर उसके नाम से सिक्का भी प्रचलित किया गया।

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भगवन्तदास, राजा टोडरमल के साथ पंजाब का संयुक्त सूबेदार रहा।

भगवन्तदास की मृत्यु 13 नवम्बर ,1589 को लाहौर में हो गयी जिसके बाद उनके पुत्र मानसिंह 1589 ई. में आमेर के शासक बने। इनके कार्यकाल में आमेर एक महत्वपूर्ण एवं गौरवपूर्ण राज्य में रूप में विख्यात हुआ।

'मानसी गंगा', गोवर्धन के तटों को पत्थरों से सीढ़ियों सहित बनवाने का श्रेय भगवानदास को प्राप्त है। श्रद्धालु मानसी गंगा के चारों और दर्शनीय स्थानों के दर्शन करते हुए परिक्रमा लगाते हैं। भगवानदास बाँकावत लवाण के जागीरदार थे व भगवन्तदास के अनुज थे। वह बाँके राजा के नाम से प्रसिद्ध थे व उनके वंशज बाँकावत व कछवाहा कहलाते हैं।

सन्दर्भ

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