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बही-खाता या पुस्तपालन या बुककीपिंग एक ऐसी पद्धति है जिसमें किसी कम्पनी, गैर–लाभकारी संगठन या किसी व्यक्ति के वित्तीय लेनदेन के आंकड़ों का प्रतिदिन के आधार पर भंडारण, रिकॉर्डिंग और पुनर्प्राप्त करना, विश्लेषण और व्याख्या करने की प्रक्रिया शामिल होती है। इस प्रक्रिया में बिक्री, प्राप्तियां, लेनदेन में खरीद, और किसी व्यक्ति/निगम/संगठन द्वारा भुगतान आदि सम्मिलित किए जाते हैं। बुककीपिंग, एक बुककीपर द्वारा किया जाता है जो किसी व्यवसाय के प्रतिदिन के वित्तीय लेनदेन को रिकॉर्ड करता है।
लेखांकन | |
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मुख्य संकल्पनाएँ | |
लेखांकक · लेखांकन अवधि · पुस्तपालन · Cash and accrual basis · Cash flow management · Chart of accounts · Constant Purchasing Power Accounting · Cost of goods sold · Credit terms · Debits and credits · Double-entry system · Fair value accounting · FIFO & LIFO · GAAP / IFRS · General ledger · Goodwill · Historical cost · Matching principle · Revenue recognition · Trial balance | |
लेखांकन के क्षेत्र | |
लागत · वित्तीय · न्यायालयिक · Fund · प्रबन्ध | |
वित्तीय विवरण | |
Statement of Financial Position · Statement of cash flows · Statement of changes in equity · Statement of comprehensive income · Notes · MD&A · XBRL | |
लेखापरीक्षा | |
लेखापरीक्षक की रिपोर्ट · वित्तीय लेखापरीक्षा · GAAS / ISA · आन्तरिक लेखापरीक्षा · Sarbanes–Oxley Act | |
लेखांकन योग्यताएँ | |
CA · CPA · CCA · CGA · CMA · CAT | |
प्रक्रिया के लिए शुद्धता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्तिगत वित्तीय लेनदेन के रिकॉर्ड सही, व्यापक और अद्यतन (अप–टू–डेट) हैं। प्रत्येक लेनदेन, चाहे वह बिक्री हो या खरीद हो, दर्ज किया जाना चाहिए। बुक कीपिंग के लिए स्थापित संरचनाएं होती हैं जिन्हें ‘गुणवत्ता नियंत्रण‘ कहा जाता है। ये संरचनाएँ समय–समय पर वित्तीय लेनदेन के भंडारण, रिकॉर्डिंग और पुनर्प्राप्ति और सटीक रिकॉर्ड सुनिश्चित करने में सहायता करतीं हैं।
'बही-खाता' दो प्रविष्टियों वाली (डबल इंट्री) पुस्तपालन (बुककीपिंग) की भारतीय पद्धति है। प्रायः १४९४ में लिखित पिकौलीज समर (Pacioli's Summar) को अंकेक्षण का प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है किन्तु बही खाता का प्रचलन भारत में उससे भी पूर्व कई शताब्दियों से है। बही-खाता की पद्धति भारत में यूनानी एवं रोमन साम्राज्यों के पहले भी विद्यमान थी। इससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय व्यवसायी अपने बही-खाता अपने साथ इटली ले गये और वहीं से द्विप्रविष्टि प्रणाली पूरे यूरोप में फैली।
बुक–कीपिंग का लेखा की प्रक्रिया में शामिल दो महत्वपूर्ण कदमों के साथ संबंध है, ये हैं:
बुक कीपिंग की दो मुख्य विधियाँ हैं- सिंगल–एंट्री बहीखाता पद्धति और डबल–एंट्री बहीखाता पद्धति।
सामान्यतः लोग बहीखाता-लेखन और लेखांकन के बीच काफी उलझे हुए हैं। कई बार अकाउंटेंट के कार्य को बुककीपिंग के साथ मिला दिया जाता है, जबकि बुककीपर्स, एकाउंटिंग की प्रक्रिया के दौरान पहले चरण का कार्य करते हैं। बुककीपिंग के अंतर्गत बुक-कीपर को प्रतिदिन के लेन-देन का तर्कसंगत लेखा-जोखा रखना होता है। जबकि अकाउंटेंट का कार्य उस लेखन का मूल्यांकन करना और वित्तीय चक्र के सुधार के बारे में परामर्श देने का होता है। अकाउंटेंट केवल प्रतिदिन के एकाउंटिंग के कार्य की नियमितता की ही जाँच नहीं करता बल्कि व्यापार के आगामी वित्तीय प्रक्षेपण और सलाहकार के रूप में भी अहम् भूमिका निभाता है। अकाउंटेंट और बुक-कीपर दोनों ही व्यापार के वित्तीय चक्र में अलग-अलग पड़ावों पर सहायक होते हैं, परन्तु इनकी कार्य प्रणाली और कर्तव्यों के आधार पर इनमे कुछ भिन्नता है, जो निम्नलिखित है-
क्रमांक | भेद का क्षेत्र | पुस्तपालन | लेखाकर्म |
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(१) | अर्थ | पुस्तपालन का अर्थ व्यापारिक लेन-देन को प्रारम्भिक पुस्तकों व खातों में लिखना होता है। | लेखाकर्म से आशय है प्रारम्भिक पुस्तकों व खातों की सूचनाओं से अन्तिम खाते बनाना व व्यावसायिक निष्कर्षों को ज्ञात करना व उनका विश्लेषण करना। |
(२) | मुख्य उद्देश्य | पुस्तपालन का मुख्य उद्देश्य दिन प्रतिदिन के लेनदेनों को क्रमबद्ध रूप से पुस्तकों में लिखना है | इसका मुख्य उद्देश्य पुस्तपालन से प्राप्त सूचनाओं से निष्कर्ष निकालना व उनका विश्लेषण करना है। |
(३) | क्षेत्र | इसका क्षेत्र व्यापारिक लेनदेनों को लेखों की प्रारम्भिक पुस्तकों में लिखने व खाते बनाने तक सीमित रहता है। | इसका क्षेत्र निरन्तर विस्तृत होता जा रहा है। लेखा पुस्तकों से व्यापारिक निष्कर्ष निकालना, उनका विश्लेषण करना तथा प्रबन्ध को उपयोगी सूचनाएं देना इसके क्षेत्र में सम्मिलित हैं। |
(४) | कार्य की प्रकृति | इसका कार्य एक प्रकार से लिपिक प्रकृति का होता है। | लेखाकर्म एक प्रकार से तकनीकी प्रकृति का कार्य है। |
(५) | परस्पर निर्भरता | पुस्तपालन का कार्य स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है। यह लेखाकर्म पर किसी प्रकार से निर्भर नहीं होता है। | लेखाकर्म पूर्ण रूप से पुस्तपालन से प्राप्त सूचनाओं पर निर्भर होता है। |
(६) | निर्णयन | पुस्तपालकों के पास व्यापार के निर्णय लेने का अधिकार नहीं होता और केवल बुक-कीपिंग के रिकार्ड्स के आधार पर कोई नवीन निर्णय नहीं लिया जा सकता। | अकाउंटेंट के रिकॉर्ड के आधार पर आगामी वित्तीय लेन-देन का निर्णय लिया जा सकता है और अकाउंटेंट से इस बारे में विचार किया जाता है। |
(७) | प्रबंधन में भूमिका | बुक-कीपर्स के कार्य में प्रबन्धन का कोई हस्तक्षेप नहीं होता और न ही बुक-कीपर अपने रिकार्ड्स को सीधा मैनेजमेंट को सौंपते हैं। | अकाउंटेंट का सीधा संपर्क कंपनी के प्रबन्धन से होता है। कंपनी के किसी भी वित्तीय निर्णय से पूर्व अकाउंटेंट से उस सौदे के बारे में बातचीत की जाती है। |
(८) | संधारित दस्तावेज | पुस्तपालक केवल लेजरों और जर्नलों का उपयोग करते हैं। | अकाउंटेंट बैलेंस शीट, लाभ और हानि के वक्तव्य, कैश फ्लो के वक्तव्य आदि दस्तावेजों को बनाये रखने का कार्य करते हैं और उसके आधार पर आगामी वित्त-सम्बन्धी निर्णय लेते हैं। |
(९) | वित्तीय विश्लेषण और दस्तावेज रचना | पुस्तपालक को वित्तीय विवरण के दस्तावेज बनाना आवश्यक नहीं होता। | अकाउंटेंट पुस्तपालकों के बहीखाते के आधार पर वित्तीय विवरण तैयार करते हैं और यह एकाउंटिंग की प्रक्रिया का अभिन्न भाग है। |
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