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फलासी भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक गाँव है। यहाँ पर भगवान तुंगनाथ का प्राचीन मन्दिर है।
मन्दिर में भगवान शिव (तुंगनाथ) का आपरुप (ऐसी मूर्ति, लिंग आदि जो मनुष्य निर्मित न होकर स्वयं प्रकट होती है) लिंग है। इसके अतिरिक्त भगवती चण्डिका एवं गणेश जी हैं। इस मन्दिर में शिव (भगवान तुंगनाथ) की प्रधानता है, जबकि तुंगनाथ के एक अन्य मन्दिर जो कि सतेरा में है उसमें शक्ति (नारी देवी) की प्रधानता है। मन्दिर में सामान्य पूजा पास के ही फलासी गाँव के लोग करते हैं।
मन्दिर प्राचीन दक्षिण शैली का बना है। यद्यपि बाद में इसका पुनुरुद्धार किया गया लेकिन प्राचीन शैली की सुन्दरता को कायम रखने का प्रयत्न किया गया। मन्दिर में कुछ पुरानी मन्दिर की दीवारों पर बनी मूर्तियों के अवशेष हैं जिनसे पता चलता है कि पुराने समय में मन्दिर की दीवारों पर दक्षिण शैली में सुन्दर मूर्तियाँ बनी रही होंगी।
मन्दिर का स्वामित्व पास के राजपूत थोकदारों के पास होता है।
मन्दिर में लगभग १२ सालों बाद भगवती चण्डिका की बन्याथ (यात्रा) होती है। यात्रा के पहले देवी के प्रतीक बरमा ठंगुरु (छड़ी के ऊपर डोली स्थापित की गई होती है) की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। यात्रा के दौरान बरमा ठंगुरु को मन्दिर के क्षेत्र में आने वाले सभी गाँवों में घर-घर एवं सभी देवस्थानों पर ले जाया जाता है। चार राजपूत जाति के पुरुष (जिन्हें एर्वला कहा जाता है) महीनों तक कठिन एवं पवित्र जीवन शैली का निर्वाह करते हुये बरमा ठंगुरु को ले जाते हैं। साथ में गणेश देवता की डोली जाती है जिसे ब्राह्मण ले जाता है। इसके अतिरिक्त भूत्योर (भूत) देवता साथ जाता है।
यात्रा की समाप्ति पर यज्ञ होता है। मन्दिर के ऊपर कुछ सीढ़ीनुमा खेत हैं जिनमें से एक में यज्ञ कुण्ड बनाया जाता है। यज्ञ में कर्मकाण्ड ग्राम बेंजी के ब्राह्मणों द्वारा करवाया जाता है जबकि ग्राम मयकोटी के ब्राह्मणों के पास आचार्य पद होता है। यज्ञ की समाप्ति पर बरमा ठंगुरु को पृथ्वी के नीचे पधरा दिया जाता है। साथ ही बरमा ठंगुरु को ले जाने वाले एर्वालों की एक झोंपड़ी होती है जिसे जला दिया जाता है, इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवती को कई महीने साथ रहने से एर्वालों के प्रति मोह हो जाता है और वह उन्हें अपने साथ ले जाना चाहती है, इसलिये भगवती को यह जताने के लिये कि अब उनका सम्बंध समाप्त हो चुका है उनकी झोपड़ी को जला दिया जाता है।
ऋषिकेश से मोटरमार्ग द्वारा बस अथवा टैक्सी से रुद्रप्रयाग, फिर रुद्रप्रयाग से चोपता कस्बे (यह चमोली जिले के चोपता कस्बे से अलग है) तक पहुँचें। चोपता से एक पैदल मार्ग नीचे फलासी गाँव की तरफ जाता है जहाँ से मन्दिर तक १५-२० मिनट का रास्ता है।
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