दोहा
अर्द्धसम मात्रिक छंद / From Wikipedia, the free encyclopedia
सोरथा' अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं | इसके विषम चरणों प्रथम तथा तृतीय में १३-१३ मात्राएँ और सम चरणों द्वितीय तथा चतुर्थ में ११-११ मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के आदि में प्राय: जगण (।ऽ।) टालते है, लेकिन इस की आवश्यकता नहीं है। 'बड़ा हुआ तो' पंक्ति का आरम्भ ज-गण सlक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है अर्थात् अन्त में लघु होता है।
उदाहरण-
- बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
- पंथी को छाया नहीं, फल लागैं अति दूर।।
- मुरली वाले मोहना, मुरली नेक बजाय।
- तेरी मुरली मन हरे, घर अँगना न सुहाय॥
हेमचन्द्र के मतानुसार दोहा-छन्द के लक्षण हैं - समे द्वादश ओजे चतुर्दश दोहक: समपाद के अन्तिम स्थान पर स्थित लघु वर्ण को हेमचन्द्र गुरु-वर्ण का मापन देता है। 'अत्र समपादान्ते गुरुद्वयमित्याम्नाय:' यह सूत्र विषद किया है।
3. उदाहरण-
जाति ना पूछो साधु की, पुछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार की, पड़ा रहन दो म्यान।। - SURYA AMD