देवी चौधुरानी
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देवी चौधुरानी (बांग्ला: দেবী চৌধুরানী) बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित बांग्ला भाषा का एक उपन्यास है जिसका प्रकाशन १८८४ में हुआ। इस उपन्यास में आनन्दमठ का सूक्ष्मता से अनुसरण करते हुए बंकिम ने भारत के पुनर्जागरण का आह्वान किया ताकि जनसामान्य में निहित शक्ति के माध्यम से ब्रितानी साम्राज्य के अत्याचारों से लड़ा जा सके। इस उपन्यास को भी ब्रितानी सरकार ने प्रतिबन्धित कर दिया क्योंकि यह भारत की स्वतन्त्रता के लिये लड़ने का आह्वान करता है। भारत के स्वतन्त्र होने पर भारत सरकार ने इससे प्रतिबन्ध हटा लिया। इस उपन्यास में बंकिम चन्द्र ने यह विचार रखा है कि भारत की स्वतन्त्रता के लिये अंग्रेजों से आमने-सामने की लड़ाई ही एकमात्र रास्ता है।
देवी चौधुरानी | |
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लेखक | बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय |
मूल शीर्षक | দেবী চৌধুরানী |
देश | भारत |
भाषा | बांग्ला |
प्रकार | उपन्यास (राष्ट्रवादी) |
प्रकाशन तिथि | 1884 |
मीडिया प्रकार | Print (Paperback) |
बंकिमचन्द्र ने ‘देवी चौधरानी’ उपन्यास में भारतीय स्त्रियों की दुर्दशा को जीवन्त रूप दिया है। प्रफुल्ल एक गरीब लड़की है, जिसका विवाह सुखी-सम्पन्न परिवार में होता है। परन्तु गरीबी के कारण उसे घर से निकाल दिया जाता है। ससुराल से निकाल दिए जाने पर भी आजीवन पतिपरायण रही। वह डाकुओं के चुंगल में पड़ कर डाकू भले ही बन गई हो, पर उस ने कभी डाका नहीं डाला, कभी किसी को सताया नहीं। उस ने सदैव गरीबों और निस्सहायोँ का उपकार किया। इस उपन्यास में स्त्री के मजबूत इरादों को सुन्दर तरीके से उकेरा गया है।
बहुत महत्वपूर्ण बात यह है कि बंकिम चंद्र ने स्वतंत्रता संघर्ष को एक महिला नायिका (प्रफुल्ल) के नेतृत्व में देखा, वह भी ऐसे समय में जब अधिकतर महिलाएं पर्दे के पीछे रहती थीं और अपने परिवार के बाहर के पुरुषों को अपना चेहरा भी नहीं दिखाती थीं। यह उन असंख्य महिलाओं के लिए एक महान प्रेरणा थी जो धीरे-धीरे अपने घरों से बाहर आईं और आने वाले दशकों में स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल हुईं।