तोरमाण भारत वर्ष पर आक्रमण करने वाला चीन से आने वासे हूणों का नेता था जिसने 500ई के लगभग मालवा पर अधिकार किया था। मिहिरकुल तोरमाण का ही पुत्र था, जिसने हूण साम्राज्य का विस्तार अफ़ग़ानिस्तान तक किया। तोरमाण ने कई विजय अभियान किये थे, एक बड़े विस्तृत भू-भाग पर अपना साम्राज्य स्थापित किया था। अपनी विजयों के बाद उसने 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की थी। भारत के काफ़ी बड़े क्षेत्रफल पर उसने अपनी विजय पताकाएँ फहराई थीं। उसका प्रभुत्व सम्भवत: मध्यप्रदेश ,नमक की पहाड़ियों तथा मध्य भारत तक व्याप्त था। बहुत बड़ी संख्या में तोरमाण के चाँदी के सिक्के बरामद हुए हैं।

तोरमाण के सिक्के
तोरमाण का सोने का सिक्का जिसमे पीठ पर हिन्दू देवी लक्ष्मी का चित्र है(circa 490-515)

तोरमाण का संजली शिलालेख,मालवा और गुजरात पर उसके विजय और नियंत्रण की बात करता है। उसके क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और कश्मीर भी शामिल था। वह संभवतः कौशांबी तक गया, जहाँ उसकी एक मुहर का पता चला था। १९८३ में खोजे गए रिस्थल (मंदसौर) शिलालेख के अनुसार, मालवा के औलीकर राजा प्रकाशधर्म ने उसे हराया था।

तोरमाण का सुप्रसिद्ध पुत्र मिहिरकुल अथवा 'मिहिरगुल' लगभग 502 ई. में उसका उत्तराधिकारी बना[1]

अवलोकन

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