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जम्बूद्वीप
हिंदु जैन एवं बौद्ध धर्म के खगोल अनुसार विश्व का एक क्षेत्र / From Wikipedia, the free encyclopedia
प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में प्रायः बृहत्तर भारत की धरती को जम्बूद्वीप नाम से अभिहित किया गया है। वस्तुतः जम्बूद्वीप का अधिकांश भाग वर्तमान एशिया माना जाता है। प्राचीन भारतीय ब्रह्माण्डशास्त्र में 'द्वीप' का अर्थ वर्तमान समय के द्वीप या महाद्वीप (continent) जैसा है। इस समय बचे हुए प्रमाणों के आधार पर ऐसा लगता है कि सबसे पहले सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में अपने राज्यक्षेत्र को 'जम्बूद्वीप' कहा है। पश्चातवर्ती ग्रन्थों में यही शब्दावली देखने को मिलती है। उदाहरण के लिये, १०वीं शताब्दी के एक कन्नड शिलालेख में भी भारत को 'जम्बूद्वीप' कहा गया है।
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![जंबुदीप में सुमेरू पर्वत का चित्रण](http://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/f/ff/Jambudweep_Rachna.jpg/640px-Jambudweep_Rachna.jpg)
सनातनी ऐतिहासिक भूगोल के वर्णन के अनुसार जम्बूद्वीप सप्तमहाद्वीपों में से एक है। यह पृथ्वी के केन्द्र में स्थित माना गया है। इसके नौ खण्ड हैं, जिनके नाम ये हैं- इलावृत्त, भद्रास्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरू और हिरण्यमय । इसका नामकरण जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष के आधार पर हुआ है। इस जम्बू वृक्ष के रसीले फल जिस नदी में गिरते हैं वह मधुवाहिनी जम्बूनदी कहलाती है। यहीं से जाम्बूनद नामक स्वर्ण उत्पन्न होता है। इस जल और फल के सेवन से रोग-शोक तथा वृद्धावस्था आदि का प्रभाव नहीं होता।[1]
भारतवर्ष के सनातनी परिवार पूजा तर्पण के समय एक मंत्र में प्रतिदिन स्मरण करते हैं- जम्बूद्वीपे, भरतखण्डे, आर्यावर्ते.... (जम्बूद्वीप के भारतखण्ड के आर्यवर्त में...)। पुराणों में जम्बूद्वीप के छह वर्ष पर्वत बताए गए हैं- हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान । कालान्तर में इस जम्बूद्वीप के आठ द्वीप बन गए- स्वर्णप्रस्थ, चन्द्रशुक्ल, आवर्तन, रमणक (रमन्त्रा),मन्दर, हरिण, पाञ्चजन्य तथा सिंहल । जम्बूद्वीप की भौगोलिक रचना हस्तिनापुर ( उ०प्र० ) में निर्मित है । 250 फुट के विस्तृत क्षेत्र में इसका निर्माण हुआ है ।
महाराज सगर के पुत्रों के पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं:
- स्वर्णप्रस्थ
- चन्द्रशुक्ल
- आवर्तन
- रमणक
- मनदहरिण
- पाञ्चजन्य
- सिंहल तथा
- लंका