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जई जाटो के खेतों की शान है विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
जई एक फसल है। इसका उपयोग अनाज, पशुओं के दाने तथा हरे चारे के लिए होता है।
भारत में जई की जातियाँ मुख्यत: ऐवना सटाइवा (Avena sativa) तथा ऐवना स्टेरिलिस (A. sterilis) वंश की हैं। यह भारत के उत्तरी भागों में उत्पन्न होती हैं।
जई की खेती के लिये शीघ्र पकनेवाली खरीफ की फसल काटने के बाद चार-पाँच जोताइयाँ करके, 125-150 मन गोबर की खाद प्रति एकड़ देनी चाहिए। अक्टूबर-नवंबर में 40 सेर प्रति एकड़ की दर से बीज बोना चाहिए। इसकी दो बार सिंचाई की जाती है। हरे चारे के लिये दो बार कटाई, जनवरी के आंरभ तथा फरवरी में, की जाती है। दूसरी सिंचाई प्रथम चारे की कटाई के बाद करनी चाहिए। हरे चारे की उपज 200-250 मन तथा दाने की 15-20 मन प्रति एकड़ होती है। हालांकि यह जई प्रजाति का पौधा गेहूं के फसल में उग जाता है। जिसे किसान घास मान कर निकाल देता है।इसे कुछ किसान घोड़ा घास के नाम से भी जानते है। घोड़ा इस जई को विशेष चाव से खा कर मजबूत हो जाता है।
जब आप ओट्स का सेवन करेंगे तब आपको आपका पेट भरा हुआ महसूस होगा, जो आपको ज्यादा खाना खाने से रोकेगा ।
तो जब आप कम खाना खाएंगे तो आप अपने वजन को नियंत्रित रख सकते है ।
अध्ययन के अनुसार 2009 में ओटमील में पाए जाने वाला बीटा-ग्लूकॉन हमारे भूख को कम कर देता है जिससे हम भूख को नियंत्रित रख सकते है ।
अन्य अनाजों की तुलना से ओट्स में बहुत फाइबर मौजूद होता है ।
फाइबर आपके रक्त कोलेस्ट्रॉल से जुड़े सभी पदार्थो में मदद करता है ।
2014 में किये गए अध्ययन के अनुसार यदि आप 3g के फाइबर यानि बीटा ग्लूकॉन का सेवन करते है तो कॉलेस्टेरोल की मात्रा कम कर सकते है ।
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