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नेपाली राजनितिज्ञ विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
गिरिजा प्रसाद कोइराला (२० फ़रवरी १९२५ – २० मार्च २०१०)[1] का जन्म उनके पिता के 'निर्वासन जीवन' के समय सहरसा, ब्रिटिश इंडिया में हुआ था। वो नेपाल के शीर्ष राजनेता एवं नेपाली कांग्रेस के पूर्वाध्यक्ष थे। वे चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री रहे। गिरिजा प्रसाद कोइराला का राजनीतिक सफर छह दशक से भी ज्यादा लंबा रहा।
गिरिजा प्रसाद कोइराला | |
कार्यकाल २५ अप्रैल २००६ – १८ अगसत २००८ | |
शासक | ज्ञानेन्द्र वीर विक्रम शाह देव |
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राष्ट्रपति | रामबरन यादव |
डिप्टी | रामचन्द्र पौडेल |
पूर्व अधिकारी | शेर बहादुर देउबा |
उत्तराधिकारी | प्रचण्ड |
कार्यकाल २२ मार्च २००० – २६ जुलाई २००१ | |
शासक | बीरेन्द्र बीर बिक्रम शाह देव दीपेन्द्र वीर विक्रम शाह देव ज्ञानेन्द्र वीर विक्रम शाह देव |
पूर्व अधिकारी | कृष्ण प्रसाद भट्टराई |
उत्तराधिकारी | शेर बहादुर देउबा |
कार्यकाल १५ अप्रैल १९९८ – ३१ मई १९९९ | |
शासक | वीरेंद्र वीर विक्रम शाह देव|वीरेन्द्र वीर विक्रम शाह देव |
पूर्व अधिकारी | सूर्य बहादुर थापा |
उत्तराधिकारी | कृष्ण प्रसाद भट्टराई |
कार्यकाल २६ मई १९९१ – ३० नवम्बर १९९४ | |
शासक | बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह देव |
पूर्व अधिकारी | कृष्ण प्रसाद भट्टराई |
उत्तराधिकारी | मन मोहन अधिकारी |
नेपाल के राष्ट्राध्यक्ष कार्यकारी | |
कार्यकाल १५ जनवरी २००७ – २३ जुलाई २००८ | |
पूर्व अधिकारी | ज्ञानेन्द्र वीर विक्रम शाह देव |
उत्तराधिकारी | रामबरन यादव (राष्ट्रपति) |
जन्म | 20 फ़रवरी 1925 सहरसा, ब्रिटिश इंडिया (वर्तमान भारत) |
मृत्यु | 20 मार्च 2010 85 वर्ष) काठमांडू, नेपाल | (उम्र
राजनैतिक पार्टी | नेपाली कांग्रेस |
जीवन संगी | सुष्मा कोइराला |
संतान | सुजाता कोइराला |
नेपाल को माओवादी संघर्ष से निजात दिलाने और उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में जोड़ने में कोइराला ने अहम भूमिका निभाई। उनके करिश्मे की वजह से ही माओवादियों और सात राजनीतिक दलों के बीच 12 सूत्री समझौते का खाका तैयार करना संभव हो सका और नेपाल में हिंसा के लंबे दौर की समाप्ति हुई। इस समझौते से ही नेपाल में राजतंत्र समाप्त हुआ और देश में लोकतंत्र की स्थापना हुई।
कोइराला का जन्म सहरसा, ब्रिटिश इंडिया में वर्ष १९२५ में हुआ था। तब उनका परिवार वहां निर्वासन में रह रहा था। उनकी पढ़ाई-लिखाई भी भारत में ही हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कालेज से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। कोइराला नेपाल के उन नेताओं में से थे, जिन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और इस दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वे आजीवन भारत के साथ अच्छे संबंधों के पक्षधर रहे।
नेपाल में उनका परिवार बिराटनगर में रहता था। वहां उन्होंने १९४७-४८ में बिराटनगर जूट मिल के मजदूरों के हक के लिए जोरदार अभियान चलाया। यह अभियान ही उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत रही। 1948 में उन्होंने नेपाल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की और चार साल बाद नेपाली कांग्रेस के मोरङ्ग जिला प्रमुख बने।
नेपाल में 1959 में हुए पहले लोकतांत्रिक चुनाव में कोइराला के भाई बी. पी. कोइराला और उनकी पार्टी को जबरदस्त जीत मिली। लेकिन राजा महेन्द्र वीर विक्रम शाह के नेतृत्व वाली सरकार ने कोइराला को गिरफ्तार कर लिया। गिरिजा प्रसाद कोइराला को सात साल जेल में रहना पड़ा। 1968 में कोइराला निर्वासन में भारत चले गए। करीब ग्यारह साल बाद १९७९ में उन्होंने स्वदेश वापसी की। लगातार संघर्ष झेलते हुए १९९१ में वह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए।
कोइराला कुल चार बार देश के प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। सन् १९९१ से १९९४, १९९८ से १९९९, २००० से २००१ और २००६ से २००८ तक उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। मई २००८ में वह अंतरिम सरकार के कार्यकारी प्रधानमंत्री भी बने। वह अपनी बेटी सुजाता कोइराला को भी देश की प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते थे, लेकिन उनका यह सपना उनके साथ ही चला गया।[2]
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