अपभाषा
एक अनौपचारिक रजिस्टर की भाषा / From Wikipedia, the free encyclopedia
अपभाषा या ग्राम्यभाषा (slang) किसी भाषा या बोली के उन अनौपचारिक शब्दों और वाक्यांशों को कहते हैं जो बोलने वाले की भाषा या बोली में मानक तो नहीं माने जाते लेकिन बोलचाल में स्वीकार्य होते हैं।[1] भाषावैज्ञानिकों का मानना है कि कठबोलियाँ हर मानक भाषा में हमेशा अस्तित्व में रही हैं और लगभग सभी लोग उनका प्रयोग करते हैं।[2] अक्सर एक ही भाषा समुदाय के विभिन्न वर्गों की अपनी भिन्न कठबोलियाँ होती हैं और किसी व्यक्ति द्वारा कठबोली का प्रयोग उसका किसी विशेष वर्ग में सदस्यता का संकेत होता है।[3] उदाहरण के लिए दिल्ली के हिन्दी बोलने वाले पुलिसवाले को कठबोली में 'ठुल्ला' कहते हैं जबकि मुंबई में उसे 'मामा' कहा जाता है। कभी-कभी कठबोली बहुत लम्बे अरसे तक मानक भाषा का भाग न होते हुए भी प्रचलित रह सकती है, मसलन समाज के कुछ वर्गों में थानेदार या दरोग़ा के लिए 'ठुल्ला' शब्द कठबोली के रूप में पंजाब क्षेत्र के कुछ समुदायों में (जिसमें वर्तमान हरियाणा भी शामिल था) सन् १८८० में भी प्रचलित पाया गया था।[4] कठबोलियाँ अक्सर प्रेयोक्ति के रूप में भी इस्तेमाल होती हैं जब किसी चीज़ के लिए मानक शब्द सुनने में अप्रिय या अपमानजनक समझा जाए, मसलन 'मूत्र' को कई हिन्दीभाषी कठबोली में 'सूसू' कहते हैं।[5]