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झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और महाराज गंगाधर राव के दत्तक पुत्र थे।
१८५१ में रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव को एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी जिसका नाम दामोदर राव था। परंतु, मात्र ३ महीने के बाद बालक दामोदर राव की मृत्यु हो गई। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और महाराजा गंगाधर राव अब निसंतान हो गए थे। उन्होंने अपने ही परिवार में चचेरे भाई महाराष्ट्र के वासुदेव राव नेवालकर के पुत्र आनंद राव गोद ले लिया। आनंद राव को गोद लेने के बाद उनका नाम बदलकर युवराज दामोदर राव कर दिया गया था। आनंद राव का जनम महाराष्ट्र के जलगांव के पारोळा में 15 नवम्बर 1849 को हुआ। पारोळा यह नेवालकरों की जहागीर थी। यहा उनका भव्य किला मौजूद है।
दत्तक पुत्र झाँसी युवराज दामोदर राव नेवालकर
झाँसी राजवंश के मुल पुरूष हरी रघुनाथराव नेवालकर के दो पुत्र थे। एक दामोदर पंत और दुसरे खंडेराव। दामोदर पंत का वंश ही झांसी का राजवंश रहा है। खंडेराव का वंश पारोला, जलगांव, महाराष्ट्र में था। पारोला यह नेवालकरों की जहागीर थी। इसी घर के वासुदेवराव नेवालकर के यहां १५ नवम्बर सन् १८४९ को पारोळा जळगाव में दामोदर का जनम हुआ। यह महाराज गंगाधर राव के चचेरे भाई थे। वे पारोला जलगांव में रहते थे। वासुदेव अपने परीवार के साथ प्रती वर्ष दशहरा त्योहार को झांसी आया करते थे। १८५३ में वह झांसी आये थे। दामोदर का पुर्व नाम आनंद राव था। १८५१ में रानी लक्ष्मीबाई के बेटे का तीन माह की आयु में स्वर्गवास हुआ था। इसलिए २० नवम्बर १८५३ को उन्होंने आनंद राव को गोद लिया और नाम दामोदर रखा । महाराज गंगाधर राव के निधन के पश्चात दामोदर राव को राजा घोषित करके महारानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं झांसी व बुंदेलखंड का राजपाठ अपने हाथ लिया ।
४ अप्रैल १८५८ को रानी झांसी छोडकर कालपी गई। वहा भयंकर युद्ध हुआ । १७ जून १८५८ को ग्वालियर में अंतिम युद्ध की वजह से उन्हो ने दामोदर को अपने विश्वास पात्र सेवक रामचंद्र राव देशमुख को सौंप दिया । और कोटा की सराय युध्द में रानी शहीद हुई। रानी की मृत्यु समय रानी का सफेद सूत का निले रंग का चंदेरी साफा, तलवार और मोती की माला दामोदर राव को दे दी गयी। और रानी को तात्या टोपे, रघुनाथ सिंह, काशीबाई कुनवीन, बांदा के नवाब और दामोदर ने मुखाग्नि दी। रामचंद्र राव और काशीबाई दो साल तक अंग्रेजों से दामोदर को बचाते हुए बुंदेलखंड के चंदेरी, सागर, ललितपूर की जंगलो में भटकते रहे । दूर्भाग्य वश रामचंद्र राव का निधन हुआ । दामोदर लक्ष्मीबाई के साथ जब भी महालक्ष्मी मंदिर जाते थे, तो उनके साथ ५०० पठान अंगरक्षक भी जाते थे । कभी शाही ठाट में रहनेवाले इस राजकुमार को मेजर प्लीक द्वारा इंदौर में परिजनों के पास भेज दिया गया!
दामोदर राव के जन्मदाता पिता वासुदेवराव के बडे भाई काशीनाथ हरिभाऊ नेवालकर उर्फ लालाभाऊ थे! वे १८५२ में झांसी के तहसीलदार थे! उनकी पत्नी १८७१ में झांसी छोडकर इंदौर आयी थी! जो रिश्ता में दामोदर राव की चाची थीं! इनके पास ही दामोदर राव रहते थे!
५ मई , १८६० को इंदौर के रेजिमेंट रिचमंड शेक्सपियर ने दामोदर का लालन-पालन मुंशी पंडित धर्म नारायण कश्मीरी को सौंप दिया। दामोदर को इंदौर के शासक होलकर राजाओं की भी सहायता मिली। दामोदर को सिर्फ १५० रूपये महिना पेंशन राशी दी जाती थी। इससे ही उनका गुजारा होता था। एक जमाने में दामोदर राव ६ लाख रूपये महिना पेंशन मिलने वाली रियसत के राजकुमार थे । उनके पिता वासुदेव राव के पास भी बहुत धन दौलत थी। जब उन्हे रानी झांसी ने गोद लिया तब अंग्रेजों ने उनके ६ लाख रूपये हडप लिये और कहा जब वह बालिग होंगे तब उन्हे यह रूपये दिये जायेंगे। पर उन्हे कभी भी यह पैसे नही मिले। और इस राजकुमार को अंग्रेजों के तुकडो पर जिवीत रहना पड़ता था। इंदौर मे ही दामोदर राव का विवाह वासुदेवराव माटोरकर की कन्या से हुआ। १८७२ में उनकी पत्नी का निधन हुआ। उसके बाद बलवंत राव मोरेश्वर शिरडेर की कन्या से उनका पुन: विवाह हुआ। और २३ अक्तूबर १८७९ को उन्हे लक्ष्मण राव नामक पुत्र हुआ। दामोदर राव ने अपनी मां की याद में अपनी स्मृति से एक चित्र बनाया। सारंगी घोडीपर रानी लक्ष्मीबाई बैठी हुई, पिछे दामोदर राव को बांधे हुए। इस तस्वीर का दामोदर जीवित थे तब तक पुजा करते थे। यह चित्र आज भी रानी की इंदौर स्थित झांसीवाले पिढी के पास हैं।
दामोदर ने ६ लाख रूपये व झांसी के लिये बहुत संघर्ष किया परंतू उन्हे झांसी राज्य का उत्तराधिकारी व ६ लाख रूपये कभी नहीं मिले।
२८ मई सन् १९०६ को झांसी राज्य का यह राजकुमार व भावी राजा अपनी ५८ वर्ष की आयु में सदैव के लिये वैकुंठ चले गये । आज भी झांसी का राज परिवार और रानी की पिढी इंदौर में झांसीवाले नाम लगाकर अपना आम जिवन व्यतिथ करते है। नेवालकर मुल परिवार अपने मुलगाव महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के लांजा तहसील में कोट गांव में रहते है! यह गाव नेवालकरों का मुलगाव हैं।
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