Loading AI tools
भारतीय उपमहाद्वीप पर अखंड स्तंभों की श्रृंखला विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
अशोक के धार्मिक प्रचार से कला को बहुत ही प्रोत्साहन मिला। अपने धर्मलेखों के अंकन के लिए उन्होने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया और संपूर्ण देश में व्यापक रूप से लेखनकला का प्रचार हुआ। धार्मिक स्थापत्य और मूर्तिकला का अभूतपर्वू विकास अशोक के समय में हुआ। परंपरा के अनुसार उन्होने तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया। इनमें से ऋषिपत्तन (सारनाथ) में उनके द्वारा निर्मित धर्मराजिका स्तूप का भग्नावशेष अब भी द्रष्टव्य हैं।
इस लेख में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है। (अगस्त 2024) स्रोत खोजें: "अशोकस्तम्भ" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
अशोक के स्तंभ | |
---|---|
सामग्री | पॉलिश किया हुआ बलुआ पत्थर |
काल | तीसरी शताब्दी ई.पू. |
इसी प्रकार उन्होने अगणित चैत्यों और विहारों का निर्माण कराया। अशोक ने देश के विभन्न भागों में प्रमुख राजपथों और मार्गों पर धर्मस्तंभ स्थापित किए। अपनी मूर्तिकला के कारण ये स्तंभ सबसे अधिक प्रसिद्ध है। स्तंभनिर्माण की कला पुष्ट नियोजन, सूक्ष्म अनुपात, संतुलित कल्पना, निश्चित उद्देश्य की सफलता, सौंदर्यशास्त्रीय उच्चता तथा धार्मिक प्रतीकत्व के लिए अशोक के समय अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी। इन स्तंभों का उपयोग स्थापत्यात्मक न होकर स्मारकात्मक था।
पूर्णतः खड़े स्तम्भ, या अशोक शिलालेख युक्त स्तम्भ | |
|
अशोक के स्तंभों के टुकड़े, अशोक शिलालेख के बिना | |
|
अशोक के स्तम्भों के शीर्ष पशु शैलीगत और तकनीकी विश्लेषण के आधार पर क्रमबद्ध[4] |
अशोक के चार-सिंह के स्तम्भ का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण सारनाथ (उत्तर प्रदेश) में स्थित है, जिसे सम्राट अशोक ने लगभग 250 ईसा पूर्व में स्थापित कराया था। इस स्तम्भ पर चार सिंह एक-दूसरे के पीठ के बल बैठे हैं। वर्तमान में स्तम्भ उसी स्थान पर स्थित है, जबकि सिंह को सारनाथ संग्रहालय में रखा गया है। अशोक के सारनाथ के इस सिंह को भारत का राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है और इसके आधार से "अशोक चक्र" को भारत का ध्वज के केंद्र में स्थानांतरित कर दिया गया है।
सांची में सतावहनों द्वारा बनवाए कलाकृतियों से ज्ञात होता है की वो अशोक के स्तंभों की पूजा करने लगे थे ।[7]
अशोक के सिंह व उसके धर्म चक्र को बाद के राजाओ ने समर्थन दिया था जिसमें 24 तिलियाँ है, जैसा कि 13वीं सदी की पुनरावृत्ति में देखा जा सकता है जो थाईलैंड के चियांग माई के पास वाट उमोंग में थाई राजा मंग्रई द्वारा अशोक स्तम्भ धम्मासोक के मार्ग पर चलने हेतु स्थापित किया गया था।[8]
सांची में एक समान लेकिन क्षतिग्रस्त चार-सिंह का स्तम्भ भी पाया गया था। रामपुरवा में दो स्तम्भ मिले हैं जिनमें से एक पर एक बैल और दूसरे पर एक सिंह है। संकिस्सा में केवल एक क्षतिग्रस्त हाथी शीर्ष का स्तम्भ है, इसका कोई स्तम्भ अभी तक नहीं खोजा गया है, केवल आधार ही मिला है, इतिहासकारों के अनुसार शायद इसे उस स्थल पर कभी स्थापित नहीं किया गया था, बल्कि किसी अन्य स्थान पर अशोक द्वारा स्थापित था।[9]
वैशाली के स्तम्भ पर एकल सिंह के स्तम्भ है।[10] इस स्तम्भ का स्थान एक प्राचीन बौद्ध मठ और एक पवित्र बौध्य अभिषेक स्थल से सटा हुआ है। कई स्तूपों के खंडित अवशेष मिले हैं जो मठ के विस्तृत परिसर की ओर इशारा करते हैं। सिंह उत्तर की ओर मुंह करके बैठा है, जिस दिशा को बुद्ध ने अपनी अंतिम यात्रा में अपनाया था। 1969 में खुदाई के लिए स्थल की पहचान में यह तथ्य सहायक था कि यह स्तम्भ तब मिट्टी के ऊपरी सतह पर बाहर दिख रहा था। इस बड़े क्षेत्र में कई ऐसे स्तम्भ मौजूद हैं लेकिन सभी के स्तम्भ शीर्ष गायब कर दिये गए हैं।[11]
अशोक के स्तम्भों का प्रभाव |
|
चीन में 6वीं शताब्दी के पश्चिमी लिआंग के सम्राट ज़ियाओ जिंग सम्राट अशोक के स्तंभों से अत्यधिक प्रेरित थे। उनके मरने पर उनकी कब्र पर ज़ियाओ के उत्तराधिकारी द्वारा अशोक स्तंभ के समान एक स्तम्भ बनवाया गया।[13]
24 तीलियों वाला अशोक चक्र आधुनिक भारत के ध्वज में मौजूद है, जो अखिल भारतीय धर्म की अवधारणा का प्रतिनिधित्व करता है।
धर्मचक्र प्रवर्तन की घटना का स्मारक था और धर्मसंघ की अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए इसकी स्थापना हुई थी। यह चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग 45 फुट लंबे प्रस्तरखंड का बना हुआ है। धरती में गड़े हुए आधार को छोड़कर इसका दंड गोलाकार है, जो ऊपर की ओर क्रमश: पतला होता जाता है। दंड के ऊपर इसका कंठ और कंठ के ऊपर शीर्ष है। कंठ के नीचे प्रलंबित दलोंवाला उलटा कमल है। गोलाकार कंठ चक्र से चार भागों में विभक्त है। उनमें क्रमश: हाथी, घोड़ा, सांढ़ तथा सिंह की सजीव प्रतिकृतियाँ उभरी हुई है। कंठ के ऊपर शीर्ष में चार सिंह मूर्तियाँ हैं जो पृष्ठत: एक दूसरी से जुड़ी हुई हैं। इन चारों के बीच में एक छोटा दंड था जो 32 तिल्लियों वाले धर्मचक्र को धारण करता था, जो भगवान बुद्ध के 32 महापुरूष लक्षणों के प्रतीक स्वरूप था | अपने मूर्तन और पालिश की दृष्टि से यह स्तंभ अद्भुत है। इस समय स्तंभ का निचला भाग अपने मूल स्थान में है। शेष संग्रहालय में रखा है। धर्मचक्र के केवल कुछ ही टुकड़े उपलब्ध हुए। चक्ररहित सिंह शीर्ष ही आज भारत गणतंत्र का राज्य चिह्न है।
चारों दिशाओं में गर्जना करते हुए चार शेर :
बुद्ध धर्म में शेर को विश्वगुरु तथागत बुद्ध का पर्याय माना गया है | बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों में शाक्यसिंह और नरसिंह भी है, यह हमें पालि गाथाओं में मिलता है | इसी कारण बुद्ध द्वारा उपदेशित धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त को बुद्ध की सिंहगर्जना कहा गया है |
ये दहाड़ते हुए सिंह धम्म चक्कप्पवत्तन के रूप में दृष्टिमान हैं | बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर भिक्खुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का आदेश इसिपतन (मृगदाव) में दिया था, जो आज सारनाथ के नाम से विश्विविख्यात है | इसलिए यहाँ पर मौर्यसाम्राज्य के तीसरे सम्राट व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र चक्रवर्ती अशोक महान ने चारों दिशाओं में सिंह गर्जना करते हुए शेरों को बनवाया था |
जो वर्तमान में अशोक स्तम्भ के नाम से विश्वविख्यात है, और इसको भारत गणराज्य द्वारा भारत के राष्ट्रीयचिह्न के रूप में लिया गया है |
चक्रवर्ती सम्राट अशोक महान का यह चौमुखी सिंह स्तम्भ विश्वगुरू तथागत बुद्ध के धर्म चक्र प्रवर्तन तथा उनके लोक कल्याणकारी धम्म के प्रतीक के रूप में स्थापित है |
यह स्तंभ प्रयागराज (इलाहाबाद) किले के बाहर स्थित है। इसका निर्माण सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था। अशोक स्तंभ के बाहरी हिस्से में ब्राम्ही लीपी में अशोक के अभिलेख लिखे गए है। 2000 ई. में समुद्रगुप्त अशोक स्तंभ(Ashok Stambh) को कौशाम्बी से प्रयाग लाया और उसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग-प्रशस्ति इस पर खुदवाया गया। इसके बाद 1605 ई. में इस स्तम्भ पर मुगल सम्राट जहाँगीर के तख्त पर बैठने की कहानी भी इलाहाबाद स्थित अशोक स्तंभ पर उत्कीर्ण है। माना जाता है कि 1800 ई. में स्तंभ को गिरा दिया गया था लेकिन 1838 में अंग्रेजों ने इसे फिर से खड़ा करा दिया।
यह स्तंभ बिहार राज्य के वैशाली में स्थित है। माना जाता है कि सम्राट अशोक कलिंग विजय(Kalinga Vijay) के बाद बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था और वैशाली में एक अशोक स्तंभ बनवाया। चूंकि भगवान बुद्ध ने वैशाली में अपना अंतिम उपदेश(Last Preach) दिया था,उसी की याद में यह स्तंभ बनवाया गया था। वैशाली स्थित अशोक स्तंभ अन्य स्तंभो से काफी अलग है। स्तंभ के शीर्ष पर त्रुटिपूर्ण तरीके से एक सिंह की आकृति बनी है जिसका मुंह उत्तर दिशा में है। इसे भगवान बुद्ध की अंतिम यात्रा की दिशा माना जाता है।स्तंभ के बगल में ईंट का बना एक स्तूप(Stup) और एक तालाब है, जिसे रामकुंड के नाम से जाना जाता है। यह बौद्धों के लिए एक पवित्र स्थान है।
यह स्तंभ मध्यप्रदेश के सांची में स्थित है। इस स्तंभ को तीसरी शताब्दी में बनवाया गया था और इसकी संरचना ग्रीको बौद्ध शैली से प्रभावित है। सांची के प्राचीन इतिहास के अवशेष के रुप में यह स्तंभ आज भी मजबूत है और सदियों पुराना होने के बावजूद नवनिर्मित दिखाई देता है। यह सारनाथ स्तंभ से भी काफी मिलता जुलता है। सांची स्थित अशोक स्तंभ के शीर्ष पर चार शेर बैठे हैं।
Seamless Wikipedia browsing. On steroids.
Every time you click a link to Wikipedia, Wiktionary or Wikiquote in your browser's search results, it will show the modern Wikiwand interface.
Wikiwand extension is a five stars, simple, with minimum permission required to keep your browsing private, safe and transparent.