अथर्ववेद संहिता
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अथर्ववेद संहिता (ब्राह्मी:𑀅𑀣𑀭𑁆𑀯𑀯𑁂𑀤) हिन्दू धर्म के पवित्रतम वेदों में से चौथे वेद अथर्ववेद की संहिता अर्थात् मन्त्र भाग है। इस वेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं। इसमें देवताओं की स्तुति के साथ, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी मन्त्र हैं। अथर्ववेद संहिता के बारे में कहा गया है कि जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद जानने वाला विद्वान् शान्तिस्थापन के कर्म में निरत रहता है, वह राष्ट्र उपद्रवरहित होकर निरन्तर उन्नति करता जाता हैः
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सामान्य तथ्य अथर्ववेद संहिता, ग्रंथ का परिमाण ...
अथर्ववेद संहिता | |
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वेदों की १९ वी शताब्दी की पाण्डुलिपि | |
ग्रंथ का परिमाण |
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श्लोक संख्या(लम्बाई) |
६००० ऋचाएँ |
रचना काल |
७००० - १५०० ईसा पूर्व |
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अथर्ववेद का ज्ञान भगवान ने सबसे पहले महर्षि अंगिरा को दिया था, फिर महर्षि अंगिरा ने वह ज्ञान ब्रह्मा को दिया |
- यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शान्तिपारगः।
- निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रवम्।। (अथर्व०-१/३२/३)।
'ये त्रिषप्ताः परियन्ति' अथर्ववेद का प्रथम मंत्र है |