अन्तर्दहन इंजन
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अन्तः दहन इंजन या आन्तरिक दहन इंजन या अन्तर्दहन इंजन (internal combustion engine) ऐसा इंजन है जिसमें ईंधन एवं आक्सीकारक के मिश्रण को सभी तरफ से बन्द एक दहन कक्ष में जलाया जाता है। दहन की इस क्रिया में प्रायः हवा में मौजूद ऑक्सीजन ही सीधे काम में आति है। जिस बन्द कक्ष में दहन होता है उसे दहन कक्ष कहते हैं। ईंधन और वायु के मिशरण को जलाने के लिये विद्युत प्लग द्वारा चिनगारी (स्पार्क) उत्पन्न किया जाता है या अत्यधिक दाब के कारण वे स्वतः जल उठते हैं। मिश्रण के जलने से उच्च ताप और दाब पैदा होता है जिससे पिस्टन चलाया जाता है (पिस्टन वाले इंजनों में), या टर्बाइन के ब्लेड घुमाये जाते हैं (गैस टर्बाइन मे) , या रोटर घुमाया जाता है (वांकेल इंजन में), या एक जेट पैदा किया जाता है (जेट इंजन में)। इस प्रकार आन्तरिक दहन इंजन, रासायनिक ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलते हैं।
जहाँ इंजन का भार या आकार कम चाहिए वहाँ बाह्य दहन इंजन के स्थान पर आन्तरिक दहन इंजनों का उपयोग किया जाता है।[1][2][3]
दहन की यह अभिक्रिया ऊष्माक्षेपी (exothermic reaction) होती है जो उच्च ताप एवं दाब वाली गैसें उत्पन्न करती है। ये गैसें दहन कक्ष में लगे हुए एक पिस्टन को धकेलती हुए फैलतीं है। पिस्टन एक कनेक्टिंग रॉड के माध्यम से एक क्रेंक शाफ्ट(घुमने वाली छड़) से जुड़ा होता है, इस प्रकार जब पिस्टन नीचे की तरफ जाता है तो कनेक्टिंग रॉड से जुड़ी क्रेंक शाफ्ट घुमने लगती है, इस प्रकार ईंधन की रासायनिक ऊर्जा पहले ऊष्मीय ऊर्जा में बदलती है और फिर ऊष्मीय ऊर्जा यांत्रिक उर्जा में बदल जाती है।
अन्तर्दहन इंजन के विपरीत बहिर्दहन इंजन, (जैसे, वाष्प इंजन) में कार्य करने वाला तरल (जैसे वाष्प) किसी अन्य कक्ष में किसी तरल को गरम करके प्राप्त किया जाता है। प्रायः पिस्टनयुक्त प्रत्यागामी इंजन, जिसमें कुछ-कुछ समयान्तराल के बाद दहन होता है (लगातार नहीं), को ही अन्तर्दहन इंजन कहा जाता है किन्तु जेट इंजन, अधिकांश रॉकेट एवं अनेक गैस टर्बाइनें भी अन्तर्दहन इंजन की श्रेणी में आती हैं जिनमें दहन की क्रिया अनवरत रूप से चलती रहती है।