कोई किसी अपराध के लिये दंडित नहीं हो सकता, यदि उसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में कानून द्वारा अमान्य कोई काम न किया हो या कानून द्वारा निर्धारित किसी अनिवार्य काम में त्रुटि नहीं की हो। साधारणत: किसी अपराध की पूर्णता के लिये यह आवश्यक है कि वह 'दोषपूर्ण मन' या 'आपराधिक मनःस्थिति' (Mens Rea) से किया जाय। किंतु अपराधी की स्वेच्छा से होने पर ही उसका काम अपराध माना जा सकता है।

स्वेच्छा से किया हुआ काम या काम की अवहेलना वह है, जिसे करने या न करने की इच्छा रही हो। अत: किसी व्यक्ति ने यदि अचेतन अवस्था में--यथा, निद्रित होने पर, अत्यंत कम अवस्था रहने से, जड़ता या विक्षिप्तता के कारण—कोई अपराध किया है तो यह माना जायगा कि ऐसी परिस्थिति में उसका मस्तिष्क काम नहीं कर रहा था। फलत: उस काम के करने या उसकी अवहेलना में उसकी इच्छा नहीं थी। इसी प्रकार अत्यंत बाध्य होने पर कोई व्यक्ति यदि कोई अपराध करे तो इसमें उसकी स्वेच्छा काम अभाव रहेगा। कोई काम या इसमें च्युति इच्छापूर्ण मानी जायेगी, यदि कार्यकारी उपयुक्त सावधानी बरतने पर उसे नहीं करता या उसकी अवहेलना से विरत होता। किसी अनायास हुए काम या काम की त्रुटि को स्वेच्छापूर्ण नहीं मानते। अत: यदि यह प्रमाणित हो कि उपयुक्त सावधानी बरतने पर भी ऐसा काम नहीं रुक सका तो यह दंडनीय नहीं हो सकता। कभी कभी कानून द्वारा वर्जित किसी काम के करने की इच्छा मात्र ही दोषपूर्ण मन माना जाता है।

सीमित वर्ग के अपराधों में दोषपूर्ण मन आवश्यक नहीं है। दृष्टांत के लिये, कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के रहते दूसरा विवाह करे, तो अपनी प्रतिरक्षा में वह यह नहीं कह सकता कि उसने शुद्ध मन से यह विश्वास किया था कि उसका पहला विवाह विच्छिन्न हो चुका है। इस वर्ग में कानून द्वारा निर्दिष्ट छोटे-छोटे अपराध ही आते हैं। यह जानने के लिये कि ऐसे अपराधों में दोषपूर्ण मन आवश्यक है या नहीं, निर्दिष्ट कानून (Statue) के उद्देश्य की ओर देखना आवश्यक हो जाता है।

जिस अपराध में विशेष इच्छा या मानसिक स्थिति आवश्यक है, उसके लिये कोई व्यक्ति अपराधी नहीं होगा, यदि उसका मन दोषपूर्ण नहीं था एवं दूसरे व्यक्ति के आदेश से उसने वह अपराध किया था। किंतु जिस व्यक्ति के आदेश से वह अपराध हुआ, वह उत्तरदायी होगा।

साधारणत: कोई व्यक्ति किसी काम या उसकी अवहेलना के लिये उत्तरदायी नहीं होगा, यदि उसने स्वयं अपराध नहीं किया है या निर्धारित काम करने से विरत नहीं हुआ है या किसी दूसरे व्यक्ति को अपराध करने के लिये अधिकार नहीं दिया है और न उसे निर्धारित काम करने से विरत होने की प्रेरणा दी है।

कोई मालिक अपने सेवक या ऐजेंट के विद्वेष, कपट या काम की उपेक्षा के लिये दंडित नहीं किया जा सकता, क्योंकि सेवक या एजेंट की मानसिक स्थिति मालिक की मानसिक स्थिति नहीं कही जा सकती।

किंतु सीमित वर्ग के कुछ मामलों में जहाँ मानसिक स्थिति अपराध के लिये आवश्यक नहीं है, अपने सेवक या एजेंट के सामान्य कार्य के दौरान में किए गए कामों के लिये मालिक उत्तरदायी होगा, भले ही उसे ऐसे काम की जानकारी न रही हो और वे काम उसके आदेश के विरुद्ध ही क्यों न किए गए हों।

कोई निगम (Corporation) अपने सेवक या एजेंट के द्वारा ही काम कर सकता है। अत: इनके काम या कानून द्वारा निर्दिष्ट काम में त्रुटि के कारण निगम ही उत्तरदायी हो सकता है। किंतु राजद्रोह (Treason), गुरुतर अपराध (Felony), तथा ऐसे लघुतर अपराधों के लिये, जिनमें व्यक्तिगत रूप में हिंसा का अभियोग लगे अथवा ऐसे अपराधों के लिये जिनमें कारावास या शारीरिक यातना द्वारा ही दंड दिया जा सके निगम उत्तरदायी नहीं हेगा। अपने सेवक या एजेंट के अपराध के लिये उसे केवल अर्थदंड दिया जा सकता है।

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