हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास
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हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास नागरीप्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित है। यह मुख्यतः 1960 ई० तक की अवधि से पूर्व हिंदी साहित्य के आद्यन्त विस्तार को समाहित करने वाला, अनेकानेक विद्वानों द्वारा लिखित एवं संपादित, बृहत् साहित्येतिहास ग्रन्थ है।
हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास | |
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हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास (प्रकाशित संस्करण) की झलक | |
लेखक | अनेक लेखक |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
श्रृंखला | साहित्येतिहास |
विषय | हिन्दी का साहित्येतिहास |
प्रकार | हिंदी की पीठिका, हिंदी भाषा, आंतर भारतीय साहित्य तथा लोक साहित्य के संदर्भ सहित हिंदी साहित्य का विवरण |
प्रकाशक | नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी |
प्रकाशन तिथि | 1957-1984 |
पृष्ठ | लगभग 9000 |
नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी द्वारा प्रकाशन क्षेत्र में पूर्ण की गयी तीन सबसे बड़ी परियोजनाओं में हिंदी शब्दसागर और हिंदी विश्वकोश के साथ हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास प्रस्तुत करने की परियोजना भी थी। सभा ने आश्विन, संवत् 2010 वि० (1953 ई०) में यह परियोजना निर्धारित तथा स्वीकृत की।[1] सभा के तत्कालीन सभापति तथा इस योजना के प्रधान संपादक स्वर्गीय डॉ० अमरनाथ झा की प्रेरणा से इस योजना ने मूर्त रूप ग्रहण किया था। हिंदी साहित्य की व्यापक पृष्ठभूमि से लेकर उसके अद्यतन इतिहास तक का क्रमबद्ध एवं धारावाही वर्णन उपलब्ध सामग्री के आधार पर प्रस्तुत करने के लिए इस योजना का संघटन किया गया। मूलतः यह योजना 5 लाख 56 हजार 8 सौ 54 रुपये 24 पैसे की बनायी गयी थी।[2] भूतपूर्व राष्ट्रपति देशरत्न स्वर्गीय डॉ० राजेंद्र प्रसाद जी ने इसमें रुचि लेते हुए 3 दिसंबर 1957 ईस्वी को इसके प्रथम भाग की प्रस्तावना लिखी थी।[3] इसकी मूल योजना में समय-समय पर आवश्यकतानुसार परिवर्तन-परिवर्धन भी होते रहे। प्रत्येक विभाग के अलग-अलग मान्य विद्वान इसके संपादक एवं लेखक नियुक्त किये गये थे। यह ग्रंथ यदि सम्यक् रूप में उद्देश्य के अनुरूप तैयार हो पाता तो एक स्तुत्य उदाहरण उपस्थित करता; परंतु हिंदी के लेखकों में प्रायः व्याप्त दीर्घसूत्रता एवं संगठनात्मक तथा सामूहिक रूप से किए जाने वाले कार्यों में तत्परता के अभाव की प्रवृत्ति के कारण अनेक उपयुक्त विद्वानों के अपेक्षित सहयोग न मिल पाने से यह कार्य मानक रूप में पूरा न हो पाया। लगभग दो दशक बीत जाने पर भी कुछ संपादक और लेखकों ने रंचमात्र कार्य नहीं किया था।[4] इस कारण कुछ भागों के संपादक एवं लेखक तीन-तीन बार बदले गये। हालाँकि इसी कारण से बारहवें भाग जैसे कुछ भागों में नवीन दृष्टि सम्पन्न सक्रिय आलोचकों का योगदान भी संभव हो पाया और लिखित सामग्री व्यास शैली की बजाय अपेक्षाकृत समास शैली में निबद्ध होने के बावजूद अधिक महत्त्वपूर्ण एवं उपादेय हो गयी।
अंततः कुल मिलाकर इसके सभी खंडों का प्रकाशन संपन्न हुआ और जो सामग्री सामने आयी वह साहित्येतिहास के मानक रूप को भले ही पूर्ण न कर पाये परंतु अद्यतन उपलब्ध इतिहास ग्रंथों से कई गुना अधिक अत्यंत उपयोगी एवं महत्वपूर्ण जानकारियाँ अवश्य उपस्थापित हुईं।
खण्ड | विषय-क्षेत्र | सम्पादक | प्रथम संस्करण | कुल पृष्ठ |
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भाग-1 | हिंदी साहित्य की पीठिका | डाॅ० राजबली पांडेय | 1957 ई० | 36+581 |
भाग-2 | हिंदी भाषा का विकास | डाॅ० धीरेन्द्र वर्मा | 1965 ई० | 12+30+558 |
भाग-3 | आदिकाल | पं० करुणापति त्रिपाठी,
डाॅ० वासुदेव सिंह |
1983 | 16+574 |
भाग-4 | भक्तिकाल : निर्गुण भक्ति | पं० परशुराम चतुर्वेदी | 1968 | 32+480 |
भाग-5 | भक्तिकाल : सगुण भक्ति | संकलन-दीनदयाल गुप्त,
संपादन-विजयेन्द्र स्नातक |
1974 | 18+585 |
भाग-6 | रीतिकाल : रीतिबद्ध | डाॅ० नगेन्द्र | 1958 | 26+437 |
भाग-7 | रीतिकाल : रीतिमुक्त | डाॅ० भगीरथ मिश्र | 1972 | 18+644 |
भाग-8 | भारतेंदु काल | डाॅ० विनयमोहन शर्मा | 1972 | 19+440 |
भाग-9 | द्विवेदी काल | पं० सुधाकर पांडेय | 1977 | 18+606 |
भाग-10 | उत्कर्ष काल (छायावाद) : काव्य | डाॅ० नगेन्द्र | 1971 | 20+520 |
भाग-11 | उत्कर्ष काल (छायावाद) : नाटक | डाॅ० सावित्री सिन्हा,
डाॅ० दशरथ ओझा |
1972 | 16+385 |
भाग-12 | कथा साहित्य | डाॅ० निर्मला जैन | 1984 | 16+294 |
भाग-13 | समालोचना, निबंध
और पत्रकारिता |
लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु' | 1965 | 26+396 |
भाग-14 | अद्यतन काल (1960 ई० तक) | डाॅ० हरवंशलाल शर्मा,
डाॅ० कैलाशचंद्र भाटिया |
1970 | 20+594 |
भाग-15 | आंतर भारती हिंदी साहित्य | डाॅ० नगेन्द्र | 1979 | |
भाग-16 | हिंदी का लोक साहित्य | महापंडित राहुल सांकृत्यायन,
डाॅ० कृष्णदेव उपाध्याय |
1960 | 30+181+781 |
इस विवरण से इस महाग्रन्थ की व्यापकता, महत्ता एवं उपादेयता का सहज ही अनुमान किया जा सकता है। जैसा कि विवरण से स्पष्ट है इसके प्रारंभिक एवं अंतिम दो-दो खण्ड साहित्येतिहास से संबंधित विषयों पर केन्द्रित हैं एवं बीच के कुल बारह खण्डों (तीसरे से चौदहवें) में प्रत्यक्षतः हिन्दी साहित्य का इतिहास निबद्ध है। यद्यपि इस बृहत् इतिहास की अंतिम सीमा 1960 ई० स्वीकार की गयी है, परंतु चौदहवें भाग में साठोत्तरी कविता (नयी कविता के उपरांत हिंदी कविता) का भी विवरण देते हुए उसके विभिन्न आन्दोलनों एवं नारों पर भी उत्तम टिप्पणियाँ दे दी गयी हैं।[5]
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