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विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
हालाखंडी जिसका एक नाम सीस्तान भी है पर हिन्दू वीर जाट राजा चांदराम हाला का शासन था बात उस समय की है जब एक अरबी लुटेरे मोहम्मद बिन कासिम ने देश पर आक्रमण कर दिया था। वह बहुत ही क्रूर लुटेरा था।[1] उसने बहुत से क्षेत्रो को जीत लिया था इसी बीच उसने देबल को भी राजा दाहिर से जीत लिया था और फिर उसने आक्रमण किया सीस्तान(शिवस्थान) पर। राजा चांदराम जी ने अरबों से 18 दिन तक लगातार युद्ध लड़ा लेकिन उनकी ही शरण में आये एक बौद्ध भिक्षुक आया हुआ था(राजा ने उसे भिक्षुक समझकर शरण दे दी थी परंतु वह कासिम का हितैषी था व षड्यंत्र के तहत आया था) उस ने उनसे गद्दारी की और किले में पड़ी सारी रसद को कासिम तक पहुंचा दिया जिस कारण वे हार गए और शिवस्थान पर अरबियों का कब्जा हो गया। परन्तु राजा चांदराम हाला अरबियों के हाथ नहीं आये।इस युद्ध में 3000 अरबी लुटेरे तो 1200 जाट वीरगति को प्राप्त हुए जबकि जाटो की सेना अरबों की तुलना में बहुत छोटी थी। और हथियारो के मामले में भी अरबी मजबूत थे।[2] राजा को गदार का पता नहीं लगा। राजा फिर से अरबियों से अपना राज्य वापिस लेने के लिए कोशिश करने लगे व कुछ ही दिनों में उन्होंने फिर से अपने वफादार सैनिकों को इकट्ठा किया और किले पर आक्रमण कर दिया अरबियों को इस बार बुरी तरह से खदेड़ दिया हजारों अरबी मारे गए और उन्होंने किले पर कब्जा कर लिया। किलेदार को मौत के घाट उतार दिया व उसका सिर किले के गेट पर रख दिया। अरबी सेना ने यह संदेश कासिम तक पहुँचाया की शिवस्थान उनके हाथ से निकला गया है आउर राजा चांदराम ने फिर से अपने राज्य पर कब्जा कर लिया है। और शिवस्थान ऐसी जगह थी जहां से दाहिर की मदद की जा सकती थी व अरबियों से राजा दाहिर व सिंध को बचाया जा सकता था। इसलिए उसने उसी समय और सेना भेजी व अपने सेनापति मूसा को तुरंत भेजा। कासिम उससे लड़ चुके थे तो जानता था कि चांदराम को हराना आसान नहीं इसलिये उसने काफी हथियार भी भेजे। राजा चांदराम ने जब किले पर कब्जा किया तो उसमें कुछ बौद्ध भी शरण लिए हुए थे। राजा ने सोचा कि ये बन्दी बनाये हुए हैं है कासिम की सेना द्वारा इसलियव उन्होंने उन बौद्धों को उन्होंने किले से बाहर न निकाला। लोकश्रुति के अनुसार राजा चांदराम शिवभक्त थे वे रोज सुबह अपने रक्त से शिवलिंग का अभिषेक करते थे।कहते हैं कि जब राजा सोते थे तो वे अपने पालतू शेरों को खुला छोड़ देते थे व खुद उनके बीच सो जाते थे ये शेर उनकी रक्षा करते थे। कासिम के सेनापति मूसा ने राजा को समझौता करने के लिए कहा और कासिम का साथ देने के लिए कहा। परन्तु राजा चांदराम जानते थे कि इस्लाम की मजहबी तलवार लिए जो कासिम अरब से आया है वह देश के लिए बहुत खतरनाक है इसलिए उन्होंने कोई भी समझौता करने से इनकार कर दिया। इसके बाद एक भयानक युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध में लगभग 2500 से ज्यादा अरबी लुटेरे मारे गए और 1000 के करीब जाट भी वीरगति को प्राप्त हुए। अंत में हथियार खत्म होने पर राजा वापिस किले की ओर मुड़ गए,क्योंकि किले में हथियार पड़े थे व किले के अंदर से वे और मजबूती से लड़ सकते थे। परन्तु जैसे ही राजा किले के गेट के पास पहुंचे तो गदार बौद्ध भिक्षु ने किले के दरवाजे बंद कर दिए। आपको बता दें कि किले में अरबियों के आक्रमण के समय कुछ बौद्धों ने शरण माँगी थी तो राजा ने उन्हें अपने ही सनातनी भाई समझकर शरण दे दी थी। उसके बाद पहले युद्ध में भी उन्ही बौद्ध लोगो ने कासिम को किले की रसद पहुंचा दी थी। असल में ये बौद्ध पहले से ही कासिम के साथ मिले हुए थे व उसके कहने पर ही किले में शरण लेने आये थे ताकि अंदर से उसकी मदद कर सकें। राजा ने बौद्ध भिक्षु को जब किले का दरवाजा बंद करते हुए देखा तो उनकी आंखों में पश्चाताप के आंसू निकल आये कि जिन लोगो को उन्होंने असहाय समझकर शरण दी उन्होने ही उनके साथ गद्दारी कर दी। अब राजा के पास हथियार के नाम पर मात्र एक तलवार थी व कुछ सैनिक। उन्होंने दुश्मन के आगे घुटने टेकने की बजाय वीरगति को बेहतर समझा। सब के सब कासिम की सेना पर टूट पड़े और अरबो का खून बहाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए अंत में राजा व उसके परिवार को घेर लिया गया राजा का हाथ कट गया राजा ने उल्टे हाथ में तलवार लेकर लड़ाई लड़ी पर वह हाथ भी कट गया। उसके बाद उन्हें बन्दी बना लिया गया और किले में ले जाकर उन्हें बांध दिया गया। उनके तीन बेटे थे उन्हें उनकी आंखों के सामने असहनीय यातनाएं देकर मार दिया और उनके बच्चों की हत्या की खुशी मनाई और उनके सामने उत्सव की तरह मनाया गया। फिर राजा को भी कठोर यातनाएं दी व अंत में उनकी भी हत्या कर दी गई।
इस लेख में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है। (अक्टूबर 2022) स्रोत खोजें: "हालाखंडी" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
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