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1968 की प्रकाश मेहरा की फ़िल्म विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
हसीना मान जायेगी 1968 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। ये प्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित है और इसमें शशि कपूर, बबीता, अमीता, युनुस परवेज़ और जॉनी वॉकर ने अभिनय किया है।[1] कल्याणजी आनंदजी द्वारा फिल्म के गीत रचित किये गए हैं, जो काफी यादगार रहे हैं, जिनमें रफी-लता का युगल गीत "बेखुदी में सनम" सब में सबसे लोकप्रिय है। यह फिल्म वर्ष 1968 के बॉक्स ऑफिस संग्रह में 9वें स्थान पर रही।
हसीना मान जायेगी | |
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फ़िल्म का पोस्टर | |
निर्देशक | प्रकाश मेहरा |
लेखक | एस॰ एम॰ अब्बास |
निर्माता | इन्दु भूषण |
अभिनेता |
शशि कपूर, बबीता, अमीता, जॉनी वॉकर |
संगीतकार | कल्याणजी-आनंदजी |
प्रदर्शन तिथि |
1968 |
लम्बाई |
मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
अर्चना (बबीता) अपने पिता के साथ एक नए शहर में रहने आती है। कॉलेज में उसकी मुलाक़ात राकेश (शशि कपूर) से होती है, जो उसके पिता के दोस्त का बेटा है। वो उसे हमेशा तंग करते रहता है, इस कारण वो उसकी शिकायत अपने प्राचार्य से करती है। पर गलती से वो कमल (शशि कपूर) की शिकायत कर देती है, जो बिलकुल राकेश की तरह दिखते रहता है। कमल बहुत ही सीधा और अनाथ लड़का है। बाद में जब अर्चना को इस बात का पता चलता है तो उसे अपनी गलती का एहसास हो जाता है और उसके बाद कमल और अर्चना एक दूसरे के काफी करीब आ जाते हैं। लेकिन राकेश उन दोनों के बीच बार बार आ जाते रहता है और अर्चना को उससे शादी करने के लिए मजबूर करते रहता है। अंत में अर्चना अपने पिता से कमल के साथ शादी करने की बात कर देती है।
कमल और अर्चना की शादी तय हो जाती है और राकेश उससे शादी करने के लिए कमल का अपहरण करने की सोचता है, पर उसके गुंडे गलती से राकेश को ही कमल समझ कर अपहरण कर लेते हैं। अर्चना और कमल की शादी हो जाती है। जल्द ही जंग शुरू हो जाता है और कमल को जंग में शामिल होने के लिए जाना पड़ता है। राकेश भी उसी बटालियन का हिस्सा होता है। एक दिन दोनों अकेले रहते हैं और दोनों में लड़ाई हो जाती है, और लड़ते हुए वे दोनों पानी में गिर जाते हैं और लापता हो जाते हैं।
उनमें से एक अर्चना के पास वापस आ जाता है और पहले की तरह वे लोग जीवन जीने लगते हैं। एक दिन कमल के ऊपर का एक अफसर उसके पास आता है और कहता है कि कमल मर चुका है। अर्चना उलझन में पड़ जाती है, क्योंकि उसका पति, कमल तो उसके साथ ही पूरे समय था। उसे थोड़ा सा शक हो जाता है और वो परीक्षा लेकर ये जानने की कोशिश करती है कि वो वाकई कमल है या राकेश है, जो कमल बन कर उसके साथ रह रहा है। परीक्षा में वो विफल हो जाता है, पर वो कहता है कि वो कमल ही है, पहले उसे लग रहा था कि उसने ही राकेश को मारा है, पर अब उसे पता चला है कि राकेश युद्ध के दौरान मारा गया था। लेकिन कोई भी उसकी बातों पर विश्वास नहीं करता है और उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। उस पर धोका और बलात्कार का मुकदमा चलाया जाता है और उसे दस साल की जेल हो जाती है।
अंत में असल राकेश बाहर आता है और सिद्ध भी कर देता है कि वही असल राकेश है। इसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। कमल और अर्चना वापस मिल जाते हैं और वे दोनों राकेश को उसके पिछले गलत कामों के लिए माफ कर देते हैं। बाद में कमल उसे बताता है कि वो उसके परीक्षण में इस कारण विफल हो गया था, क्योंकि वो डरा हुआ था कि उसने राकेश को मार दिया है। इसी के साथ कहानी समाप्त हो जाती है।
सभी कल्याणजी-आनंदजी द्वारा संगीतबद्ध।
क्र॰ | शीर्षक | गीतकार | गायक | अवधि |
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1. | "बेखुदी मैं सनम उठ" | अख्तर रूमानी | लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी | 5:31 |
2. | "ओ दिलबर जानिये" | प्रकाश मेहरा | मोहम्मद रफी | 5:21 |
3. | "चले थे साथ मिलकर" | अख्तर रूमानी | मोहम्मद रफी | 3:24 |
4. | "दिलबर दिलबर कहते" | क़मर जलालाबादी | मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर | 5:35 |
5. | "मेरे महबूब मुझको" | क़मर जलालाबादी | मन्ना डे, आशा भोंसले | 6:28 |
6. | "सुनो सुनो कन्याओं" | प्रकाश मेहरा | मोहम्मद रफी, महेश कुमार | 8:31 |
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