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हिन्दी भाषा में प्रदर्शित चलवित्र विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
हमारा खानदान 1988 में बनी हिन्दी भाषा की फ़िल्म है।.[1] यह एक खूबसूरत प्रेम कहानी है जिसमें उत्कृष्ट संगीत और एक सुपरहिट प्रेम कहानी बनाने के सभी सही तत्व हैं। फ़िल्म हमारे समाज के एक कुरीति पर प्रकाश डालती है। हमारे पुरुष प्रधान समाज में बेटे की पैदाइश न होने में पत्नी को जिम्मेदार ठहराया जाता है, जो कि वास्तव में विज्ञान के हिसाब से बिल्कुल गलत है। सच तो ये है कि बेटे के जन्म होने न होने में पुरुष ही ज़िम्मेदार होते हैं। बेटे के जन्म न होने से पत्नियों पर जुल्म, बेटियों की अनदेखी, बड़े परिवार से होने वाले दुष्परिणाम आदि अपने समाज में हम देखते रहते हैं।
हमारा खानदान | |
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चित्र:हमारा खानदान.jpg हमारा खानदान का पोस्टर | |
अभिनेता |
ऋषि कपूर, फरहा, किरन जुनेजा, आलोक नाथ, अमरीश पुरी, आशा पारेख, रीमा लागू, ओम शिवपुरी, |
प्रदर्शन तिथि |
1988 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
ठाकुर चंद्र प्रकाश सिंह (अमरीश पुरी) की पत्नी शारदा (आशा पारेख), तीन लड़कियों को जन्म देने के बाद कोख में चौथा बच्चा पाल रही होती है। चंद्रप्रकाश की मां अपने बेटे को अल्टीमेटम देती है कि शारदा ने फिर से बेटी को जन्म दिया तो ठाकुर को दूसरी पत्नी लानी होगी जो उसके वंश चलाने के लिए एक बेटा जनेगी।
ठाकुर चंद्रप्रकाश काफी पशोपेश के बाद अपनी माँ के इस निर्णय से सहमत होता है और शारदा को इस बारे में बताता है। शारदा इस निर्णय से हैरान होती है और घबराहट में समय से पहले बच्चे का जन्म हो जाता है, और ठाकुर को इसके बारे में बाद में पता चलता है। ठाकुर को लगता है कि उसकी पत्नी ने एक स्वस्थ्य बेटे का तोहफा दिया है। वो शारदा से बहुत खुश होता है। लेकिन तकदीर के तरीके निराले होते हैं और ठाकुर इनसे बेहद अनजान होता हैं। उसे ये मालूम नही की डॉक्टर जूली (रीमा लागू) उसकी नई बच्ची को एक बच्चे से बदल देती है ताकि शारदा पर कोई जुल्म न हो। डॉक्टर जूली उस बच्ची को जॉन मिरांडा (आलोक नाथ) और उसकी पत्नी नैंसी को पालने के लिए दे देती है।
ठाकुर चंद्रप्रकाश सिंह अपने बेटे और वारिस की देखरेख पर अपना पूरा प्यार और धन लुटाता है। सुख सुविधा और विलासिता में पलते हुए वो बच्चा विशाल (ऋषि कपूर) बड़ा होकर एक सुंदर, शिक्षित, निपुण, खुशमिजाज युवक बनता है। जब विशाल के विवाह की उम्र होती है तो ठाकुर और शारदा विशाल को करोड़पति रंजीत सिंह (ओम शिवपुरी) की बेटी रीता सिंह(किरण जुनेजा) को देखने के लिए श्रीनगर भेजते हैं। वहाँ रीता विशाल को लुभाने की कोशिश करती है लेकिन विशाल को रीता के घर में रहकर पार्ट टाइम लाइब्रेरियन का काम एक युवा कैथोलिक लड़की रूबी मिरांडा (फरहा) से प्यार हो जाता है। रूबी वही लड़की है जिसे डॉक्टर ने जॉन मिरांडा को पालने के लिए दिया था।
रूबी के पिता (आलोक नाथ) शादी को मंजूरी देता है जबकि चंद्रप्रकाश को ये बात मंजूर नहीं है। उसे अपने बराबर के हैसियत वाले और अपने धर्म की लड़की से ही अपने बेटे की शादी करनी है। चंद्रप्रकाश अपने बेटे की शादी अपने पसंद की लड़की से तैयारी करता है तो विशाल घर छोड़ देता है।
चंद्रप्रकाश रूबी के बाप को पैसे का लालच देकर विशाल से उसकी बेटी को दूर करने को करने को कहता पर वो ऐसा करने से इनकार कर देता है। तब चंद्रप्रकाश उसे बहुत बेइज़्ज़त करता है। रूबी का पिता बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नही करता है और विशाल से रूबी की ज़िंदगी से दूर होने के लिए कहता है। पर रूबी की बीमारी और विशाल के हालात पर तरस खाकर वो उन दोनों की शादी करने का फैसला करता है। फ़िल्म में नाटकीय मोड़ आता है जब चंद्रप्रकाश को ये मालूम चलता है कि विशाल वास्तव में उनका अपना बेटा नहीं है बल्कि रूबी उनकी अपनी बेटी है। तमाम उलझनों के बाद आखिर में विशाल और रूबी मिल जाते हैं और चंद्रप्रकाश और शारदा दोनों उनको अपना लेते हैं।
बैनर- ताहिर हुसैन इंटरप्राइजेज निर्माता- ताहिर हुसैन निर्देशक- अनवर पाशा संगीत निर्देशक- लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल गीतकार- फारूक कैसर कहानीकार- कलीम राही संवाद- फारूक कैसर छायांकन- एनवी श्रीनिवास संपादन- मुख्तार अहमद कला निर्देशक / उत्पादन डिजाइन- शीबूदा उत्पादन प्रबंधक- सुरेंद्र सिंह साउंड रिकॉर्डिंग/ऑडियोग्राफी- मदन प्रकाश नृत्यकला- माधव किशन एक्शन डायरेक्टर- ए मंसूर पोशाक- काशी नाथ मेक अप- पांडुरंग धुरी, जाधवराव, अशोक प्रचारक/पी.आर.ओ.- अजीत घोष प्रचार डिजाइन- प्रभु री-रिकॉर्डिस्ट/साउंड मिक्सिंग- राजकमल कलामंदिर, बंबई चित्र- कामत फोटो फ्लैश प्रचार मुद्रक- नेन्सी ऑफ़सेट संगीत कंपनी- सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज प्रा.लि.(टी-सीरीज़) लैबोरेटरी/प्रोसेसिंग- रामनॉर्ड रिसर्च लैब लिमिटेड
फ़िल्म का संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने दिया है। सारे गीत लिखे हैं फारुख क़ैसर ने। फ़िल्म के गीतों को गाया है मोहम्मद अज़ीज़, अनुराधा पौडवाल, शब्बीर कुमार, अलका याग्निक और इला अरुण ने।
1. दिलबर जानी गले लगा ले (गायक: अलका याग्निक, शब्बीर कुमार)
2. मेरे महबूब रुक जा (गायिका: अनुराधा पौडवाल, मोहम्मद अज़ीज़)
3. मैंने भी एक गीत लिखा है (गायक: शब्बीर कुमार)
4. मेरे मलिक मेरे मौला (गायिका: इला अरुण)
5. मेरे महबूब कुछ भी हो (गायक: मोहम्मद अज़ीज़)
6. तुम सोचती हो शायद (गायिका: अनुराधा पौडवाल, मोहम्मद अज़ीज़)
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने भावपूर्ण धुने दी हैं। गाने अपने समय में हिट रहे हैं और अक्सर रेडियो और tv पर चित्रहार में बजते थे।
यह फिल्म आमिर खान के पिता ताहिर खान ने बनाई है।
इस फिल्म का अधिकांश भाग कश्मीर में फिल्माया गया है।[2]
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