स्वच्छमण्डल या कनीनिया (अंग्रेज़ी:कॉर्निया) आंखों का वह पारदर्शी भाग होता है जिस पर बाहर का प्रकाश पड़ता है और उसका प्रत्यावर्तन होता है। यह आंख का लगभग दो-तिहाई भाग होता है, जिसमें बाहरी आंख का रंगीन भाग, पुतली और लेंस का प्रकाश देने वाला हिस्सा होते हैं। [1]कॉर्निया में कोई रक्त वाहिका नहीं होती बल्कि इसमें तंत्रिकाओं का एक जाल होता है। इसको पोषण देने वाले द्रव्य वही होते हैं, जो आंसू और आंख के अन्य पारदर्शी द्रव का निर्माण करते हैं।[2] प्रायः कॉर्निया की तुलना लेंस से की जाती है, किन्तु इनमें लेंस से काफी अंतर होता है। एक लेंस केवल प्रकाश को अपने पर गिरने के बाद फैलाने या सिकोड़ने का काम करता है जबकि कॉर्निया का कार्य इससे कहीं व्यापक होता है। कॉर्निया वास्तव में प्रकाश को नेत्रगोलक (आंख की पुतली) में प्रवेश देता है। इसका उत्तल भाग इस प्रकाश को आगे पुतली और लेंस में भेजता है। इस तरह यह दृष्टि में अत्यंत सहायक होता है। कॉर्निया का गुंबदाकार रूप ही यह तय करता है कि किसी व्यक्ति की आंख में दूरदृष्टि दोष है या निकट दृष्टि दोष। देखने के समय बाहरी लेंसों का प्रयोग बिंब को आंख के लेंस पर केन्द्रित करना होता है। इससे कॉर्निया में बदलाव आ सकता है। ऐसे में कॉर्निया के पास एक कृत्रिम कांटेक्ट लेंस स्थापित कर इसकी मोटाई को बढ़ाकर एक नया केंद्र बिंदु (फोकल प्वाइंट) बना दिया जाता है। कुछ आधुनिक कांटेक्ट लेंस कॉर्निया को दोबारा इसके वास्तविक आकार में लाने के लिए दबाव का प्रयोग करते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है, जब तक अस्पष्टता नहीं जाती।
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कॉर्निया | |
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मानव आंख का आरेख (ऊपरी मध्य ओर लेबल किया हुआ कॉर्निया) | |
ग्रे की शरीरिकी | subject #225 1006 |
दोष व दान
कॉर्निया कैमरे की लैंस की तरह होता है जिससे प्रकाश अंदर जाकर रेटीना पर पड़ता है इसके बाद चित्र बनता है, जिसे दृष्टि-धमनी (ऑप्टिक नर्व) विद्युत संकेत रूप में मस्तिष्क के उपयुक्त भाग तक पहुंचा देती है। कॉर्निया खराब होने पर रेटीना पर चित्र नहीं बनता और व्यक्ति अंधा हो जाता है।[3] कई बार आंखों में संक्रमण, चोट या विटामिन ए की कमी के कारण भी कॉर्निया खराब हो जाते हैं। कॉर्निया में दोष आने पर उसका उपचार शल्य-क्रिया द्वारा किया जाता है। ये ऑपरेशन सरलता से हो जाता है। इसमें शल्य-चिकित्सक कॉर्निया से जुड़ी तंत्रिकाओं को अचेतन कर बिना रक्त बहाए इस क्रिया को पूर्ण कर देते हैं।[2] कभी-कभी ऑपरेशन के दौरान कॉर्निया पर किसी बाहरी वस्तु से खरोंच भी लग जाती है या फिर पलक का ही कोई बाल टूटकर इस पर खरोंच बना देता है। इस स्थिति में कुछ आंख की तरल दवाइयों (आईड्रॉप) से कॉर्निया कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। बहुत से लोग अपना कॉर्निया दान कर देते हैं ताकि कोई उनकी आंखों से यह दुनिया देख सके। इस कॉर्निया दान को ही असल में नेत्र दान कहा जाता है। नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके कॉर्निया को निकालकर मशीन (एमके मीडियम) की सहायता से उसकी कोशिका घनत्व (सेल्स डेन्सिटी) देखी जाती है। एक वर्ग मिलीमीटर के क्षेत्र में तीन हजार से अधिक कोशिकाएं होना अच्छे कॉर्निया की पहचान है।
प्रत्यारोपण
कॉर्निया के ऑपरेशन का प्रचलित सबसे पहले इटली में विकसित किया गया था। इसके बाद उसे अमेरिका में भी अपनाया गया और बाद में विश्व भर में अपनाया गया है। इस ऑपरेशन में रोगी के एक दाँत और उसके पास की कुछ हड्डी को निकाल कर तराशा गया और उस में बेलनाकार लेंस को बैठाने के लिए एक छेद किया गया। लेंस सहित दाँत को पहले रोगी के गालों या कंधों की त्वचा के नीचे दो महीनों के लिए प्रतिरोपित किया जाता है, ताकि वे अच्छी तरह आपस में जुड़ जाएँ। बाद में उन्हें वहाँ से निकाल कर आँख में प्रतिरोपित किया जाता है। इसके लिए आँख वाले गड्ढे को पहले अच्छी तरह तैयार किया जाता है। आँख की श्लेश्मा वाली परत में एक छेद किया जाता है, ताकि लेंस थोड़ा-सा बाहर निकला रहे और आसपास के प्रकाश को ग्रहण कर सके।[4]
हाल के वर्षों में एक नया विकल्प इंट्रास्ट्रोमल कॉर्नियल रिंग को प्लास्टिक से विशिष्ट रूप से इस तरह बनाया जाता है कि ये कॉर्निया के अंदर बैठाया जा सके। इनके डिजाइन कुछ इस तरह से बने होते हैंकि ये कॉर्निया को दोबारा से खोई हुई आकृति वापस लौटाते हैं और दृष्टि सुधारते हैं। इस प्रत्यारोपण में कॉर्नियल ऊतक को निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसमें रोगी को ठीक होने में भी अधिक समय भी नहीं लगता है। ये नया कॉर्निया प्रत्यारोपण एक शल्यरहित प्रक्रिया है जिसमें कॉर्निया के डिस्क को हटाकर दान किये गए ऊतक को लगाया जाता है। हालांकि ये सफलतापूर्वक हो जाता है लेकिन ये बहुत ही आरामदायक होता है और ठीक होने में बहुत समय लगता है।[5]
सन्दर्भ
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