सुहैब बिन सिनान
मुहम्मद के सम्मानित साथी विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
मुहम्मद के सम्मानित साथी विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
सुहैब बिन सिनान (अंग्रेज़ी:Suhayb (जन्म: सी। 587) सुहैब रोमन और सुहैब अल-रूमी के नाम से भी जाना जाता है। बाइज़ेंटाइन साम्राज्य में ग़ुलाम जो बाद में मुहम्मद का साथी और प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय का सदस्य बन गये थे।[1]
सुहैब बिन सिनान صُهَيْب ٱلرُّومِيّ | |
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Born | ल. 586 Mesopotamia |
Died | ल. 659 (aged 73) Medina, Arabia |
Ethnicity | Roman |
Burial Place | Jannat al-Baqi', Hejaz (Modern-day Saudi Arabia) |
Known For | Being a companion of prophet Muhammad |
Kunya | Abu Yahya (أَبُو يَحْيَىٰ) |
Religion | Islam |
Venerated in | Sunni Islam |
मुख्य लेख: हिजरत
मुसलमान जब मक्का से मदीना जा रहे थे तब हज़रत सुहैब आखिरी प्रवासी थे, उन्होंने अपनी यात्रा को सही करने के बाद प्रवास करने की योजना बनाई, तो कुरैश के बहुदेववादियों ने उनका बड़ी कठोरता से विरोध किया और कहा कि आप यहाँ हमारे पास आए थे और ज़रूरतमंद थे,आपने मक्का में रहकर धन और संपत्ति जमा की और अब आप ये सब अपने साथ ले जा रहे हैं, ख़ुदा की क़सम ऐसा नहीं होगा, हज़रत सुहैब ने तरकश दिखाते हुए कहा, ऐ क़ुरैश के गिरोह! आप जानते हैं कि मैं आप लोगों में सबसे सटीक निशानेबाज हूं, आप मेरे पास नहीं आ सकते जब तक कि इसमें एक भी तीर है, उसके बाद मैं फिर से अपनी तलवार से लड़ूंगा, हाँ यदि आप धन और संपत्ति चाहते हैं।, क्या आप इसे ले लेंगे और मेरा रास्ता छोड़ देंगे? बहुदेववादियों ने इसके लिए हामी भर दी और हज़रत सुहैब अपने माल-दौलत के बदले ईमान का सामान ख़रीद कर मदीना पहुँचे।
हजरत मुहम्मद ﷺ क़ुबा में मेहमान थे, हज़रत अबू बक्रऔर उमर भी मौजूद थे। नज़रें भ्रमित थीं, तो हज़रत उमर ने आश्चर्य से कहा, ऐ अल्लाह के रसूल! कंजंक्टिवाइटिस होने के बावजूद भी आप साहब को खजूर खाते हुए नहीं देखते हैं। उसने कहा, "सोहेब, तुम्हारी आँखें बीमार चिढ़ जाती हैं और तुम खजूर खाते हो?" मिजाज बहुत गंभीर था, उसने कहा, मैं अपनी स्वस्थ आंख से ही खाता हूं, इस जवाब पर अल्लाह के रसूल ﷺ बेकाबू हंस पड़े। जब भूख की तीव्रता कुछ हद तक कम हो गई तो शिकायत कार्यालय खोला गया, उन्होंने हज़रत अबू बकर (र.अ.) से कहा कि आप वादे के बावजूद मेरे साथ यात्रा पर नहीं गए। आपने इसके बारे में सोचा भी नहीं था, कुरैश ने मुझे अकेला देखा और मुझे रोक दिया।आखिरकार, मैंने सारी संपत्ति के बदले में अपना जीवन खरीदा। पैग़म्बर ने कहा तुम्हारी तिजारत नफे में रही। (अल-मुस्तद्रिक अल-हाकिम: 3/398)
और इस घटना की दाद में क़ुरआन की आयत आयी: "और लोगों में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ख़ुदा की ख़ुशी के लिए अपनी जान तक बेच देते हैं।" (क़ुरआन 2:207)
सुहैब बिन सिनान रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित हदीस जन्नत की सबसे बड़ी नेमत अल्लाह का दीदार है।[2]
मुख्य लेख: मुहम्मद के अभियानों की सूची
तीर-अंदाज़ी में कमाल रखते थे,ग़ज़ व-ए-बदर, उहद, ख़ंदक़ और तमाम दूसरे मारकों में रसूल अल्लाहﷺ के हमरकाब रहे, बुढ़ापे में वो लोगों को जमा करके निहायत लुतफ़ के साथ अपने जंगी कारनामों की दिलचस्प दास्तान सुनाया करते थे।
हज़रत अमर उनसे निहायत मुहबत के साथ पेश आते थे,उन्होंने वफ़ात के वक़्त वसीयत फ़रमाई कि हज़रत सुहैब ही उनके जनाज़ा की नमाज़ पढ़ाऐं ओरा शूरा जब तक मसला ख़िलाफ़त का फ़ैसला ना करें, वो नेतृत्व का फ़र्ज़ अंजाम दें, चुनांचे उन्होंने तीन दिन तक निहायत ख़ुश-उस्लूबी के साथ इस फ़र्ज़ को अंजाम दिया।
38 हिजरी में 72 बरस की उम्र में वफ़ात पाई और बक़ी के गौर-ए-ग़रीबां में दफ़न किया गया।
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