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सविता आंबेडकर
डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर की पत्नी, डॉक्टर एवं सामाजिक कार्यकर्ता (1909- 2003) विकिपीडिया से, मुक्त विश्वकोश
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सविता भीमराव आम्बेडकर (जन्म: शारदा कबीर; 27 जनवरी 1909 — मृत्यु: 29 मई, 2003) भारतीय समाजसेविका, डॉक्टर तथा भीमराव आम्बेडकर की दूसरी पत्नी थीं। आम्बेडकर लोग उन्हें आदर से माई या माईसाहब कहते हैं, जिसका मराठी में अर्थ 'माता' हैं।
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प्रारम्भिक जीवन एवं पढ़ाई
सविता आम्बेडकर का जन्म पुणे के एक कबीरपंथी मराठी सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था।[1] उनका परिवार पुरोगामी था। उन्होंने जाति के बंधनों की परवाह नहीं की थी।[2] वह पढ़ने में बहुत कुशाग्र थीं। उनकी आरंभिक शिक्षा पुणे में ही हुई। इसके बाद उन्होंने मुंबई के ग्रेन्ट मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया। चिकित्सा की पढ़ाई पूरी कर वे गुजरात के एक अस्पताल में काम करने लगीं। फिर वे मुंबई आ गईं। वहाँ भीमराव आम्बेडकर से उनका परिचय और विवाह हुआ। वे आम्बेडकर के लेखन तथा आंदोलन में हाथ बँटाने लगीं।
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करियर एवं आम्बेडकर से भेंट

शारदा कबीर ने गुजरात में कुछ समय तक चीफ मेडिकल ऑफिसर के रूप में अस्पताल में काम किया। बाद में वह मुंबई में आई और जानेमाने फिजिओथेरपिस्ट एवं तज्ज्ञ डॉक्टर मालवणकर के सात काम करने लगी। वहाँ इ॰स॰ १९४७ में उनकी ब्लॅड प्रेशर व मधुमेह की बिमारी से ग्रस्त डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर से भेंट हुई। आम्बेडकर ने प्रकृति कारण से डॉक्टर शारदा कबीर से वैद्यकीय सेवा ली। इससे पूर्व भी एकबार डॉ॰ राव के घर में दोनों की भेंट हुई थी। डॉ॰ आम्बेडकर की पहली पत्नी रमाबाई आम्बेडकर का 27 मई 1935 को निधन हुआ था।
मुंबई के विलेपार्ले में रहनेवाले डॉ॰ एस॰ राव और डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर के बीच घनिष्ठ संबंध थे। डॉ॰ राव की लडकी और डॉ॰ शारदा कबीर सहेलियाँ थी, इसलिए डॉ॰ राव के घर शारदा कबीर का आना जाना रहता था। राव के घर 1947 में शारदा कबीर और भीमराव आम्बेडकर की पहली भेंट हुई, और उस समय राव ने इन दोनों का एकदुसरे से परिचय करवाया था।
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विवाह
सारांश
परिप्रेक्ष्य

1947 में संविधान लेखन के दौरान भीम राव अम्बेडकर को मधुमेह और उच्च रक्तचाप के कारण उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने लगी। उन्हें नीन्द नहीं आती थी। पैरों में न्यूरोपैथिक दर्द रहने लगा। इंसुलिन और होम्योपैथिक दवाएं किसी हद तक ही राहत दे पाती थीं। इलाज के लिए वह बंबई गए। वहीं डॉक्टर सविता इलाज के दौरान अम्बेडकर के करीब आईं। अम्बेडकर की पहली पत्नी रमाबाई का लंबी बीमारी के बाद 1935 में निधन हो चुका था। अम्बेडकर ने सविता के साथ दूसरे विवाह का फैसला किया। 15 अप्रैल 1948 को उनका विवाह हो गया।
सविता-अम्बेडकर के विवाह से कबीरपंथी और दलित दोनों समुदायों के अनेक लोग कुपित हुए। अनेक कबीरपंथियों ने अम्बेडकर की दलित राजनीति और विचारधारा पर सवाल खड़े किए। दलितों के एक वर्ग ने कहा कि इससे गलत तो कुछ हो ही नहीं सकता था। क्या बाबा साहेब को शादी के लिए एक गौरदलित स्त्री ही मिली थी। कइयों ने इसे गैर बौद्धों की साजिश कहा। कुछ ने खिल्ली भी उड़ाई। किंतु अम्बेडकर के बहुत से अनुयायियों ने माना कि वह जो करते हैंं, सोचसमझ कर करते हैंं, ज्यादा विचारवान और समझदार हैंं, इसलिे उन्होंने उचित ही किया होगा। इस शादी के पक्ष में यह तर्क भी दिया गया कि चूंकि ग़ैरबौद्धों के यहां महिलाओं की स्थिति दलित की तरह होती हैं, इसलिए उन्होंने एक महिला का उद्धार किया हैं।(इस संदर्भ में उन्होंने अपने कुटुम्ब के योग्यता अनुसार सोचा)
समर्पित पत्नि
विवाह के बाद डॉक्टर शारदा कबीर को डॉक्टर सविता आम्बेडकर कहा जाने लगा। उन्होंने भीमराव आम्बेडकर की सेवा करने लगी। आम्बेडकर का स्वास्थ्य लगातार खराब होता चला जा रहा था। वे पूरी निष्ठा के साथ आम्बेडकर के आखरी समय तक सेवा करती रहीं। आम्बेडकर ने अपनी पुस्तक भगवान बुद्ध और उनका धम्म की 15 मार्च 1956 को लिखी भूमिका में भावुक अंदाज में पत्नी से मदद मिलने का उल्लेख किया। इस प्रस्तावना में उन्होंने सविता आम्बेडकर ने उनकी आयु 8-10 वर्ष अधिक बढाने का उल्लेख किया हैं। आम्बेडकर के निधनोपरांत उनके करीबियों और अनुयायियों ने इस ग्रंथ से यह भूमिका हटवा दी। इसका पता १९८० ई. में चला जब पंजाबी बुद्धवादी लेखक भगवान दास ने उनकी इस भूमिका को दुर्लभ भूमिका के रूप में प्रकाशित करायी।
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धर्मांतरण


अशोक विजयादशमीला (सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धम्म स्वीकार किया गया दिवस), 14 अक्टूबर 1956 को दीक्षाभूमि, नागपूर में भीमराव आम्बेडकर के साथ सविता आम्बेडकर ने बौद्ध धम्म का स्वीकार किया। म्यान्मार के भिक्खु महास्थवीर चन्द्रमणी से डॉ॰ बाबासाहेब व सौ. डॉ॰ सविता आम्बेडकर ने त्रिशरण व पंचशील ग्रहण कर सर्वप्रथम धम्मदीक्षा ली और इसके बाद डॉ आम्बेडकर ने खुद ही अपने ५,००,००० अनुयायीयों को त्रिशरण, पंचशील एवं बावीस प्रतिज्ञा देकर बौद्ध धम्म की दीक्षा दि। यह शपथग्रहण सुबह ९ बजे हुआ। सविता आम्बेडकर इस धर्मांतर आंदोलन की बौद्ध धम्म कबूल करनेवाली प्रथम महिला थी।[3]
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आरोप एवं खंडन
भीमराव आम्बेडकर के निधन के बाद कुछ आम्बेडकरवादियों ने उनकी की हत्या करने का आरोप सविता जी पर लगाया। उन्हें ब्राह्मण बताकर आम्बेडकर आंदोलन से अलग कर दिया गया। उन्होंने खुद को दिल्ली में अपने मेहरौली स्थित फार्महाउस तक समेट लिया। तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई, और उस कमेटी ने जांच के बाद सविता जी को आरोपों से मुक्त कर दिया गया।[4]
दलित आंदोलन से पुनर्जुड़ाव
भारतीय रिपब्लिकन पार्टी के नेता रामदास आठवले और गंगाधर गाडे उन्हें दोबारा आम्बेडकरवादी आंदोलन की मुख्यधारा में लौटा लाए। अधिक उम्र बढ़ने पर वह बाद में इससे अलग हो गईं। भीमराव आम्बेडकर को दिया गया ‘भारतरत्न’ यह सर्वोच्च नागरी पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति रामस्वामी वेंकटरमण इनके हातों से स्वीकार करती हुई डॉ॰ सविता तथा माईसाहेब आम्बेडकर. १४ अप्रैल १९९० यह उनका शताब्धी जयन्ती दिवस था. यह पुरस्कार समारोह राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल/अशोक हॉल में सम्पन्न हुआ।
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लेखन
उन्होंने आम्बेडकर पर डॉ॰ आम्बेडकरांच्या सहवासात (हिन्दी: 'डॉ. आम्बेडकर के सम्पर्क में') नामक संस्मरणात्मक एवं आत्मकथात्मक पुस्तक लिखी। उन्होंने आम्बेडकर पर बनी फिल्म 'डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर' में भी योगदान दिया।
निधन
आम्बेडकर के निधनोपरांत वे एकाकी हो गईं। बाद में वे कुछ समय तक दलित आंदोलन से पुनः जुड़ीं। सविता माई का 29 मई 2003 को 94 साल की उम्र में मुंबई के जेजे अस्पताल में निधन हो गया।[5]
आम्बेडकर पर किताबें
- बाबासाहेबांची सावली: डॉ. सविता आम्बेडकर (माईसाहेब) — लेखिका: प्रा. कीर्तिलता रामभाऊ पेटकर, २०१६ [मराठी किताब]
- माईसाहेबांचे अग्निदिव्य — लेखक: प्रा. पी.व्ही. सुखदेवे [मराठी किताब]
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
बाहरी कडीयाँ
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