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सामान्य ज़ुकाम को नैसोफेरिंजाइटिस, राइनोफेरिंजाइटिस, अत्यधिक नज़ला या ज़ुकाम के नाम से भी जाना जाता है। यह ऊपरी श्वसन तंत्र का आसानी से फैलने वाला संक्रामक रोग है जो अधिकांशतः नासिका को प्रभावित करता है।[1] इसके लक्षणों में खांसी, गले की खराश, नाक से स्राव (राइनोरिया) और ज्वर आते हैं। लक्षण आमतौर पर सात से दस दिन के भीतर समाप्त हो जाते हैं। हालांकि कुछ लक्षण तीन सप्ताह तक भी रह सकते हैं। ऐसे दो सौ से अधिक वायरस होते हैं जो सामान्य ज़ुकाम का कारण बन सकते हैं। राइनोवायरस इसका सबसे आम कारण है।
Common Cold वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
A representation of the molecular surface of one type of human rhinovirus. | |
आईसीडी-१० | J00.0 |
आईसीडी-९ | 460 |
डिज़ीज़-डीबी | 31088 |
मेडलाइन प्लस | 000678 |
एम.ईएसएच | D003139 |
नाक, साइनस, गले या कंठनली (ऊपरी श्वसन तंत्र का संक्रमण (URI या URTI) का तीव्र संक्रमण शरीर के उन अंगों द्वारा वर्गीकृत किया जाता है जो इससे सर्वाधिक प्रभावित होते है सामान्य ज़ुकाम मुख्य रूप से नासिका, फेरिंजाइटिस, श्वासनलिका को और साइनोसाइटिस, साइनस को प्रभावित करता है। यह लक्षण स्वयं वायरस द्वारा ऊतकों को नष्ट किए जाने से नहीं अपितु संक्रमण के प्रति हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया के कारण उत्पन्न होते हैं। संक्रमण को रोकने के लिए हाथ धोना मुख्य तरीका है। कुछ प्रमाण चेहरे पर मास्क पहनने की प्रभावकारिता का भी समर्थन करते हैं।
सामान्य ज़ुकाम के लिए कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों का इलाज किया जा सकता है। यह, मनुष्यों में सबसे अधिक होने वाला संक्रामक रोग है। औसत वयस्क को प्रतिवर्ष दो से तीन बार ज़ुकाम होता है। औसत बच्चे को प्रतिवर्ष छह से लेकर बारह बार ज़ुकाम होता है। ये संक्रमण प्राचीन काल से मनुष्यों में होते आ रहे हैं।
ज़ुकाम के सबसे आम लक्षणों में खांसी, नाक बहना, नासिकामार्ग में अवरोध और गले की खराश शामिल हैं। अन्य लक्षणों में मांसपेशियों का दर्द (माइएल्जिया), थकान का अनुभव, सर में दर्द और भूख का कम लगना सम्मिलित किया जा सकता है।[2] ज़ुकाम से पीड़ित लगभग 40% लोगों में गले की खराश मौजूद होती है। लगभग 50% लोगों को खांसी/कफ़ होता है। [3] लगभग आधे मामलों में मांसपेशियों में दर्द होता है।[4] बुखार वयस्कों में एक असामान्य लक्षण है, लेकिन नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों में यह आम है।[4] ज़ुकाम के कारण होने वाली खांसी, फ़्लू (इन्फ्लुएंजा) के कारण होने वाली खांसी की तुलना में हल्की होती है।[4] वयस्कों में खांसी और बुखार फ़्लू (इन्फ्लुएंजा) के होने की संभावना की और संकेत करते हैं।[5] कई ऐसे वायरस जो सामान्य ज़ुकाम का कारण होते हैं, कोई लक्षण प्रदर्शित नहीं करते।[6][7] निचले वायुमार्ग (स्प्यूटम) से आने वाले बलगम का रंग स्पष्ट से लेकर पीला और हरा तक हो सकता है। बलगम का रंग यह संकेत देता कि संक्रमण जीवाणु द्वारा हुआ है या विषाणु द्वारा।[8]
ज़ुकाम आम तौर पर थकान, बहुत अधिक ठंड का अनुभव करने, छींकने और सर दर्द से शुरू होता है। अतिरिक्त लक्षण जैसे नाक से स्राव और खांसी आदि दो दिनों के बाद दिखने लगते हैं।[2] संक्रमण शुरू होने के दो से तीन दिन बाद सभी लक्षण अपने चरम पर पहुंच जाते हैं।[4] लगभग सात से दस दिनों में लक्षण समाप्त हो जाते हैं लेकिन कभी-कभी यह तीन सप्ताह तक भी रह सकते हैं।[9] बच्चों से संबंधित 35% से 40% मामलों में खांसी दस से भी अधिक दिनों तक बनी रहती है। बच्चों से संबंधित 10% मामलों में यह खांसी 25 से भी अधिक दिनों तक बनी रहती है।[10]
सामान्य ज़ुकाम ऊपरी श्वास नलिका का आसानी से फैलने वाला संक्रमण है। राइनोवायरस सामान्य ज़ुकाम का सबसे आम कारण है। यह सभी मामलों में से 30% से 80% के लिए उत्तरदायी होता है। राइनोवायरस एक आरएनए युक्त वायरस होता है जो की पाईकोर्नावाईराइड परिवार से होता है। वायरस के इस परिवार में 99 ज्ञात वायरस हैं।[11][12] सामान्य ज़ुकाम अन्य वायरस के द्वारा भी हो सकता है। सभी मामलों में से 10% से 30% के लिए कोरोनावायरस उत्तरदायी होता है। सभी मामलों में से 5% से 15% के लिए फ्लू (इन्फ़्लुएन्ज़ा) उत्तरदायी होता है।[4] अन्य मामले ह्यूमन पैराइन्फ़्लुएन्ज़ा वायरस, ह्यूमन रेस्पिरेटरी साइनसाईटियल वायरस, एडेनोवायरस, एन्टेरोवायरस तथा मेटान्यूमोवायरस के कारण हो सकते हैं।[13] सामान्यतया संक्रमण की स्थिति में एक से अधिक वायरस उपस्थित होते हैं।[14] कुल मिला कर, दो सौ से अधिक प्रकार के वायरस ज़ुकाम से साथ संबंधित माने गए हैं।[4]
सामान्य ज़ुकाम का वायरस आम तौर पर एक दो मुख्य तरीकों से फैलता है। वायरस युक्त नन्हीं बूंदों को साँस के द्वारा अथवा मुंह के द्वारा अन्दर लेने से अथवा संक्रमित नासिका के म्यूकस या संक्रमित वस्तुओं के संपर्क में आने से।[3][15] इनमें से कौन सा कारण ज़ुकाम के प्रसार के लिए उत्तरदायी है, इसका पता नहीं लगाया जा सका है।[16] ये वायरस वातावरण में लम्बे समय तक बचे रह सकते हैं। इसके बाद वायरस हाथों से नाक अथवा आँखों में प्रसारित हो जाता है, जहाँ संक्रमण हो जाता है।[15] एक दूसरे के पास बैठने वाले लोगों के संक्रमित होने का खतरा अधिक होता है।[16] रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी वाले तथा अक्सर खराब साफ-सफाई वाले बच्चों में आपसी नज़दीकी के कारण दैनिक देखभाल केन्द्रों अथवा स्कूलों संक्रमण आम होता है।[17] इसके बाद, यह संक्रमण बच्चों से परिवार के अन्य सदस्यों में आ जाता है।[17] वायुयान में व्यावसायिक उड़ान के दौरान पुनःपरिचालित वायु के प्रयोग से ज़ुकाम के प्रसार होने का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।[15] राइनोवायरस के द्वारा होने वाले ज़ुकाम के पहले तीन दिनों में संक्रमण सबसे अधिक प्रसारित होने की सम्भावना होती है। इसके पश्चात संक्रमण फैलने की सम्भावना काफी कम हो जाती है।[18]
पारंपरिक सिद्धांत यह है कि ज़ुकाम बहुत अधिक समय तक ठंडे मौसम में रहने के कारण होता है जैसे कि, बरसात या सर्दियों में और इसी कारण इस बीमारी को यह नाम भी दिया गया है।[19] यह विवादस्पद है कि शरीर के शीतलन से भी सामान्य ज़ुकाम होने का खतरा होता है या नहीं।[20] कुछ वायरस जो सामान्य ज़ुकाम के कारक होते हैं वे मौसमी होते हैं और ठंडे या गीले मौसम के दौरान इनके होने की आवृत्ति अधिक होती है।[21] ऐसा माना जाता है कि यह मुख्यतया अधिक समय तक घर के अन्दर और संक्रमित व्यक्ति के निकट रहने से होता है;[22] विशेष रूप से वे बच्चे जो स्कूल वापस लौटते हैं[17] हालांकि, यह श्वसन प्रणाली में होने वाले परिवर्तनों से भी संबंधित हो सकता है, जिनके फलस्वरूप हलके-फुल्के संक्रमण हो जाते हैं।[23] कम आर्द्रता के कारण इसके फैलने की दर बढ़ सकती है क्योंकि शुष्क वायु में नन्हीं बूँदें सरलता से फैलती हैं और ये हवा में अधिक समय तक रहकर दूर तक जाती हैं।[24]
समूह प्रतिरक्षा उसे कहते हैं जब कोई समूह एक विशेष संक्रमण के प्रति प्रतिरक्षित हो जाता है और ऐसा पूर्व में जुकाम के विषाणुओं के संपर्क में आ चुके होने के कारण होता है। इस प्रकार कम आयु वाली जनसंख्या में श्वसन संक्रमण के होने की दर अधिक है और अधिक आयु वाली जनसंख्या में इसकी दर कम है।[25] कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली भी इस बीमारी के लिए एक खतरा है।[25][26] नींद की कमी और कुपोषण को भी इस संक्रमण के प्रति एक जोखिम माना जाता है जिससे बाद में राइनोवायरस का खतरा बढ़ जाता है। यह माना जाता है कि ऐसा प्रतिरक्षा प्रणाली पर इनके प्रभाव के कारण होता है।[27][28]
सामान्य ज़ुकाम के लक्षण आमतौर पर वायरस के प्रति प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया माने जाते हैं।[29] इस प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की प्रक्रिया विषाणु विशिष्ट होती है। उदाहरण के लिए, राइनोवायरस आम तौर पर सीधे संपर्क से उपार्जित होता है। यह ICAM-1 मानव अभिग्राहकों से अज्ञात विधि से जुड़ जाता है और उत्तेजक मध्यस्थों के स्राव को सक्रिय करता है।[29] जिससे ये उत्तेजक मध्यस्थ लक्षण पैदा करते हैं।[29] आमतौर पर यह नासिका के ऐपीथैलियम को नुकसान नहीं पहुंचाता है।[4] इसके विपरीत, रेस्परेट्री सिंक्शियल वायरस (RSV) सीधे संपर्क और वायु में उपस्थित नन्हीं बूंदों, दोनों माध्यम से उपार्जित होता है। इसके पश्चात निचली श्वसननलिका में अधिक फैलने से पूर्व यह नाक और गले में प्रतिकृतियां बनाता है।[30] RSV से ऐपीथैलियम को नुकसान पहुंचता है।[30] ह्युमन पैराइन्फ्लुएंजा वायरस आमतौर पर नाक, गले और वायुमार्ग में जलन पैदा करते हैं।[31] कम आयु के बच्चों में ट्रेशिया को प्रभावित करने पर एक कंठ रोग भी हो सकता है, जिसमें सूखी खांसी आती है और सांस लेने में परेशानी होती है। ऐसा बच्चों के वायुमार्ग के छोटे आकार के कारण होता है।[31]
ऊपरी श्वसननलिका संक्रमणों (URTIs) के बीच अंतर अधिकतर लक्षणों के प्रकट होने के स्थानों पर निर्भर करता है। सामान्य ज़ुकाम मुख्य रूप से नाक, फैरिंजाइटिस मुख्य रूप से गले को और ब्रौन्काइटिस मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है।[3] सामान्य ज़ुकाम को बहुधा नाक की जलन के रूप में परिभाषित किया जाता है और इसमें गले के संक्रमण भी अलग-अलग सीमा तक शामिल हो सकते हैं।[32] इसमें स्व-निदान आम है।[4] वह वायरस एजेंट जो वास्तव में इसका कारक होता है, उसका पृथक्करण असामान्य है।[32] आमतौर पर लक्षणों के आधार पर विषाणु के प्रकार की पहचान कर पाना संभव नहीं है।[4]
सामान्य ज़ुकाम के फैलाव को रोकने का एकमात्र प्रभावी तरीका इसके विषाणु को फैलने से रोकना ही है।[33] इसमें मुख्यतः हाथ को धोना और चेहरे पर मास्क पहनना शामिल होता है। स्वास्थ्य रक्षा परिवेश में लम्बे चोंगे (गाउन) और उपयोग पश्चात फेंक दिए जाने वाले दस्ताने भी पहने जाते हैं।[33] संक्रमित व्यक्तियों को अलग रखना इसमें संभव नहीं होता क्योंकि यह बीमारी बहुत व्यापक है और इसके लक्षण बहुत विशिष्ट नहीं होते। अनेक विषाणु इस बीमारी के कारक हो सकते हैं और उनमें बहुत ज़ल्दी-ज़ल्दी बदलाव होते रहते हैं इसलिए इस बीमारी में टीकाकरण भी कठिन सिद्ध हुआ है।[33] व्यापक स्तर पर प्रभावशाली टीके विकसित कर पाने की संभावना बहुत कम है।[34]
नियमित रूप से हाथ धोने से ज़ुकाम के विषाणुओं के संचरण को कम किया जा सकता है। यह बच्चों के बीच सबसे अधिक प्रभावी है।[35] यह ज्ञात नहीं है कि सामान्य रूप से हाथ धोने के दौरान वायरसरोधी या बैक्टीरियारोधी पदार्थों के प्रयोग से हाथ धोने के लाभ बढ़ते हैं या नहीं[35] संक्रमित लोगों के आसपास रहने के दौरान मास्क पहनना लाभकारी होता है। यह निर्धारित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि अधिक शारीरिक और सामाजिक दूरी बनाना इसमें लाभकारी है या नहीं।[35] ज़िंक अनुपूरण, किसी व्यक्ति में ज़ुकाम होने की आवृ्ति कम करने में प्रभावी हो सकता है।[36] नियमित तौर पर लिया जाने वाला विटामिन सी पूरक सामान्य ज़ुकाम की गंभीरता या जोखिम को कम नहीं करता है। विटामिन सी ज़ुकाम की अवधि को कम कर सकता है।[37]
अभी तक ऐसी कोई दवा या जड़ी बूटी औषधि नहीं है जो प्रमाणित तौर पर सामान्य ज़ुकाम की अवधि को कम कर सकती हो।[38] इसके उपचार में लक्षणों से मुक्ति शामिल है।[39] इसमें खूब आराम करना, शरीर में जलयोजन बनाए रखने के लिए द्रव पदार्थ लेना, हलके गर्म-नमकीन पानी से गरारे करना आदि शामिल हो सकते हैं।[13] हालांकि इलाज से होने वाले अधिकांश लाभ प्लासेबो प्रभाव के कारण ही माने जा सकते हैं।[40]
लक्षणों को घटने में जो इलाज सहायता करते हैं, वे हैं साधारण दर्द निवारक (एनेल्जेसिक्स) और बुखार कम करने वाली (एंटीपाइरेटिक्स) दवायें जैसे, आईब्रूफेन[41] और एसिटामिनोफेन/पैरासेटामॉल।[42] इस बात के साक्ष्य नहीं मिलते हैं कि कफ़ संबंधी दवायें, आम दर्द निवारक दवाओं (एनाल्जेसिक) दवाओं से अधिक प्रभावी हैं। [43]बच्चों के लिए खांसी की दवा देने की सलाह नहीं दी जाती है क्योंकि इनसे होने वाले नुकसान के जोखिम को देखते हुए इस बात के पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं जो यह सिद्ध करें कि ये प्रभावकारी होती हैं।[44][45] जोखिम तथा अप्रमाणिक लाभों के कारण 2009 में, कनाडा ने 6 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिये काउंटर पर बिकने वाली खांसी की दवाओं तथा ज़ुकाम की दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया।[44] डेक्सट्रोमेथॉर्थफन (खांसी की काउंटर पर बिकने वाली दवा) के दुरुपयोग के चलते कई देशों में इस पर प्रतिबंध लग गया है।[46]
वयस्कों में नास के स्राव होने का लक्षण एंटीहिस्टामाइन की पहली पीढ़ी की दवाइयों द्वारा कम किया जा सकता है। हालांकि, पहली पीढ़ी की एंटीहिस्टामाइन के साथ सुस्ती जैसे कुछ दुष्प्रभाव जुड़े होते हैं।[39] अन्य विसंकुलक (सर्दी/खांसी की दवा) जैसे कि स्यूडोएफेड्राइन भी वयस्कों में बहुत प्रभावी होते हैं।[47] इप्राट्रोपियम जो कि नाक में डाला जाने वाला एक स्प्रे है, नाक से स्राव के लक्षण को कम कर सकता है, लेकिन स्राव के कारण होने वाली घुटन को यह बहुत प्रभावित नहीं कर पाता है।[48] दूसरी पीढ़ी की एंटीहिस्टामाइन इतनी प्रभावकारी प्रतीत नहीं होती हैं।[49]
अध्ययन के अभाव के कारण, यह ज्ञात नहीं है कि अधिक मात्रा में तरल लेने से लक्षणों में सुधार होता है या श्वसन रोग की अवधि कम होती है।[50] इसी प्रकार तप्त नम वायु के प्रयोग के संबंध में भी आंकड़ों की कमी है।[51] अध्ययन में यह पाया गया कि चेस्ट वेपर रब रात्रि के समय कुछ लक्षणात्मक आराम देने में सहायक हैं जैसे, खांसी, संकुलन और सोने में कठिनाई[52]
एंटीबायटिक दवाओं का वायरल संक्रमण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता इसीलिए सामान्य ज़ुकाम पर भी इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता।[53] एंटीबायटिक दवाएं आम तौर पर खूब लिखी जाती हैं जबकि इन दवाओं के दुष्प्रभाव समग्रता में नुकसान पहुंचाते हैं।[53][54] ये दवाएं इसलिए भी आम तौर पर खूब लिखी जाती हैं क्योंकि लोग चिकित्सक से ये अपेक्षा रखते हैं कि वे उन्हें ये दवाएं लिखें और चिकित्सक भी लोगों की सहायता करना चाहते हैं। एंटीबायटिक दवाओं के लिखे जाने का एक कारण यह है कि उन संक्रमणों के कारकों को अलग करना मुश्किल है जो एंटीबायटिक के माध्यम से ठीक हो सकते हैं।[55] आम ज़ुकाम के लिए कोई प्रभावी वायरलरोधी दवाएं उपलब्ध नहीं है भले ही कुछ प्रारंभिक अनुसंधानों ने लाभ प्रदर्शित किया है।[39][56]
हालांकि आम ज़ुकाम के लिए कई वैकल्पिक उपचार उपयोग में लाए जाते हैं, लेकिन फिर भी अधिकांश उपचारों के समर्थन में पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।[39] 2010 तक, शहद या नासिका आबपाशी के समर्थन या विरोध में पर्याप्य प्रमाण नहीं थे।[57][58] यदि ज़ुकाम होने के 24 घंटे के अन्दर ही जिंक की पूरक खुराक ले ली जाए तो इससे लक्षणों की गंभीरता और उनकी अवधि दोनों कम हो सकते हैं।[36] आम ज़ुकाम पर विटामिन सी का प्रभाव निराशाजनक है, जबकि इस पर व्यापक शोध किया गया है।[37][59] एकानेशिया की उपयोगिता से संबंधित प्रमाण असंगत हैं[60][61] विभिन्न प्रकार के एकानेशिया पूरकों का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।[60]
आमतौर पर सामान्य ज़ुकाम की तीव्रता अधिक नहीं होती है और यह अधिकांश लक्षणों के एक सप्ताह में सुधरने के साथ ही अपने आप समाप्त भी हो जाता है।[3] गंभीर जटिलताएं, यदि घटित होती हैं तो उन लोगों में होती हैं जो या तो अत्यंत वृद्ध हैं, बेहद कम आयु के हैं या ऐसे लोग जिनका प्रतिरक्षा तंत्र बहुत कमज़ोर (इम्युनोसप्रेस्ड) हैं।[62] द्वितीयक जीवाणु संक्रमण हो सकते हैं जिनसे साइनोसाइटिस, फैरिंजाइटिस या कान का संक्रमण हो सकता है।[63] ऐसा आंकलन है कि 8% मामलों में साइनोसाइटिस होता है। 30% मामलों में कान का संक्रमण होता है।[64]
आम ज़ुकाम एक सर्वाधिक होने वाली आम मानवीय बीमारी है[62] और वैश्विक स्तर पर लोग इससे प्रभावित होते हैं।[17] वयस्कों को आम तौर पर यह संक्रमण वर्ष में दो से पांच बार तक होता है।[3][4] बच्चों को एक वर्ष में छः बार से लेकर दस बार तक ज़ुकाम होता है (स्कूल जाने वाले बच्चों में यह संख्या बारह तक होती है)।[39] बड़ी उम्र के लोगों में लक्षणात्मक संक्रमणों की दर अधिक होती है क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होती है।[25]
हालाँकि आम ज़ुकाम के होने के कारण की पहचान 1950 के दशक में हुई थी, लेकिन यह बीमारी मनुष्यों में बहुत प्राचीन समय से चली आ रही है।[65] इसके लक्षण और उपचार का जिक्र मिस्र के एबर्स पेपाइरस में है, जो प्राचीनतम उपलब्ध चिकित्सकीय सामग्री है तथा जिसे सोलहवीं शताब्दी ईसा पूर्व लिखा गया था।[66] यह नाम "आम ज़ुकाम" सोलहवीं शताब्दी ईसा पूर्व में प्रयोग में आया, जिसका कारण इसके लक्षणों और ठंडक के मौसम के कारण उपजे लक्षणों के बीच की समानता थी।[67]
युनाइटेड किंगडम में, द कॉमन कोल्ड यूनिट (CCU) की स्थापना 1946 में मेडिकल रिसर्च काउंसिल द्वारा की गई थी और यहीं पर 1956 में राइनोवायरस खोजा गया था[68] 1970 के दशक में, CCU ने यह दिखाया की राइनोवायरस से होने वाले संक्रमण की इन्क्यूबेशन अवधि के दौरान इंटरफेरॉन के उपचार से इस बीमारी के विरुद्ध कुछ सुरक्षा प्राप्त हुई।[69] कोई व्यवहारिक उपचार विकासित नहीं किया जा सका। जिंक ग्लूकोनेट लौजेंजेस के द्वारा राइनोवायरस से होने वाले ज़ुकाम के रोकथाम और उपचार पर शोध के पूर्ण होने के बाद, यह ईकाई 1989 में बंद कर दी गयी थी। CCU के इतिहास में जिंक, एकमात्र सफल उपचार था जिसे विकसित किया गया।[70]
अधिकांश विश्व में आम जुकाम के आर्थिक प्रभाव को अच्छी तरह से समझा नहीं गया है।[71] संयुक्त राज्य अमरीका में, आम ज़ुकाम के कारण प्रतिवर्ष 75 मिलियन से 100 मिलियन बार चिकित्सक से परामर्श लेना पड़ता है, इसकी कमतर करके आंकी गई लागत भी $7.7 बिलियन प्रतिवर्ष है। अमेरिकी लोग ओवर द काउंटर (ओटीसी) दवाओं पर $2.9 बिलियन प्रतिवर्ष खर्च करते हैं। इसके अतिरिक्त अमेरिकी लोग लक्षणात्मक आराम के लिए लिखी गयी दवाइयों पर $400 मिलियन खर्च करते हैं।[72] चिकित्सक के पास जाने वालों में से एक-तिहाई से भी अधिक लोगों को एंटीबायटिक खाने का परामर्श दिया गया। एंटीबायटिक दवाओं का प्रयोग एंटीबायटिक प्रतिरोध को प्रभावित करता रहता है।[72] एक आंकलन के अनुसार जुकाम के कारण प्रतिवर्ष स्कूलों में 22 मिलियन से 189 मिलियन स्कूली दिनों का नुकसान होता है। नतीजतन, माता-पिता को 126 मिलियन कार्यदिवसों पर घर रहकर अपने बच्चों की देखभाल करनी पड़ी। जब इसे ज़ुकाम से पीड़ित कर्मचारियों द्वारा कार्यालय न जाने वाले 150 मिलियन कार्यदिवसों से जोड़ा गया तो ज़ुकाम से सम्बंधित कार्यहानि का आर्थिक प्रभाव प्रतिवर्ष $20 बिलियन हो गया।[13][72] यह संयुक्त राज्य अमरीका के कार्य समय में 40% की हानि के बराबर है।[73]
आम ज़ुकाम में प्रभावकारी होने के लिए कई एंटीवायरल दवाओं का परीक्षण किया गया है। 2009 तक, कोई ऐसी दवा नहीं मिली थी जो कि प्रभावकारी भी हो और उपयोग हेतु लाइसेंसशुदा भी हो।[74] एंटीवायरल दावा प्लेसोनारिल के कई परीक्षण किए जा रहे हैं। यह पिकोर्नावायरस के विरुद्ध प्रभावी होने का वादा करती दिखती है। BTA-798 पर भी कई परीक्षण जारी हैं।[75] प्लेसोनारिल के मौखिक रूप के साथ सुरक्षा मुद्दे जुड़े थे तथा एयरोसॉल रूप पर अध्ययन जारी है।[75]
मेरीलैंड विश्वविद्यालय, कॉलेज पार्क और विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने आम ज़ुकाम के कारक सभी ज्ञात वायरस उपभेदों के जीनोम मैप कर लिए हैं।[76]
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